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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


गोरे व्यापारी चौके। जब पहले-पहले उन्होंने हिन्दुस्तानी मजदूरो का स्वागत किया था, तब उन्हे उनकी व्यापार करने की शक्ति का कोई अन्दाज न था। वे किसान के नाते स्वतंत्र रहें, इस हद तक तो गोरो को उस समय कोई आपत्ति न थी, पर व्यापार में उनकी प्रतिद्वन्द्विता उन्हे असह्य जान पडी।

हिन्दुस्तानियो के साथ उनके विरोध के मूल में यह चीज थी।

उसमें दूसरी चीजे और मिल गयी। हमारी अलग रहन-सहन, हमारी सादगी, हमारा कम नफे से संतुष्ट रहना, आरोग्य के नियमों के बारे में हमारी लापरवाही, घर-आँगन को साफ रखने का आलस्य, उनकी मरम्मत में कंजूसी, हमारे अलग-अलग धर्म - ये सारी बाते विरोध को भड़कानेवाली सिद्ध हुई।

यह विरोध प्राप्त मताधिकार को छीन लेने के रुप में और गिरमिटियों पर कर लगाने के कानून के रुप में प्रकट हुआ। कानून के बाहर तो अनेक प्रकार से उन्हे परेशान करना शुरू हो ही चुका था।

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