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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


शांतिनिकेतन में कवि का मन लग नहीं रहा था। विद्यालय को चलाने के बारे में अध्यापकों के रवैये से वह बहुत दु:खी थे।

कवि को एंड्रूज के जरिए खबर मिली कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका से अब हमेशा के लिए भारत लौटना चाहते हैं। एंड्रूज की कोशिशों से गांधी जी के फीनिक्स स्कूल के छात्रों ने शांतिनिकेतन में दाखिला लिया। यह सन् 1915 की बात है। इन छात्रों में गाधी जी के बेटे देवदास और उनके भतीजे मगनलाल भी थे। कुछ दिनों के बाद वहां गांधी जी भी कस्तूरबा गांधी के साथ पहुंचे। लेकिन जल्दी ही गांधी जी को पुणे जाना पड़ा। वहां से गोपालकृष्ण के देहांत की खबर आई थी।

उस बार रवीन्द्रनाथ से गांधी जी की भेंट नहीं हो पाई थी। उन्हीं दिनों आचार्य कृपलानी शांतिनिकेतन आए। वे उन दिनों मुजफ्फरपुर कालेज के प्रधानाचार्य और इतिहास के अध्यापक थे। बातों-बातों में उन्होंने गांधी जी से कहा, ''इतिहास बताता है कि अहिंसा के रास्ते पर चलकर कभी किसी देश को आजादी नहीं मिली।'' गांधी जी ने जवाब दिया था, ''इतिहास लिखने का काम अभी खत्म कहां हुआ है।''

रवीन्द्रनाथ से गांधी जी की भेंट भी हुई और आपस में बातें भी। छात्रों को अपने हाथों से अपना काम करते न देखकर गांधी जी नाराज हुए। उन्होंने कहा, ''अब छात्रों को सभी काम अपने हाथों से करना पड़ेगा। ''रवीन्द्रनाथ ने इसका परिणाम जानते हुए भी अपनी सहमति दे दी। गांधी जी और उनके फीनिक्स स्कूल के छात्रों के साथ आश्रम के छात्र भी सब्जी काटने, बर्तन मांजने, रसोई पकाने, घर-द्वार की सफाई करने, पखाना साफ करने आदि कामों में जुट गए। गांधी जी और उनके फीनिक्स स्कूल के छात्र कुछ दिनों बाद कुंभ-मेला देखने चले गए। वहां से उनका दूसरी जगह जाने का कार्यक्रम बन गया। लेकिन इन कुछ दिनों में ही उन्होंने शांतिनिकेतन में एक नई हवा बहा दी थी। 10 मार्च 1913 को शांतिनिकेतन में पहली बार छात्रों को इस तरह का चुनौती भरा काम करना पड़ा था। इसीलिए आज भी हर साल यह दिन शांतिनिकेतन में ''गांधी पुण्याह'' के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सारे छात्रों को अपना काम अपने हाथों से करना पड़ता है।

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