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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा

रवानगी


मि. केलनबैक हिन्दुस्तान जाने के निश्चय से हमारे साथ निकले थे। विलायत में हम साथ ही रहते थे। पर लड़ाई के कारण जर्मनो पर कड़ी नजर रखी जाती थी, इससे केलनबैक के साथ आ सकने के विषय में हम सब को सन्देह था। उनके लिए पासपोर्ट प्राप्त करने का मैंने बहुत किया। मि. रॉबर्टसे स्वयं उनके लिए पासपोर्ट प्राप्त करा देने के लिए तैयार थे। उन्होंने सारी हकीकत का तार वाइसरॉय के नाम भेजा, पर लार्ड हार्डिग का सीधा औऱ दो टूक उत्तर मिला, 'हमे खेद है। लेकिन इस समय ऐसा कोई खतरा उठाने के लिए हम तैयार नहीं है।' हम सब इस उत्तर के औचित्य को समझ गये। केलनबैक के वियोग का दुःख मुझे तो हुआ ही, पर मैंने देखा कि मुझसे अधिक दुःख उन्हे हुआ। वे हिन्दुस्तान आ सके होते, तो आज एक सुन्दर किसान और बुनकर का सादा जीवन बिताते होते। अब वे दक्षिण अफ्रीका में अपना पहले का जीवन बिता रहे है और गृह निर्माण कला को अपना धंधा धडल्ले से चला रहे है।

हमने तीसरे दर्जे के टिकट लेने का प्रयत्न किया, पर पी. एंड ओ. जहाज में तीसरे दर्जे के टिकट नहीं मिलते। अतएव दूसरे दर्जे के लेने पड़े। दक्षिण अफ्रीका से साथ बाँध कर लाया हुआ कुछ फलाहार, जो जहाजो में मिल ही नहीं सकता था, साथ ले लिया। दूसरी चीजे तो जहाज में मिल सकती थी।

डॉ. मेंहता ने मेरे शरीर को मीड्ज प्लास्टर की पट्टी से बाँध दिया था और सलाह दी थी कि मैं यह पट्टी बँधी रहने दूँ। दो दिन तक तो मैंने उसे सहन किया, लेकिन बाद में सहन न कर सका। अतएव थोड़ी मेंहनत से पट्टी उतार डाली और नहाने-धोने की आजादी हासिल की। खाने में मुख्यतः सूखे और गीले मेंवे को ही स्थान दिया। मेरी तबीयत दिन-प्रतिदिन सुधरती गयी और स्वेज की खाड़ी में पहुँचते पहुँचते तो बहुत अच्छी हो गयी। शरीर दुर्बल था, फिर भी मेरा डर चला गया और मैं धीरे धीरे रोज थोडी कसरत बढ़ाता गया। मैंने माना कि यह शुभ परिवर्तन केवल शुद्ध समशीतोष्ण हवा के कारण ही हुआ था।

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