शब्द का अर्थ
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खग :
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पुं० [सं० ख√गम् (गति)+ड] १. वह जो आकाश या हवा में उड़ता हो। जैसे–ग्रह, नक्षत्र, किन्नर, गंधर्व, देवता, मेघ आदि। २. हवा में पंखों के सहारे उड़नेवाले जीव। पक्षी। ३. वायुयान। ४. तीर। बाण। ५. वायु। हवा। पुं० =खड्ग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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खग-केतु :
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पुं० [ष० त०] गरुड़। |
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खगना :
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अ० [हिं० खाँग=काँटा] १. गड़ना। २. चित्त में जमना या बैठना। ३. लीन होना। ४. अंकित या चिह्नित होना। ५. खड़ा होना। उदाहरण–सखि सूधे सभाय लख्यो भज जात सो टेढ़ो ह्वै मारग बीच खग्यौ।–घनानन्द। ६. अड़ना। ७. उलझना। फँसना। उदाहरण–न्हात रहीं जल मैं सब तरुनी, तब तुव नैना कहाँ खगे।–सूर। ८. कसा जाना। स.१. कसना। २. बाँधना। ३. लीन करना। अ० [सं० क्षीण] १. क्षीण होना। कम होना। घटना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खग-नाथ :
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पुं० [ष० त०] १. गरुड़। २. सूर्य। |
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खगवार :
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पुं० [सं० खड्गवान् ?] गले का हँसुली नामक आभूषण। उदाहरण–पन्ना सौं जटित मानौं हेम खगवारो है।–सेनापति। |
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खगहा :
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वि० दे० ‘खँगहा’। |
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खगांतक :
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पुं० [खग-अंतक, ष० त०] बाज पक्षी। |
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खगासन :
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पुं० [खग-आसन, ब.स.] १. विष्णु। २. उदयगिरि। |
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खगि :
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स्त्री० =खड्ग।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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खगेंद्र :
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पुं० [खग-इंद्र, ष० त.] गरुड़। |
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खगेश :
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पुं० [खग-ईश, ष० त०] पक्षियों के राजा गरुड़। |
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खगोलक :
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पुं० [सं० खगोल+कन्]=खगोल। |
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खगोल मिति :
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स्त्री० [ष० त०] गणित ज्योतिष का वह अंग या शाखा जिसमें तारों, नक्षत्रों आदि की नाप-जोख, दृश्य स्थितियों, गतियों आदि का विचार होता है। (एस्ट्रोमेट्री) |
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खगोल-विद्या :
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स्त्री० [ष० त०] आकाश के ग्रहों, नक्षत्रों आदि की गति विधि का विवेचन करनेवाली विद्या। ज्योतिष। (एस्ट्रानोमी) |
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खग्ग :
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स्त्री०=खड्ग। |
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