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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मैंने पोलाक को अपने साथ ही रहने के लिए बुला लिया और हम सगे भाइयो की तरह रहने लगे। जिस महिला के साथ पोलाक का विवाह हुआ, उसके साथ उनकी मित्रता कोई वर्षो से थी। दोनों ने यथासमय विवाह करने का निश्चय भी कर लिया था। पर मुझे याद पड़ता है कि पोलाक थोड़ा धन संग्रह कर लेने की बाट जोह रहे थे। मेरी तुलना में रस्किन का उनका अध्ययन कहीँ अधिक और व्यापक था। पर पश्चिम के वातावरण में रस्किन के विचारो को पूरी तरह आचरण में लाने का बात उन्हें सूझ नहीं सकती थी। मैंने दलील देते हुए कहा, 'जिसके साथ हृदय की गाँठ बँध गयी है, केवल धन की कमी के कारण उसका वियोग सहना अनुचित कहा जायेगा। आपके हिसाब से तो कोई गरीब विवाह कर ही नहीं सकता। फिर अब तो आप मेरे साथ रहते है। इसलिए घरखर्च का सवाल ही नहीं उठता। मैं यही ठीक समझता हूँ कि आप जल्दी अपना विवाह कर ले।'

मुझे पोलाक के साथ कभी दूसरी बार दलील करनी न पड़ती थी। उन्होंने मेरी दलील तुरन्त मान ली। भावी मिसेज पोलाक विलायत में थी। उनके साथ पत्र व्यवहार शुरू किया। वे सहमत हुई और कुछ ही महीनों में विवाह के लिए जोहानिस्बर्ग आ पहुँची।

विवाह में खर्च बिल्कुल नहीं किया था। विवाह की कोई खास पोशाक भी नहीं बनबायी थी। उन्हें धार्मिक विधि का आवश्यकता न थी। मिसेज पोलाक जन्म से ईसाई और मि. पोलाक यहूदी थे। दोनों के बीच सामान्य धर्म तो नीतिधर्म ही थी।

पर इस विवाह की एक रोचक प्रसंग यहाँ लिख दूँ। ट्रान्सवाल में गोरो के विवाह की रजिस्ट्री करने वाला अधिकारी काले आदमी की रजिस्ट्री नहीं करता था। इस विवाह का शहबाला (विवाह की सब रस्मों में वर के साथ रहने वाला व्यक्ति) मैं था। खोजने पर हमें कोई गोरा मित्र मिल सकता था। पर पोलाक के लिए वह सह्य न था। अतएव हम तीन व्यक्ति अधिकारी के सामने उपस्थित हुए। जिस विवाह में मैं शहबाला होऊँ उसमें वर-वधू दोनों गोरे ही होगे, अधिकारी को इसका भरोसा कैसे हो? उसने जाँच होने तक रजिस्ट्री मुलतवी रखनी चाही। उसके बाद का दिन नये साल का होने से सार्वजनिक छुट्टी का दिन था। ब्याह के पवित्र निश्चय से निकले हुए स्त्री पुरुष के विवाह की रजिस्ट्री का दिन बदला जाय, यह सब को असह्य प्रतीत हुआ। मैं मुख्य न्यायाधीश को पहचानता था। वे इस विभाग के उच्चाधिकारी थे। मैं इस जोड़े को लेकर उनके सामने उपस्थित हुआ। वे हँसे और उन्होंने मुझे चिट्ठी लिख दी। इस तरह विवाह की रजिस्ट्री हो गयी।

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