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वर्तमान चुनौतियाँ और युवावर्ग

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :60
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9848

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मेरी समस्त भावी आशा उन युवकों में केंद्रित है, जो चरित्रवान हों, बुद्धिमान हों, लोकसेवा हेतु सर्वस्वत्यागी और आज्ञापालक हों, जो मेरे विचारों को क्रियान्वित करने के लिए और इस प्रकार अपने तथा देश के व्यापक कल्याण के हेतु अपने प्राणों का उत्सर्ग कर सकें।

सामाजिक स्थिति में समय-समय पर बदलाव तो आते ही रहते हैं। कभी सकारात्मक और कभी नकारात्मक। वर्तमान समय में तो परिवार, समाज और राष्ट्र की धुरी बहुत बुरी तरह से लड़खड़ा रही है और संपूर्ण व्यवस्था में आमूलचूल परिवर्तन आवश्यक हो गया है। प्रश्न है - इसे कौन कर सकता है? और कौन करेगा?

इतिहास साक्षी है कि संसार में जितनी भी महत्त्वपूर्ण क्रांतियों हुई हैं, उनमें युवाओं की भूमिका सदैव ही अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। मानव जीवन का सर्वश्रेष्ठ समय युवावस्था ही होता है। उत्साह एवं उमंग से भरपूर युवाओं में पहाड़ से टकराने की ललक होती है। कठिन से कठिन परिस्थितियों से भी जूझने का साहस होता है। उनकी शारीरिक एवं मानसिक शक्तियां भी अपने विभिन्न रूपों में प्रस्फुटित होती हैं और असंभव को भी संभव कर दिखाने की क्षमता रखती हैं। वस्तुत: युवा है ही अपरिमित ऊर्जस्विता, उत्साह एवं कुछ कर गुजरने की तमन्ना का नाम, जिसके स्वभाव में वे सभी गुण सहज ही विद्यमान होते हैं, जो किसी भी राष्ट्र व समाज का कायाकल्प करने के लिए पर्याप्त होते हैं। इस आधार पर इन्हें समाज की आशाओं एवं राष्ट्र के विश्वास का पर्याय कहना अनुचित न होगा।

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज के अनुसार भारत में 16 से 25 वर्ष के युवाओं की संख्या 21.5 करोड़ है। इतनी बड़ी जनशक्ति यदि नकारात्मक गतिविधियों में लिप्त हो जाए तो देश को शीघ्र ही रसातल में पहुँचा सकती है। पर यदि यह युवाशक्ति सकारात्मक और रचनात्मक मार्ग पर चल पड़े तो भारत को संसार का सिरमौर बना दे। आज अपने धनबल और बाहुबल के बूते कोई देश संसार में अपनी दादागिरी तो चला सकता है, पर केवल कुछ समय के लिए ही। अपने सद्गुणों और सद्विचारों के बल पर ही भारत कभी विश्व में जगद्गुरु कहलाता था। उसे पुन: उसी पद पर पुनर्स्थापित करने की सामर्थ्य केवल हमारी युवा पीढ़ी में ही है।

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