शब्द का अर्थ
|
अश्व-मेघ :
|
पुं० [सं०√मेध् (हिंसा)+घञ्, अश्व-मेघ, ष० त०] १. यज्ञ में घोड़े की बलि देना। २. एक प्रसिद्ध बड़ा यज्ञ जिसमें घोड़े के सिर पर जय-पत्र बाँधकर उसे चारों ओर घूमने के लिए छोड़ देते थे, और यदि उसे कोई पकड़ लेता था, तो उसे मार या जीतकर वह घोड़ा छुड़ा लेते थे, और तब उसी घोड़े की बलि चढ़ाकर यज्ञ करते थे। (ऐसा यज्ञ करना दिग्विजयी सम्राट् होने का लक्षण माना जाता था) ३. संगीत में, एक प्रकार की तान जिसमें षड़ज को छोड़कर बाकी सब स्वर लगते है। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
|