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धर्म एवं दर्शन >> कामना और वासना की मर्यादा

कामना और वासना की मर्यादा

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :50
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9831

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कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है।

इच्छा की पूर्ति में क्रियाशील रहने से मनुष्य के शक्ति-कोषों का उद्घाटन होता है, जिससे दिन-दिन वह विकास और उन्नति की ओर बढ़ता हुआ अपने को परम पद के योग्य बना लेता है।

अनुचित साधन अथवा उपाय अपनाने वाले व्यक्ति की आत्मा पर भी पाप की छाया पड़ती है, जिससे परमात्मा का एक अंश आत्मा का अपमान होता है, जो कदाचित किसी भी दशा में किसी को वांछनीय न होगा। शुभ साधनों के प्रयोग से इच्छा की पूर्ति में विलंब हो सकता है, अधिक परिश्रम करना पड़ सकता है, किंतु कठिन परिश्रम के बाद जो पुरुषार्थ का फल मिलेगा वह स्वर्ग से कम सुखदायक नहीं हो सकता।

अनुचित साधनों से आई हुई सफलता विष-फल से भी भयानक होती है। विष-फल केवल मनुष्य के प्राण ही लेता है, किंतु अनौचित्यजन्य फल मनुष्य का ओज-तेज, पुण्य-प्रभाव सबको नष्ट कर देता है और मनुष्य को जीवित दशा में ही घृणित शव बना देता है।

इच्छाओं का उदय और उनकी पूर्ति का प्रयत्न पाप नहीं। पाप है - उनका निकृष्ट एवं अनुचित सिद्ध होना।

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