जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
ऐसे मामलो में तीसरे दर्जे के यात्रियों की जाँच करना आवश्यक हैं। बड़े माने जानेवाले लोग भी तीसरे दर्जे में यात्रा करे, तो उन्हें गरीबो पर लागू होनेवाले नियमों का स्वेच्छा से पालन करना चाहिये। पर मेरा अनुभव यह हैं कि अधिकारी तीसरे दर्जे के यात्रियों को आदमी समझने के बदले जानवर जैसा समझते हैं। 'तू' के सिवा उनके लिए दसरा कोई सम्बोधन ही नहीं होता। तीसरे दर्जे का यात्री न तो सामने जवाब दे सकता है, न बहस कर सकता हैं। उसे इस तरह का व्यवहार करना पड़ता हैं, मानो वह अधिकारी का नौकर हो। अधिकारी उसे मारते पीटते हैं, उसे लूटते हैं, उसकी ट्रेन छुड़वा देते हैं, उसे टिकट देने में हैरान करते हैं।
यह सब मैंने स्वयं अनुभव किया हैं। इस वस्तुस्थिति में सुधार तभी हो सकता हैं जब कुछ पढे-लिखे और धनिक लोग गरीबो जैसे बने बने, तीसरे दर्जे में यात्रा करके गरीब यात्रियों को न मिलने वाली सुविधा का उपयोग न करे और अड़चनो, अशिष्टता, अन्याय और बीभत्सता को चुपचाप न सहकर उसका सामना करे और उन्हे दूर कराये। काठियावाड़ में मैं जहाँ-जहाँ भी घूमा वहाँ-वहाँ मैं वीरमगाम की चुंगी -सम्बन्धी जाँच की शिकायते सुनी।
अतएव मैंने लार्ड विलिंग्डन के दिये हुए निमंत्रण का तुरन्त उपयोग किया। इस सम्बन्ध में जो भी कागज-पत्र मिले, उन सबको मैं पढ़ गया। मैंने देखा कि शिकायतों में बहुत सच्चाई हैं। इस विषय में मैंने बम्बई सरकार से पत्र व्यवहार शुरू किया। सेक्रेटरी से मिला। लार्ड विलिंग्डन से भी मिला। उन्होंने सहानुभूति प्रकट की, किन्तु दिल्ली की ढील की शिकायत की।
सेक्रेटरी ने कहा, 'हमारे ही हाथ की बात होती, तो हमने यह चुंगी कभी की उठा दी होती। आप केन्द्रीय सरकार के पास जाइये।'
मैंने केन्द्रीय सरकार से पत्र-व्यवहार शुरू किया, पर पत्रो की पहुँच के अतिरिक्त कोई उत्तर न पा सका। जब मुझे लार्ड चेम्सफर्ड से मिलने का मौका मिला तब अर्थात् लगभग दो बरस के पत्र-व्यवहार के बाद मामले की सुनवाई हुई। लार्ड चेम्सफर्ड से बात करने पर उन्होंने आश्चर्य प्रकच किया। उन्हें वीरमगाम की कोई जानकारी नहीं थी। उन्होंने मेरी बात ध्यान-पूर्वक सुनी और उसी समय टेलिफोन करके वीरमगाम के कागज-पत्र मँगवाये
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