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व्यवहारिक मार्गदर्शिका >> वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848

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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।

राष्ट्र के उन सभी छात्र-छात्राओं, युवक-युवतियों को युग का आह्वान है, जो न केवल स्वयं को, बल्कि समूचे राष्ट्र को सुशिक्षित, सुसंस्कारित एवं स्वावलंबी बनाना चाहते हैं। जिनके हृदय में कसक है, अपनी राष्ट्रीय परिस्थितियों के प्रति विकलता का भाव है, जिनका मन कुछ सार्थक करने के लिए व्याकुल, बेचैन है। उनकी शक्ति से ही राष्ट्रीय नव निर्माण की चतुरंगिणी खड़ी की जायेगी, जो सृजन का सार्थक एवं सफल अभियान रचेगी।

राष्ट्र की सभी युवा भावनाओं को संबोधित करते हुए चिरयुवा स्वामी विवेकानंद ने कहा था- 'हम सभी को इस समय कठिन श्रम करना होगा। हमारे कार्यों पर ही भारत का भविष्य निर्भर है। देखिये! भारतमाता धीरे-धीरे आंख खोल रही हैं। अब तुम्हारे निद्रामग्न रहने का समय नहीं है। उठिये और माँ भगवती को जगाइये और पूर्व की तरह उन्हें महागौरव मंडित करके, भक्तिभाव से उन्हें अपने महिमामय सिंहासन पर प्रतिष्ठित कीजिए।

इसके लिए सर्वप्रथम प्रत्येक युवा को पहले स्वयं मनुष्य बनना होगा। तब वे देखेंगे कि बाकी सब चीजें अपने आप ही स्वयं उनका अनुगमन करने लगेंगी। परस्पर के घृणित भाव को छोड़िए एक दूसरे से विवाद तथा कलह का परित्याग कर दीजिए और सदुद्देश्य, सदुपाय, सत्साहस एवं सद्वीर्य का आश्रय लीजिए। किंतु भलीभांति स्मरण रखिए यदि आप अध्यात्म को छोड्कर पाश्चात्य भौतिकता प्रधान सभ्यता के पीछे दौड़ने लगेंगे, तो फिर प्रगति के स्वप्न कभी भी पूरे न होंगे।

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