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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


इस सभा में मौलाना हसरत मोहानी भी थे। उनसे मेरी जान-पहचान तो हो ही चुकी थी। पर वे कैसे लड़वैया है, इसका अनुभव मुझे यहीँ हुआ। यहीं से हमारे बीच मतभेद शुरू हुआ और कुई मामलो में वह आखिर तक बना रहा।

कई प्रस्तावो में एक प्रस्ताव यह भी था कि हिन्दू-मुसलमान सबको स्वदेशी-व्रत का पालन करना चाहिये और उसके लिए विदेशी कपड़े का बहिस्कार करना चाहिये। खादी का पुनर्जन्म अभी नहीं हुआ था। मौलाना हसरत मोहानी को यह प्रस्ताव जँच नहीं रहा था। यदि अंग्रेजी हुकूमत खिलाफत के मामले में इन्साफ न करे, तो उन्हें उससे बदला लेना था। इसलिए उन्होंने सुझाया कि यथासंभव हर तरह के ब्रिटिश माल का बहिस्कार करना चाहिये। मैंने हर तरह के ब्रिटिश माल के बहिस्कार की आवश्यकता और अयोग्यता के बारे में अपनी वे दलीले पेश की, जो अब सुपरिचित हो चुकी है। मैंने अपनी अहिंसा-वृति का भी प्रतिपादन किया। मैंने देखा कि सभा पर मेरी दलीलो का गहरा असर पड़ा है। हसरत मोहानी की दलीले सुनकर लोग ऐसा हर्षनाद करते थे कि मुझे लगा, यहाँ मेरी तूती की आवाज कोई नहीं सुनेगा। पर मुझे अपना धर्म चूकना और छिपाना नहीं चाहिये, यह सोचकर मैं बोलने के लिए उठा। लोगों ने मेरा भाषण बहुत ध्यान से सुना। मंच पर तो मुझे संपूर्ण समर्थन मिला और मेरे समर्थन में एक के बाद एक भाषण होने लगे। नेतागण यह देख सके कि ब्रिटिश माल के बहिस्कार का प्रस्ताव पास करने से एक भी हेतु सिद्ध नहीं होगा। हाँ, हँसी काफी होगी। सारी सभी में शायद ही कोई ऐसा आदमी देखने में आता था, जिसके शरीर पर कोई-न-कोई ब्रिटिश वस्तु न हो। इतना तो अधिकांश लोग समझ गये कि जो बात सभा में उपस्थित लोग भी नहीं कर सकते, उसे करने का प्रस्ताव पास होने के लाभ के बदले हानि ही होगी।

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