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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


यात्रियों के मनोरंजन के लिए स्टीमरों पर खेलों का प्रबंध किया गया था। बड़े दिन का त्यौहार आया। कप्तान ने उस दिन पहले दर्जे के यात्रियों को पश्चिमी सभ्यता पर भाषण किया। मैं जानता था कि यह अवसर गम्भीर भाषण का नहीं होता, पर मैं दूसरा कोई भाषण दे ही नहीं सकता था। मैं आनन्द में सम्मिलित हुआ, पर मेरा दिल तो डरबन में चल रही लड़ाई में ही लगा हुआ था, क्योंकि इस हमले में मध्य बिन्दु मैं था। मुझ पर दो आरोप थे :

1. मैंने हिन्दुस्तान में नेटालवासी गोरों की अनुचित निन्दा की थी।

2. मैं नेटाल को हिन्दुस्तानियों से भर देना चाहता था और इसलिए खासकर नेटाल में बसाने के लिए हिन्दुस्तानियों को 'कुरलैण्ड' और 'नादरी' में भर कर लाया था।

मुझे अपनी जिम्मेदारी का ख्याल था। मेरे कारण दादा अबदुल्ला भारी नुकसान में पड़ गये थे। यात्रियों के प्राण संकट में था। और अपने परिवार को साथ लाकर मैंने उसे भी दुःख में डाल दिया था।

पर मैं स्वयं बिल्कुल निर्दोष था। मैंने किसी को नेटाल आने के लिए ललचाया नहीं था। 'नादरी' के यात्रियों को मैं पहचानता भी न था। 'कुरलैण्ड' में अपने दो-तीन रिश्तेदारो को छोड़कर बाकी के सैकड़ों यात्रियों के नाम-धाम तक मैं जानता न था। मैंने हिन्दुस्तान में नेटाल के अंग्रेजो के विषय में ऐसा एक भी शब्द नहीं कहा, जो नेटाल में कह चुका था। और जो कुछ मैंने कहा था, उसके लिए मेरे पास काफी प्रमाण थे।

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