शब्द का अर्थ
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दाक :
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पुं० [सं०√दा (देना)+क, कलोपाभाव] १. यजमान। २. दाता। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दाक्ष :
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वि० [सं० दक्ष+अण्] दक्ष संबंधी। पुं० दक्षिण दिशा। |
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दाक्षायण :
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वि० [सं० दाक्षि+फक्—आयन] १. दक्ष-संबंधी। दक्ष का। २. दक्ष से उत्पन्न या उसके वंश का। ३. दक्ष के गोत्र का। पुं० १. सोना। स्वर्ण। २. सोने की मोहर। अशरफी। ३. सोने का बना हुआ गहना। ४. एक यज्ञ जो वैदिक काल में दक्ष प्रजापति ने किया था। |
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दाक्षायणी-पति :
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पुं० [ष० त०] चंद्रमा। |
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दाक्षायण्य :
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पुं० [सं० दाक्षायणी+यत्] सूर्य। |
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दाक्षि :
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पुं० [सं० दक्ष+इञ्] दक्ष का पुत्र। |
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दाक्षि-कंथा :
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स्त्री० [ष० त०] वाह्लीक देश। |
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दाक्षिण :
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वि० [सं०] दक्षिण दिशा में होनेवाला। दक्षिण-संबंधी। पुं० एक होम का नाम (शतपथब्राह्मण) |
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दाक्षिणक :
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पुं० [सं० दक्षिणा+वुञ्—अक] वह बंध जो दक्षिणा की कामना से इष्टापूर्ति आदि कर्म करने पर प्राप्त होता है। |
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दाक्षिणात्य :
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वि० [सं० दक्षिणा+त्यक्, नि० आदि पद वृद्धि] दक्षिण दिशा में होनेवाला। दक्षिणी। पुं० १. दक्षिण भारत। २. उक्त प्रदेश का निवासी। ३. उक्त प्रदेश में होनेवाला नारियल। |
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दाक्षिणिक :
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वि० [सं० दक्षिण+ठक्—इक] दक्षिण-संबंधी। दक्षिणी। |
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दाक्षिण्य :
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वि० [सं० दक्षिण+ष्यञ्] दक्षिण संबंधी। पुं० १. दक्षिण होने की अवस्था या भाव। २. अनुकूल या प्रसन्न आदि होने की अवस्था या भाव। ३. दूसरे को प्रसन्न करने का भाव अथवा योग्यता। (साहित्यशास्त्र) |
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दाक्षी :
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स्त्री० [सं० दाक्षि+ङीष्] १. दक्ष की कन्या। २. पाणिनी की माता का नाम। |
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दाक्षेय :
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पुं० [सं० दाक्षी+ढक्—एय] पाणिनी मुनि। |
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दाक्ष्य :
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पुं० [सं० दक्ष+ष्यञ्] दक्षता। |
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