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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

संतुलित जीवन के व्यावहारिक सूत्र

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9843

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मन को संतुलित रखकर प्रसन्नता भरा जीवन जीने के व्यावहारिक सूत्रों को इस पुस्तक में सँजोया गया है



साधन संपदा का सदुपयोग करें


साधनों की कहीं कमी नहीं। वे योग्यता, श्रमशीलता और मनोयोग बढ़ाकर अभीष्ट मात्रा में उपार्जित किए जा सकते हैं। ईमानदारी से कमाने और सद्प्रयोजनों में ही उन्हें प्रयुक्त करने वाले धन को सार्थक बनाते हैं। धन की थोड़ी मात्रा भी सदुपयोग के आधार पर महान प्रतिफल प्रदान करती है जबकि विपुल संपदा वाले भी उसका दुरुपयोग करने पर उसे नष्ट करते, साथ ही स्वयं भी नष्ट होते हैं। छेद होने पर नौका पानी में डूब जाती है।

यह एक स्मरणीय तथ्य है कि योग्यता, श्रम और मनोयोग के संयोग से ही साधन बनते हैं, बढ़ते हैं। धन सार्थक बनता है, नेकी से कमाने और भलाई में खर्च करने से, घातक बनता है दुरुपयोग से। छोटी-सी छिद्रहीन नौका पार कर देगी, बड़ी-से-बड़ी छेद वाली होगी तो डुबा देगी। साधन कमाना मनुष्य के हाथ में है। गई- गुजरी परिस्थितियौ में भी अनेक व्यक्तियों ने पुरुषार्थ के माध्यम से साधन जुटाकर स्वयं को संपन्न बनाया है। योग्यता अकेली पर्याप्त नहीं। योग्यता के साथ परिश्रम एवं काम में तन्मयता का संपुट न हो तो वह भी निरर्थक ही चली जाती है। एक बार कमा लेने पर भी उसके यदि सदुपयोग का मार्ग न बनाया गया तो वह सारा परिश्रम व्यर्थ ही जाता है, उपार्जनकर्त्ता को कष्ट पहुँचाता व अपयश का भागी बनाता है।

जीवन निर्वाह के लिए कई वस्तुओं की आवश्यकता पड़ती है। इस आवश्यकता को पूरा करने के लिए श्रम चाहिए पर श्रम द्वारा सभी आवश्यक वस्तुएँ जुटाने में बड़ा समय चाहिए इसलिए यह व्यवस्था की गई है कि श्रम का मूल्य धन के रूप में प्राप्त कर लिया जाए और उस धन से अपनी विभिन्न आवश्यकताएँ पूरी होती रहें। धन कमाने का मुख्य उद्देश्य जीवनयापन के लिए दैनिक एवं मूल आवश्यकताओं को पूरा करना ही है।

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