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जीवनी/आत्मकथा >> रवि कहानी

रवि कहानी

अमिताभ चौधुरी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :130
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9841

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रवीन्द्रनाथ टैगोर की जीवनी


कवि शांतिनिकेतन लौटकर विद्यासागर स्मृति मंदिर का उद्घाटन करने मेदिनीपुर गए। हावड़ा स्टेशन पर रेल के डिब्बे में सुभाषचंद्र बोस उनसे मिलने पहुंचे। कांग्रेस हाईकमान से उनके मतभेद पर दोनों में बातें हुईं। मेदिनीपुर में भाषण देने के बाद रवीन्द्रनाथ शांतिनिकेतन लौट गए। वहां पौष मेला मनाया गया। उसमें भाषण देते हुए रवीन्द्रनाथ ने दूसरे महायुद्ध के खतरों की चर्चा की। उस बार 25 दिसम्बर को, ईसा मसीह के जन्मदिन पर लिखा-''एक दिन राजा को दुहाई देकर, कुछ लोगों ने ली थी उनकी जान।''

सन् 1940 में गांधी जी शांतिनिकेतन आए। साथ में उनकी पत्नी कस्तूरबा गांधी भी थी। उस दिन यानी 17 फरवरी को आम्रकुंज में कवि ने उनका स्वागत किया। गांधी जी ने कहा कि यहां आकर उन्हें लगता है जैसे वे अपने घर में ही आ गए हैं। शाम को ''उत्तरायण'' में उनके स्वागत में ''चंडालिका'' नृत्य नाटिका का मंचन हुआ। शांति निकेतन घूमने के बाद गांधी जी ने कहा, ''शांतिनिकेतन की यात्रा मेरे लिए तीर्थयात्रा की तरह है।''

19 फरवरी को शांतिनिकेतन से जाते समय रवीन्द्रनाथ ने बोलपुर स्टोशन पहुंचकर गांधी जी के हाथों में एक लिफाफा थमाया। गाड़ी छूटने के बाद गांधी जी ने लिफाफे को खोलकर पढ़ा। रवीन्द्रनाथ ने लिखा था कि उनकी मृत्यु के बाद गांधी जी शांतिनिकेतन का भार संभाल लें। गांधी जी ने तुरंत जवाब में लिखा, ''आप सौ साल जिएं।'' विश्वभारती और शांतिनिकेतन के बारे में जो कुछ संभव था उसे करने की उन्होंने हामी भर दी। गांधी जी ने कलकत्ता में अबुलकलाम आजाद को वह चिट्ठी दिखाई। नेहरू जी को भी। उसी के आधार पर रवीन्द्रनाथ की मृत्यु के दस साल और गांधी जी मृत्यु के तीन साल बाद केन्द्र सरकार ने विश्वभारती की जिम्मेदारी ले ली।

रवीन्द्रनाथ सिउड़ी में एक नुमाइश का उद्घाटन करने गए। वहां से लौटकर आए बांकुड़ा। वहां भी एक नुमाइश का उद्घाटन किया। अपने स्वागत के जवाब में उन्होंने एक भाषण दिया। कुछ दिनों बाद कलकत्ता के एक नर्सिंग होम में दीनबंधु एंड्रूज की मृत्यु की खबर उन्हें मिली। रवीन्द्रनाथ ने बहुत दु:खी होकर कहा, ''मेरी आंखों के सामने उनकी उस दिन की छवि तैर रही है, जब गांव की लाल मिट्टी की धूल में मैले हो गए कपड़े पहनकर, अपनी बार-बार खुल जाती धोती की लांग संभालते हुए वे किसी संन्यासी की तरह जा रहे थे।

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