लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस बातचीत के समय मुवक्किल उपस्थित थे।

मैंने कहा, 'मेरा तो ख्याल है कि मुवक्किल को और हम दोनों को ऐसी जोखिमे उठानी ही चाहिये। हमारे स्वीकार न करने पर भी अदालत भूलभरे फैसले को भूल मालूम हो जाने पर बहाल रखेगी, इसका क्या भरोसा है? और भूल सूधारने की कोशिश में मुवक्किल को नुकसान उठाना पड़े, तो क्या हर्ज होगा। '

बड़े वकील ने कहा, 'लेकिन हम भूल कबूल करें तब न?'

मैंने जवाब दिया, 'हमारे भूल न स्वीकार करने पर भी अदालत उस भूल के नहीं पकड़ेगी अथवा विरोधी पक्ष उसका पता नहीं लगायेगा, इसका भी क्या भरोसा है?'

बड़े वकील ने ढृढता पूर्वक कहा, 'तो इस मुकदमे में आप बहस करेंगे? भूल कबूल करने की शर्त पर मैं उसमें हाजिर रहने को तैयार नहीं हूँ।'

मैंने नम्रता पूर्वक कहा, 'यदि आप न खड़े हो और मुवक्किल चाहे, तो मैं खडा होने को तैयार हूँ। यदि भूल कबूल न की जाय, तो मैं मानता हूँ कि मुकदमे में काम करना मेरे लिए असंभव होगा।'

इतना कहकर मैंने मुवक्किल की तरफ देखा। मुवक्किल थोड़े से परेशान हुए। मैं तो मुकदमो में शुरू से ही था। मुवक्किल का मुझ पर पूरा विश्वास था। वे मेरे स्वभाव से भी पूरी तरह परिचित थे। उन्होंने कहा, 'ठीक है, तो आप ही अदालत में पैरवी कीजिये। भूल कबूल कर लीजिये। भाग्य में हारना होगा तो हार जायेगे। सच्चे का रखवाला राम तो है ही न?'

मुझे खुशी हुई। मैंने दूसरे जवाब की आशा न रखी थी। बड़े वकील ने मुझे फिर चेताया। उन्हें मेरे 'हठ' के लिए मुझ पर तरस आया, लेकिन उन्होंने मुझे धन्यववाद भी दिया।

अदालत में क्या हुआ इसकी चर्चा आगे होगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

लोगों की राय

No reviews for this book