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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


हमने यह सोच लिया था कि वे उसके अक्षर को न जानकर उसकी आत्मा को जाने और उसका अनुकरण करे तो बस है। यही असल चीज है। अतएव कांग्रेस की ओर से किन्ही गुप्त या प्रकट दूतो द्वारा कोई भूमिका तैयार नहीं करायी गयी थी। राजकुमार शुक्ल में हजारों लोगों में प्रवेश करने की शक्ति नहीं थी। उनके बीच किसी में आज तक राजनीति का काम किया ही नहीं था। चम्पारन के बाहर की दुनिया को वे आज भी नहीं जानते थे। फिर भी उनका और मेरा मिलाप पुराने मित्रों जैसा लगा। अतएव यह करने में अतिशयोक्ति नहीं बल्कि अक्षरशः सत्य है कि इस कारण मैंने वहाँ ईश्वर का, अहिंसा का और सत्य का साक्षात्कार किया। जब मैं इस साक्षात्कार के अपने अधिकार की जाँच करता हूँ, तो मुझे लोगों के प्रति अपने प्रेम के सिवा और कुछ भी नहीं मिलता। इस प्रेम का अर्थ है, प्रेम अर्थात अहिंसा के प्रति मेरी अविचल श्रद्धा।

चम्पारन का यह दिन मेरे जीवन में कभी न भूलने जैसा था। मेरे लिए और किसानो के लिए यह एक उत्सव का दिन था। सरकारी कानून के अनुसार मुझ पर मुकदमा चलाया जानेवाला था। पर सच पूछा जाय तो मुकदमा सरकार के विरूद्ध था। कमिश्नर ने मेरे विरूद्ध जो जाल बिछाया था उसमें उसने सरकार को ही फँसा दिया।

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