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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


सिर्फ एक ही हफ्ता 'इंडियन ओपीनियन' को मर्क्युरी प्रेस से छपाना पड़ा।

मेरे साथ जितने भी सगे संबंधी आदि आये थे और व्यापार धंधे में लगे हुए थे, उन्हें अपने मत का बनाने और फीनिक्स में भरती करने का प्रयत्न मैंने शुरू किया। ये तो सब धन संग्रह करने का हौसला लेकर दक्षिण अफ्रीका आये थे। इन्हें समझाने का काम कठिन था। पर कुछ लोग समझे। उन सब में मगनलाल गाँधी का नाम अलग से लेता हूँ क्योंकि दूसरे जो समझे थे वे तो कम ज्यादा समय फीनिक्स में रहने के बाद फिर द्रव्य संचय में व्यस्त हो गये। मगनलाल गाँधी अपना धंधा समेटकर मेरे साथ रहने आये, तब से बराबर मेरे साथ ही रहे हैं। अपने बुद्धिबल से, त्याग शक्ति से और अनन्य भक्ति से वे मेरे आन्तरिक प्रयोगों के आरंभ के साथियो में आज मुख्य पद के अधिकारी है और स्वयं शिक्षित कारीगर के नाते मेरे विचार में वे उनके बीच अद्धितीय स्थान रखते है।

इस प्रकार सन् 1904 में फीनिक्स की स्थापना हुई और अनेक विडम्बनाओ के बीच भी फीनिक्स संस्था तथा 'इंडियन ओपीनियन' दोनों अब तक टिके हुए हैं।

पर इस संस्था की आरम्भिक कठिनाइयाँ और उससे मिली सफलताये -विफलताये विचारणीय है। उनका विचार हम दूसरे प्रकरण में करेंगे।

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