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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस कर के विरुद्ध जोरो की लड़ाई छिड़ी। यदि नेटान इंडियन कांग्रेस की ओर से कोई आवाज ही न उठाई जाती तो शायद वायसरॉय 25 पौंड भी मंजूर कर लेते। 25 पौंड के बदले 3 पौड होना भी कांग्रेस के आन्दोलन का ही प्रताप हो, यह पूरी तरह संभव हैं। पर इस कल्पना में मेरी भूल हो सकती है। संभव है कि भारत सरकार में 25 पौंड के प्रस्ताव को शुरू से ही अस्वीकार कर दिया हो, और हो सकता है कि कांग्रेस के विरोध न करने पर भी वह 3 पौंड का कर ही स्वीकार करती। तो भी उसमें हिन्दुस्तान के हित की हानि तो थी ही। हिन्दुस्तान के हित-रक्षक के नाते वाइसरॉय को ऐसी अमानुषी कर कभी स्वीकार नहीं करना चाहिये था।

25 से 3 पौंड (375 रुपये से 45 रुपये ) होने में कांग्रेस क्या यश लेती? उसे तो यही अखरा कि वह गिरमिटियो के हित की पूरी रक्षा न कर सकी। और 3 पौड का कर किसी न किसी दिन हटना ही चाहिये। इस निश्चय को कांग्रेस ने कभी भूलाया नहीं। पर इस निश्चय को पूरा करने में बीस वर्श बीत गये। इस युद्ध में नेटाल के ही नहीं, बल्कि समूचे दक्षिण अफ्रीका के हिन्दुस्तानियो को सम्मिलित होना पड़ा। उसमें गोखले को निमित्त बनना पड़ा। गिरमिटिया हिन्दुस्तानियो को पूरी तरह हाथ बँटाना पड़ा। उसके कारण कुछ लोगों को गोलियाँ खाकर मरना पड़ा। दस हजार से अधिक हिन्दुस्तानियो को जेल भुगतनी पड़ी।

पर अन्त में सत्य की जीत हुई। हिन्दुस्तानियो की तपस्या में मूर्तिमान हुआ। इसके लिए अटल श्रद्धा की, अखूट धैर्य की और सतत कार्य करते रहने की आवश्यकता थी। यदि कौम हार कर बैठ जाती, कांग्रेस लड़ाई को भूल जाती और कर को अनिवार्य समझकर उसके आगे झुक जाती तो वह कर आज तक गिरमिटिया हिन्दुस्तानियो से वसूल होता रहता औक इसका कलंक स्थानीय हिन्दुस्तानियो को और समूचे हिन्दुस्तान को लगता।

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