एप्पल आई ट्यून्स अथवा आई बुक्स में कुछ लोकप्रिय धार्मिक पुस्तकें
काम श्री रामकिकंर जी पृष्ठ 25 मूल्य $ 0.99 'काम' शब्द बड़ा अनोखा है और इस शब्द को लेकर अनेक 'मत' और 'अर्थ' हमारे सामने आते हैं। परम्परा तो काम की निन्दा की गयी है पर यदि हम गहराई से दृष्टि डालें तो देखते हैं कि रामचरितमानस तथा हमारे अन्य धर्मग्रन्थों में काम की प्रवृत्ति और उसके स्वरूप का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया गया है, वह बड़ा ही गंभीर है। यदि हम विचार करके देखें तो यहाँ उपस्थित हम-सब एवं सम्पूर्ण समाज के मूल में ईश्वर तो है ही, पर संसार के निर्माण में हमें काम की वृत्ति ही दिखायी देती है। काम की वृत्ति के विविध पक्ष हैं। काम क्या दुष्ट वृत्ति ही है? क्या वह 'खल' और निन्दनीय है? जैसा कि 'मानस |
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कृपा श्री राम किंकर जी पृष्ठ 28 मूल्य $ 0.99 आज हम कृपा के बारे में कुछ चर्चा करेंगे। आज, मुझसे परिचित एक गायक महोदय ने प्रश्न किया कि कृपा के संदर्भ में प्रारब्ध और पुरुषार्थ का क्या स्थान है? और क्या कृपा से प्रारब्ध को टाला जा सकता है? कहा जा सकता है कि पुरुषार्थ और सद्गुणों का व्यक्ति के जीवन में बड़ा महत्त्व है |
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क्रोध श्री राम किंकर जी पृष्ठ 32 मूल्य $ 0.99 आइये! क्रोध की वृत्ति पर विचार करें। क्रोध की यह वृत्ति हम सब के जीवन में दिखायी देती है। शायद ही कोई ऐसा बिरला व्यक्ति हो, जिसके जीवन में इसका उदय न होता हो! ऐसा तो हो सकता है कि कुछ लोग अपनी इस वृत्ति को बाहर प्रकट होने से रोकते हों और किसी तरह अपने आप को शान्त बनाये रखने का यत्न करते हों। पर क्रोध की वृत्ति संसार के समस्त प्राणियों की प्रकृति में दिखायी देती है। |
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परशुराम संवाद श्री राम किंकर जी पृष्ठ 23 मूल्य $ 0.99 आजकल रामलीला में लोगों को लक्ष्मण-परशुराम तथा अंगद-रावण संवाद अधिक रोचक प्रतीत होता है जिसमें अधिक भीड़ होती है। जिस दिन झगड़े की बात हो, तू-तू, मैं-मैं हो, उस दिन लोगों को अधिक रस की अनुभूति होती है। बहिरंग दृष्टि यही है, पर ‘रामायण’ में ये दोनों प्रसंग गम्भीर हैं। दोनों प्रसंग एक-दूसरे के पूरक हैं। उस सूत्र पर आप दृष्टि डालिए, जिस संदर्भ में ये दोनों संवाद हुए हैं। धनुष टूटने पर परशुराम आते हैं और उनके गुरु शंकरजी के धनुष टूटने पर बड़ा क्रोध प्रदर्शित करत् हैं और लक्ष्मणजी से संवाद होता है। कहना तो यह चाहिए कि यह राम-राम संवाद है |
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प्रसाद श्री राम किंकर जी पृष्ठ 15 मूल्य $ 0.99 मेरा मन भौंरा है, आपके चरण-कमल के पराग के रस का पान करता रहे। इसका अभिप्राय यह है कि मन में अगर तृप्ति और रस का अनुभव होता रहे तो संसार के रस में क्यों पड़ना? संसार मनुष्य को विषयों में ले जाता है और विषय के बिना तो व्यक्ति जीवित नहीं रहेगा। जब शरीर ही नहीं रहेगा तो ऐसी स्थिति में क्या करें? इसका जो उत्तर दिया गया, वह यह है कि वस्तु को आप 'प्रसाद' के रूप में स्वीकार कीजिए। आप मिष्ठान्न भी ग्रहण कीजिए। सुन्दर वस्त्राभूषण भी धारण कीजिए, परन्तु इन वस्तुओं को पहले प्रसाद बनाइए और प्रसाद बना देने के पश्चात् उनको आप स्वीकार कीजिए। |
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प्रेममूर्ति भरत श्री राम किंकर जी पृष्ठ 236 मूल्य $ 4.99 भरत के व्यक्तित्व का दर्शन हमें ‘राम वन गमन’ के पश्चात् ही होता है। उसके पहले उनका चरित्र-मूक समर्पण का अद्भुत दृष्टान्त है जिसे देखकर कुछ भी निर्णय कर पाना साधारण दर्शक के लिये कठिन ही था। इसी सत्य को दृष्टिगत रख कर गोस्वामी जी ने ‘राम वन गमन’ के मुख्य कारण के रूप में भरत प्रेम-प्राकट्य को स्वीकार किया। जैसे देवताओं ने समुद्र-मन्थन के द्वारा अमृत प्रकट किया था ठीक उसी प्रकार राम ने भी भरत-समुद्र का मंथन करने के लिए चौदह वर्षो के विरह का मन्दराचल प्रयुक्त किया। और उससे प्रकट हुआ - राम प्रेम का दिव्य अमृत। प्रेम अमिय मन्दर विरह भरत पयोधि गँभीर। मथि प्रगटे सुर साधु हित कृपासिन्धु रघुबीर।। प्रस्तुत पुस्तक में इसी ‘अमृत-मन्थन’ की गाथा है। शैली-भावना प्रबल है और एक विशिष्ट भावस्थिति में लिखी भी गई है। |
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भगवान श्रीराम-सत्य या कल्पना श्री राम किंकर जी पृष्ठ 33 मूल्य $ 0.99 आज के युग का मानव एवं समाज उत्तरोत्तर दिग्मूढ़ होकर मूल्यहीनता के गम्भीर गर्त में गिरता जा रहा है। 'स्वार्थ' का दानव अपना विकराल मुँह फैलाए - मनुष्य की सुख-शांति को निगलता जा रहा है। हम पाश्चात्य देशों की भौतिक उन्नति-समृद्धि की चकाचौंध से प्रभावित होकर भोगवादी संस्कृति में अपनी अनुरक्ति बढा रहे हैं। भूमण्डलीकरण और बाजारवाद के इस दौर में मनुष्य स्वयं एक वस्तु बन गया है। त्याग, समर्पण, परहित, प्रेम, आदर्श एवं नैतिकता जैसे शब्द आज शब्दकोष तक सीमित होते जा रहे हैं, और सत्य यह है कि मानवीय मूल्य ही आदर्श मानव समाज के विकास और प्रगति के मूल आधार हैं। श्रीराम का चरित्र और श्रीराम की कथा ही इनका अक्षय कोष है जो हमें सुदृढ़ एवं सुसंस्कृत बनाती है। |
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मानस और भागवत में पक्षी श्री राम किंकर जी पृष्ठ 26 मूल्य $ 0.99 ‘श्रीरामचरितमानस’ विलक्षण एवं महत्त्वपूर्ण सांकेतिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है। यही बात ‘श्रीमद्भागवत’ के सन्दर्भ में भी है, ‘श्रीमद्भागवत्’ के वक्ता परमहंस शुकदेव हैं। यहाँ पर दो शब्द जुड़े हुए हैं, एक ओर तो उन्हें शुक के रूप में प्रस्तुत किया गया और शुक एक पक्षी है, पर उसके शुकत्व के साथ-साथ हंस शब्द भी जुड़ा हुआ है तथा उसका तात्पर्य यह है कि ‘श्रीमद्भागवत्’ के जो श्रेष्ठतम वक्ता हैं, चाहे आप उन्हें हंस के रूप में देखें और चाहे शुक के रूप में देखें, वे हमारे वंदनीय हैं। |
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विजय, विवेक और विभूति श्री राम किंकर जी पृष्ठ 20 मूल्य $ 0.99 तीन वस्तुएँ प्राप्त होती हैं - विजय, विवेक और विभूति, परन्तु किसको? एक शब्द जोड़ दिया गया कि जो ‘सुजान’ हैं। ‘रामायण’ का पाठ और श्रवण तो बहुधा अनेक लोग करते ही रहते हैं, परन्तु गोस्वामीजी ने जो ‘सुजान’ शब्द जोड़ दिया, यह बड़े महत्व का है। कहने वाला भी सुजान हो और सुनने वाला भी सुजान हो, यह गोस्वामीजी की शर्त है। यह सुजान शब्द कहाँ से जुड़ा हुआ है, इस पर ध्यान दीजिए! श्रीराम की जब रावण पर विजय हुई तो देवताओं ने आकाश से पुष्प वर्षा की और बधाई देने के लिए एकत्र हुए। उन्होंने कहा कि इस दुष्ट का वध करके आपने हम लोगों को धन्य कर दिया। |
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सुग्रीव और विभीषण श्री राम किंकर जी पृष्ठ 25 मूल्य $ 0.99 ‘श्रीरामचरितमानस’ में एक ओर श्रीसुग्रीव का चरित है और दूसरी ओर श्रीविभीषण हैं और दोनों के चरित में जो भगवान् का मिलन होता है, उस मिलन में श्रीहनुमान् जी ही मुख्य कारण बनते हैं। फिर भी सुग्रीव और विभीषण के चरित में अन्तर है और इस अन्तर का मुख्य तात्पर्य यह है कि भगवत्प्राप्ति के लिए किसी एक विशेष प्रकार के चरित और व्यक्ति का वर्णन किया जाय तो उसको सुनने वाले या पढ़ने वाले के मन में ऐसा लगता है कि इस चरित में जो सद्गुण हैं, जो विशेषताएँ हैं, वे हमारे जीवन में नहीं है और यदि किसी विशेष प्रकार के सद्गुण के द्वारा ही ईश्वर को पाया जा सकता है तो हम ईश्वर की प्राप्ति के अधिकारी नहीं हैं |
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लोभ, दान व दया श्री राम किंकर जी पृष्ठ 37 मूल्य $ 0.99 प्रत्येक व्यक्ति स्वयं अपने आपमें ही संघर्षरत है एक ओर यह दशेन्द्रियों में भोगासक्त होकर निरंतर विषयों का सुखानुभव कर रहा है। यही भोगासक्ति मूल रूप से परोत्पीड़न वृत्ति की जन्मदात्री है। दूसरी ओर जीव सच्चिदानंद ईश्वर का अंश होने के कारण स्वयं आनन्दमय है। अतएव अपने आत्मस्वरूप को पहचानकर वह स्वयं में रमण करने वाला आत्माराम बन जाता है। देहवाद एवं भोगासक्ति द्वारा जिस छलनावृत्ति का जन्म होता है उसी के द्वारा वह दूसरों के स्थान पर स्वयं को ही छल रहा है। इसे वह नहीं जान पाता। |
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सच्चा सुख जयदयाल गोयन्दका पृष्ठ 24 मूल्य $ 0.99 विचार करने पर प्रत्येक बुद्धिमान् पुरुष इस बात को समझ सकता है कि मनुष्य जन्म की प्राप्ति से कोई अत्यन्त ही उत्तम लाभ होना चाहिये। खाना, पीना, सोना, मैथुन करना आदि सांसारिक भोगजनित सुख तो पशु-कीटादि तक नीच योनियों में भी मिल सकते हैं। यदि मनुष्य-जीवन की आयु भी इसी सुख की प्राप्ति में चली गयी तो मनुष्य-जन्म पाकर हमने क्या किया? मनुष्य-जन्म का परम ध्येय तो उस अनुपमेय और सच्चे सुख को प्राप्त करना है, जिसके समान कोई दूसरा सुख है ही नहीं। |
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सच्चा गुरु कौन? स्वामी रामसुखदास पृष्ठ 22 मूल्य $ 0.99 जिससे प्रकाश मिले, ज्ञान मिले, सही मार्ग दीख जाय, अपना कर्तव्य दीख जाय, अपना ध्येय दीख जाय, वह गुरु-तत्त्व है। वह गुरु-तत्त्व सबके भीतर विराजमान है। वह गुरु-तत्त्व जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट हो जाय, उसी को अपना गुरु मानना चाहिये। वास्तव में भगवान् ही सबके गुरु हैं; क्योंकि संसार में जिस-किसी को ज्ञान, प्रकाश मिलता है वह भगवान से ही मिलता है। वह ज्ञान जहाँ-जहाँ से, जिस-जिससे प्रकट होता है अर्थात् जिस व्यक्ति, शास्त्र आदि से प्रकट होता है वह गुरु कहलाता है। |
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श्रीशंकराचार्य की वाणी स्वामी ब्रह्मस्थानन्द पृष्ठ 44 मूल्य $ 1.99 वैदिक धर्म तथा संस्कृति के लिए श्रीशंकराचार्य ने बहुत बड़ा कार्य किया है। उपनिषद् ब्रह्मसूत्र तथा गीता पर भाष्य लिखकर उन्होंने हमें धर्म का यथार्थ स्वरूप समझाया है। ज्ञान के साथ भक्ति का आविष्कार भी हम उनके जीवन में देखते हैं। उनकी दिव्य वाणी सभी को नयी शक्ति तथा प्रेरणा देती है। |
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श्रीमद्भगवद्गीता महर्षि वेदव्यास पृष्ठ 146 मूल्य $ 4.99 'श्रीमद्भगवद्गीता' आनन्दचिदघन, षडैश्वर्यपूर्ण, चराचरवन्दित, परमपुरुषोत्तम साक्षात् भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य वाणी है। यह अनन्त रहस्यों से पूर्ण है। परम दयामय भगवान् श्रीकृष्ण की कृपा से ही किसी अंश में इसका रहस्य समझ में आ सकता है। जो पुरुष परम श्रद्धा और प्रेममयी विशुद्ध भक्ति से अपने हृदय को भरकर भगवद्गीता का मनन करते हैं, वे ही भगवत्कृपा का प्रत्यक्ष अनुभव करके गीता के स्वरूप की किसी अंश में झाँकी कर सकते हैं। |
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गायत्री और यज्ञोपवीत श्रीराम शर्मा आचार्य पृष्ठ 33 मूल्य $ 0.99 यज्ञोपवीत का उद्देश्य मानवीय जीवन में उस विवेक को जागृत करना होता है, जिससे वह अपने वर्तमान-भूत-भविष्य को सुखी और सम्पन्न बना सके। जो लोग अपना जीवन लहर में पड़े फूल-पत्तों की तरह अच्छी बुरी परिस्थितियों के साथ घसीटते रहते हैं वह कहीं भी हों, दुःखी ही रहते हैं; किन्तु हम जब प्रत्येक कार्य विचार और योजनाबद्ध तरीके से पूरा करते हैं तो भूलें कम होती हैं और हम अनेक संकटों से अनायास ही बच जाते हैं। |
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गीतांजलि रवीन्द्रनाथ टैगोर पृष्ठ 151 मूल्य $ 4.99 'गीतांजलि' गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर (1861-1941) की सर्वाधिक प्रशंसित और पठित पुस्तक है। इसी पर उन्हें 1910 में विश्व प्रसिद्ध नोबेल पुरस्कार भी मिला। इसके बाद अपने पूरे जीवनकाल में वे भारतीय साहित्याकाश पर छाए रहे। साहित्य की विभिन्न विधाओं, संगीत और चित्रकला में सतत सृजनरत रहते हुए उन्होंने अन्तिम साँस तक सरस्वती की साधना की और भारतवासियों के लिए 'गुरुदेव' के रूप में प्रतिष्ठित हुए। |
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गोस्वामी तुलसीदास सूर्य़कान्त त्रिपाठी निराला पृष्ठ 35 मूल्य $ 1.99 पद्य में कहानी कहने की प्रथा प्राचीनकाल से प्रचलित है। प्रस्तुत कविता भी एक कथा-वस्तु को लेकर निर्मित हुई है। गोस्वामी तुलसीदास किस प्रकार अपनी स्त्री पर अत्यधिक आसक्त थे, और बाद को उसी के द्वारा उन्हें किस प्रकार राम की भक्ति का निर्देश हुआ,--यह कथा जन-साधारण में प्रचलित है। इसी कथा की नींव पर कवि ने इस लम्बी कविता की रचना की है; कारण यह है कि उसने कथा-तत्त्व में और बहुत-सी बातें देखी हैं जो जन-साधारण की दृष्टि से ओझल रही हैं। |
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राम की शक्ति पूजा सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला पृष्ठ 21 मूल्य $ 0.49 सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’ आधुनिक हिन्दी काव्य के प्रमुख स्तम्भ हैं। राम की शक्ति पूजा उनकी प्रमुख काव्य कृति है। निराला ने राम की शक्ति पूजा में पौराणिक कथानक लिखा है, परन्तु उसके माध्यम से अपने समकालीन समाज की संघर्ष की कहानी कही है। राम की शक्ति पूजा में एक ऐसे प्रसंग को अंकित किया गया है, जिसमें राम को अवतार न मानकर एक वीर पुरुष के रूप में देखा गया है, दो रावम जैसे लम्पट, अधर्मी और अनंत शक्ति सम्पन्न राक्षसराज पर विजय पाने में तब तक समर्थ नहीं होते जब तक वे शक्ति की आराधना नहीं करते हैं |
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असंभव क्रांति ओशो पृष्ठ 171 मूल्य $ 4.99 प्रस्तुत पुस्तक ओशो के माथेरान आश्रम में 1967 में हुए साधना शिविर में चार दिनों में दिये गये प्रवचनों का अनुपम संग्रह है। इन प्रवचनों में जीवन के विभिन्न रूपों और स्थितियों पर ओशो ने प्रकाश डाला है। |
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नाचो जीवन है नाच ओशो पृष्ठ 104 मूल्य $ 4.99 प्रस्तुत पुस्तक में ओशो के अलग-अलग स्थानों 1967-68 में हुए प्रवचनों का अनुपम संग्रह है। इन प्रवचनों में जीवन के विभिन्न रूपों और स्थितियों पर ओशो ने प्रकाश डाला है। |
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क्या धर्म? क्या अधर्म? श्री राम शर्मा आचार्य पृष्ठ 37 मूल्य $ 0.99 धर्म और अधर्म का प्रश्न बड़ा पेचीदा है। जिस बात को एक समुदाय धर्म मानता है, दूसरा समुदाय उसे अधर्म घोषित करता है। इस पेचीदगी के कारण धर्म का वास्तविक तत्व जानने वाले जिज्ञासुओं को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ता है। मानवीय बौद्धिक विकास के साथ-साथ 'क्यों और कैसे’ का बहुत प्राबल्य हुआ है। इस युग का मनुष्य सिर्फ इतने से ही संतुष्ट नहीं हो सकता कि अमुक पुस्तक में ऐसा लिखा है या अमुक व्यक्ति ने ऐसा कहा है। आज तो तर्क और प्रमाणों से युक्त बुद्धि संगत बात ही स्वीकार की जाती है। |
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कामना और वासना की मर्यादा अवधेश सिंह पृष्ठ 95 मूल्य $ 4.99 कामना एवं वासना को साधारणतया बुरे अर्थों में लिया जाता है और इन्हें त्याज्य माना जाता है। किंतु यह ध्यान रखने योग्य बात है कि इनका विकृत रूप ही त्याज्य है। अपने शुद्ध स्वरूप में मनुष्य की कोई भी वृत्ति निंदनीय नहीं है, वरन एक प्रकार से आवश्यक और उपयोगी मानी जाती है। जीवन रक्षा और जीवन विकास के लिए कामना तथा इच्छा का होना अनिवार्य है। इनके बिना तो किसी में कुछ करने का उत्साह ही पैदा नहीं होगा और मनुष्य फिर कष्टसाध्य प्रयत्न, श्रमशीलता में संलग्न ही क्यों होगा। |
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गौ माता चालीसा प्रेमनारायण पाठक पृष्ठ 8 मूल्य $ 0.11 गौएँ प्राणियों का आधार तथा कल्याण की निधि है। भूत और भविष्य गौओं के ही हाथ में है। वे ही सदा रहने वाली पुष्टिका कारण तथा लक्ष्मी की जड हैं। गौओं की सेवा में जो कुछ दिया जाता है, उसका फल अक्षय होता है। गौ-माता की आराधना हेतु प्रेमनारायण ने चालीसा की रचना की है। |
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प्रेरक कहानियाँ कन्हैया लाल पृष्ठ 22 मूल्य $ 0.99 कन्हैयालाल जी ने सभी आयु के पाठकों हेतु प्रेरणादायक कहानियों को प्रस्तुत किया है। सभी कहानियां स्वस्थ मनोरंजन करने के साथ ही कुछ न कुछ शिक्षा भी देती हैं। |
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बोध कथाएं विनोबा भावे पृष्ठ 14 मूल्य $ 0.49 विनोबा भावे एक महान विचारक, लेखक और विद्वान थे जिन्होंने ना जाने कितने लेख लिखने के साथ-साथ संस्कृत भाषा को आम जन मानस के लिए सहज बनाने का भी सफल प्रयास किया. विनोबा भावे एक बहुभाषी व्यक्ति थे. उन्हें लगभग सभी भारतीय भाषाओं (कन्नड़, हिंदी, उर्दू, मराठी, संस्कृत) का ज्ञान था. वह एक उत्कृष्ट वक्ता और समाज सुधारक भी थे। आमजनों के लिए वे ज्ञानपरक कथाएं भी कहते रहते थे। उन्हीं में से कुछ बोध कथाएं इसपुस्तक में संकलित हैं |
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भज गोविन्दम् आदि शंकराचार्य पृष्ठ 23 मूल्य $ 0.99 ‘भज गोविन्दम्’ देखने में भले ही छोटा ग्रन्थ लगे, परन्तु वास्तव में आदि शंकर की यह एक महत्वपूर्ण रचना है। इसमें वेदान्त के मूल आधार की शिक्षा सरल गान में दी गई है, ताकि कोई बुद्धिमान व्यक्ति अगर इसका अध्ययन सच्चाई के साथ करे तो उसके सारे मोह नष्ट हो सकते हैं, और इसीलिए इसका एक मान पड़ा ‘मोह-मुद्गर’। |
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मूर्तिपूजा और नामजप स्वामी रामसुखदास पृष्ठ 27 मूल्य $ 0.99 ज्ञानमार्ग कठिन है और ज्ञानमार्ग की साधना बताने वाले अनुभवी पुरुषों का मिलना भी बहुत कठिन है। अत: विवेकमार्ग में चलना कलियुग में बहुत कठिन है। तात्पर्य है कि इस कलियुग में कर्म, भक्ति और ज्ञान-इन तीनों का होना बहुत कठिन है, पर भगवान का नाम लेना कठिन नहीं है। भगवान का नाम सभी ले सकते हैं; क्योंकि उसमें कोई विधि-विधान नहीं है। उसको बालक, स्त्री, पुरुष, वृद्ध, रोगी आदि सभी ले सकते हैं और हर समय, हर परिस्थिति में, हर अवस्था में ले सकते हैं। |
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वीर बालक हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ 47 मूल्य $ 0.99 गीता प्रेस से प्रकाशित 'कल्याण' के 'बालक-अंक' में प्रकाशित 19 वीर बालकों के चरित्र इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहे हैं। ये चरित्र अपूर्व आत्मत्याग तथा बलिदान के सजीव चित्र हैं। आशा है इन्हें पढ़कर बच्चों एवं बड़ों में बलिदान और त्याग की भावना जाग्रत होगी। - हनुमान प्रसाद पोद्दार |
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वीर बालिकाएँ हनुमान प्रसाद पोद्दार पृष्ठ 43 मूल्य $ 0.99 गीता प्रेस से प्रकाशित 'कल्याण' के 'बालक-अंक' में प्रकाशित 17 वीर बालिकाओं के चरित्र इस पुस्तक में प्रस्तुत कर रहे हैं। ये चरित्र अपूर्व आत्मत्याग तथा बलिदान के सजीव चित्र हैं। आशा है इन्हें पढ़कर बच्चों एवं बड़ों में बलिदान और त्याग की भावना जाग्रत होगी। -हनुमान प्रसाद पोद्दार |
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