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धर्म एवं दर्शन >> कामना और वासना की मर्यादा

कामना और वासना की मर्यादा

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9831

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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।

पुत्र से यौवन लेकर राजा ययाति पुन: भोगों में डूब गए और पूरे एक सहस्र वर्षों तक डूबे रहे। उन्हें पूरी आशा थी कि वे विषय-वासना के माध्यम से सच्ची सुख-शांति पा लेंगे। किंतु एक सहस्र वर्ष बीतने पर जब पुत्र को यौवन वापस करने का अवसर आया तो उन्होंने देखा कि उनकी भोग-लिप्सा और अधिक बढ़ गई है। विवशतावश उन्हें पुत्र का यौवन लौटाना पड़ा और एक अशांत मृत्यु मरने के पश्चात शायद गिरगिट की योनि भोगनी पड़ी। भोगों तथा विषय-वासना में सुखशांति का स्वप्न देखने वालों की यही दशा होना संभाव्य है।

मनुष्य के साध्य, सुख और शांति का निवास कामनाओं, उपादानों अथवा भोग-विलासों में नहीं है। वह कम से कम कामनाओं, अधिक से अधिक त्याग और विषय-वासनाओं के विष से बचने में ही पाया जा सकता है। जो निस्वार्थी, निष्काम, पुरुषार्थी, परोपकारी, संतोषी तथा परमार्थी है, सच्ची सुख-शांति का अधिकारी वही है। सांसारिक स्वार्थों एवं लिप्साओं के बंदी मनुष्य को सुख-शांति की कामना नहीं करनी चाहिए।

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