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शुक्रवार व्रत कथा

गोपाल शुक्ला

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2015
पृष्ठ :18
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9846

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इस व्रत को करने वाला कथा कहते व सुनते समय हाथ में गुड़ व भुने चने रखे, सुनने वाला सन्तोषी माता की जय - सन्तोषी माता की जय बोलता जाये


वह कहने लगा- “माता सोता भी नहीं, जागता भी नहीं हूं कहो क्या आज्ञा है?”

मां कहने लगी- “तेरे घर-बार कुछ है कि नहीं?”

वह बोला- “मेरे पास सब कुछ है मां-बाप है बहू है क्या कमी है।”

मां बोली- “भोले पुत्र तेरी बहू घोर कष्ट उठा रही है, तेरे मां-बाप उसे त्रास दे रहे हैं। वह तेरे लिए तरस रही है, तू उसकी सुध ले।”

वह बोला- “हां माता जी यह तो मालूम है, परंतु जाऊं तो कैसे? परदेश की बात है, लेन-देन का कोई हिसाब नहीं, कोई जाने का रास्ता नहीं आता, कैसे चला जाऊं?”

मां कहने लगी- “मेरी बात मान, सवेरे नहा धोकर संतोषी माता का नाम ले, घी का दीपक जला दण्डवत कर दुकान पर जा बैठ। देखते-देखते सारा लेन-देन चुक जाएगा, जमा का माल बिक जाएगा, साझ होते-होते धन का भारी ढेर लग जाएगा।”

अब सवेरे जल्दी उठ भाई-बंधुओं से सपने की सारी बात कहता है। वे सब उसकी अनसुनी कर दिल्लगी उड़ाने लगे। कभी सपने भी सच होते हैं। एक बूढ़ा बोला- “देख भाई मेरी बात मान, इस प्रकार झूंठ-सांच करने के बदले देवता ने जैसा कहा है वैसा ही करने में तेरा क्या जाता है।”

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