जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
माता व्यवहार-कुशल थीं। राज-दरबार की सब बातें वह जानती थीं। रनिवास में उनकी बुद्धि की अच्छी कदर होती थी। मैं बालक था। कभी-कभी माताजी मुझे भी अपने साथ दरबार गढ़ ले जाती थी। 'बा-मांसाहब' के साथ होने वाली बातों में से कुछ मुझे अभी तक याद हैं।
इन माता-पिता के घर में संवत् 1925 की भादों बदी बारस के दिन, अर्थात 2 अक्तूवर, 1869 को पोरबन्दर अथवा सुदामापुरी में मेरा जन्म हुआ।
बचपन मेरा पोरबन्दर में ही बीता। याद पड़ता है कि मुझे किसी पाठशाला में भरती किया गया था। मुश्किल से थोड़े से पहाड़े मैं सीखा था। मुझे सिर्फ इतना याद है कि मैं उस समय दूसरे लड़कों के साथ अपने शिक्षकों को गाली देना सीखा था। और कुछ याद नहीं पड़ता। इससे मैं अंदाज लगाता हूँ कि मेरी मेरी बुद्धि मंद रही होगी, और स्मरण शक्ति उन पंक्तियों के कच्चे पापड़-जैसी होगी, जिन्हें हम बालक गाया करते थे। वे पंक्तियाँ मुझे यहाँ देनी ही चाहिए:
एकड़े एक, पापड़ शेक,
पापड़ कच्चो, --- मारो ----।
पहली खाली जगह में मास्टर का नाम होता था। उसे मैं अमर नहीं करना चाहता। दूसरी खाली जगह में छोड़ी गई गाली रहती थी, जिसे भरने की आवश्यकता नहीं।
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