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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है


जीवन में सफलता के लिए जहाँ परिश्रम एवं पुरुषार्थ की अनिवार्य आवश्यकता है, वहाँ समय का सामंजस्य उससे भी अधिक आवश्यक है। जिस समय को बरबाद कर दिया जाता है, उस समय में किया जाने के लिए निर्धारित श्रम भी नष्ट हो जाता है। श्रम तभी संपत्ति बनता है, जब वह समय में संयोजित कर दिया जाता है और समय तब ही संपदा के रूप में संपन्नता एवं सफलता ला सकता है, जब उसका श्रम के साथ सदुपयोग किया जाता है। समय का सदुपयोग करने वाले स्वभावत: परिश्रमी बन जाते हैं, जबकि असामयिक परिश्रमी आलसी की कोटि का ही व्यक्ति होता है। समय का सदुपयोग ही वास्तविक श्रम है।

आलस्य और प्रमाद में हम बहुत समय गँवाते हैं। यदि हम अपने दिनभर के कार्यों पर दृष्टिपात करें और उसका विश्लेषण करें तो प्रतीत होगा कि अधिकांश समय या तो आलस्य में, सुस्ताने में या बदन तोड़ते बीता अथवा गपशप और व्यर्थ की बकवासों में समय की बरबादी हुई। उसी खाली समय का उपयोग कर अपनी योग्यता और क्षमता बढ़ाई जा सकती थी। तत्पर और फुर्तीला मनुष्य एक घंटे में दाल-रोटी बना-खाकर निश्चिंत हो सकता है, पर आलसी और ढीला व्यक्ति उसी काम को अव्यवस्थित ढंग से करते रहने पर आधा दिन गुजार देगा। लोग ऐसे ही ऊँघने, सुस्ताने, जैसे-तैसे करते-धरते छोटे-छोटे थोड़े-से कामों में अपना सारा समय बरबाद कर लेते हैं, जबकि मुस्तैदी और समय का मूल्य समझने वाले व्यक्ति उतने से समय में दस गुने काम निपटाकर रख देते हैं।

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