शब्द का अर्थ
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उच्चाट :
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पुं० [सं० उद्√चट्(फूटना या फाड़ना)+घञ्] १. उचटने या उचाटने की क्रिया या भाव। २. चित्त का ऊब जाना और फलतः कहीं न लगना। उदासीनता। विरक्ति। उदाहरण—भई वृत्ति उच्चाट भभरि आई भरि छाती।—रत्नाकर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उच्चाटन :
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पुं० [सं० उद्√चट्+णिच्+ल्युट्-अन] [वि० उच्चाटनीय, भू० कृ० उच्चाटित] १. कहीं चिपकी ,लगी या सटी हुई चीज खींचकर वहाँ से अलग करना या हटाना। उचाड़ना। २. उदासीनता या विरक्ति होना। मन उचटना। ३. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जिसमें मंत्र-यंत्र आदि के द्वारा किसी का मन किसी भी स्थान से या किसी व्यक्ति की ओर से हटाने का प्रयत्न किया जाता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उच्चाटित :
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भू० कृ० [सं० उद्√चट्+णिच्+क्त] १. उखाड़ा हुआ। उचाड़ा हुआ। २. जिसके ऊपर उच्चाटन का प्रयोग किया गया हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
उच्चाट :
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पुं० [सं० उद्√चट्(फूटना या फाड़ना)+घञ्] १. उचटने या उचाटने की क्रिया या भाव। २. चित्त का ऊब जाना और फलतः कहीं न लगना। उदासीनता। विरक्ति। उदाहरण—भई वृत्ति उच्चाट भभरि आई भरि छाती।—रत्नाकर। |
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उच्चाटन :
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पुं० [सं० उद्√चट्+णिच्+ल्युट्-अन] [वि० उच्चाटनीय, भू० कृ० उच्चाटित] १. कहीं चिपकी ,लगी या सटी हुई चीज खींचकर वहाँ से अलग करना या हटाना। उचाड़ना। २. उदासीनता या विरक्ति होना। मन उचटना। ३. एक प्रकार का तांत्रिक प्रयोग जिसमें मंत्र-यंत्र आदि के द्वारा किसी का मन किसी भी स्थान से या किसी व्यक्ति की ओर से हटाने का प्रयत्न किया जाता है। |
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उच्चाटित :
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भू० कृ० [सं० उद्√चट्+णिच्+क्त] १. उखाड़ा हुआ। उचाड़ा हुआ। २. जिसके ऊपर उच्चाटन का प्रयोग किया गया हो। |
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