जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मित्र देखते रहे। उन्होंने पुस्तक बन्द कर दी। 'बस, अब मैं बहस नहीं करुगा,' यह कहकर वे चुप हो गया। मैं खुश हुआ। इसके हाद उन्होंने बहस करना छोड़ दिया।
पर मेरे बारे में उनकी चिन्ता दूर न हुई। वे बीडी पीते थे, शराब पीते थे। लेकिन मुझसे कभी नहीं कहा कि इनमें से एक का भी मैं सेवन करुँ। उलटे, वे मुझे मना ही करते रहे। उन्हे चिन्ता यह थी कि माँसाहार के अभाव में मैं कमजोर हो जाऊँगा। और इंग्लैंड में निश्तन्ततापूर्वक रह न सकूँगा।
इस तरह एक महीने तक मैंने नौसिखुए के रुप में उम्मीदवारी की। मित्र का घर रिचमन्ड में था, इसलिए मैं हफ्ते में एक या दो बार ही लंदन जा पाता था। डॉक्टर मेंहता और भाई दलपतराम शुक्ल ने सोचा कि अब मुझे किसी कुटुम्ब में रहना चाहिये। भाई शुक्ल ने केन्सिग्टन में एक एंग्लोइण्डिन का घर खोज निकाला। घर की मालकिन एक विधवा थी। उससे मैंने माँस-त्याग की बात कही। बुढिया ने मेरी सार-संभाल की जिम्मेदारी ली। मैं वहाँ रहने लगा।
वहाँ भी मुझे रोज भूखा रहना पड़ता था। मैंने घर से मिठाई वगैरा खाने की चीजे मंगाई थी, पर वे अभी आयी नहीं थी। सब कुछ फीका लगता था। बुढ़िया हमेशा पूछती, पर वह करे क्या? तिस पर मैं अभी तक शरमाता था। बुढ़िया के दो लड़कियाँ थी। वे आग्रह करके थोड़ी अधिक रोटी देती। पर वह बेचारी क्या जाने कि उनकी समूची रोटी खाने पर ही मेरी पेट भर सकता था?
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