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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


रवीन्द्रनाथ मास्को के प्रसिद्ध ''कृषि भवन'' भी देखने गए। कुछ दिनों के बाद उनके चित्रों की वहां नुमाइश हुई। उन्होंने मास्को आर्ट थियेटर में टॉल्सटाय का 'रिजरेक्शन' और बैले (नृत्य नाटिका) भी देखा। वे मास्को में दो सप्ताह रहे। उन्होंने एक चिट्ठी में लखा था-''यहां जो बात सबसे ज्यादा पसंद आई, वह यह कि यहां पैसे से होने वाली बुराइयां देखने को नहीं मिलीं। सिर्फ इसी कारण इस देश में आम जनता का आत्मसम्मान इतना प्रबल है।'' रूस के बारे में विभिन्न लोगों को लिखी उनकी चिट्ठियां बाद में राशियार चिठि'' (रूस की चिट्ठी) नामक किताब में छपीं।'' रवीन्द्रनाथ ने रूस की कृषि और शिक्षा व्यवस्था की भरपूर प्रंशसा की थी, मगर वहां की राष्ट्र व्यवस्था आदि की आलोचना भी की थी, जिसे आज के अधिकतर वामपंथी भी सही ठहराते हैं।

मास्को से फिर बर्लिन। वहां से अमरीका। न्यूयार्क से बोस्टन। उसके बाद न्यू हैवेन के येल विश्वविद्यालय में। मगर बीमार हो जाने के कारण वहां भाषण नहीं दे पाए। वे फिलाडेल्फिया होते हुए न्यूयार्क लौटे। होटल बिल्टमोर में रवीन्द्रनाथ के लिए जबर्दस्त सम्मान सभा का आयोजन हुआ। वे अमरीका के राष्ट्रपति हूबर से भी मिलने गए। कार्नेगी हॉल में उनका भाषण हुआ। बहाई संप्रदाय के बुलावे पर उन्होंने जरथुस्य और बहाउल्ला के बारे में भाषण दिया। उस बार एक गूंगी, बहरी, अंधी मगर बेहद विदुषी महिला हेलन केलर से उनकी दोस्ती हुई। अमरीका में भी रवीन्द्रनाथ के चित्रों की नुमाइश हुई। उनके चित्रों के बारे में आनंद कुमारस्वामी ने एक बहुत अच्छा लेख लिखा। चिंतक लेखक विल डरंट से भी रवीन्द्रनाथ का परिचय हुआ। अमरीका छोड़ने के ठीक पहले रूथ डेनिस नाम की एक प्रसिद्ध नर्तकी ने रवीन्द्रनाथ की कुछ कविताओं पर नृत्य किया। उस नृत्य आयोजन से जो पैसा मिला, उसे रवीन्द्रनाथ ने न्यूयार्क के बेरोजगारों के सहायता कोष में दान दे दिया।

रवीन्द्रनाथ लंदन वापस लौटे। वहां से विश्वभारती के लिए धन जुटाने के काम में जुट गए। ''स्पेक्टर'' पत्रिका के संपादक ईवलिन रेंच ने रवीन्द्रनाथ को सम्मानित किया। इस सभा में जार्ज बर्नाड शॉ भी मौजूद थे। रवीन्द्रनाथ के साथ उनकी कई विषयों पर काफी लंबी बातचीत हुई।

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