शब्द का अर्थ
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दिक् (श्) :
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स्त्री० [सं०√दिश्+क्विन्] दिशा। तरफ। ओर। विशेष—दिक् शब्द का मूल रूप दिश् है किन्तु समस्त शब्दों में संधि के अनुसार कहीं इसके रूप दिक्, कहीं दिग् और कहीं दिङ दिखाई पड़ेंगे। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
दिक :
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वि० [अ० दिक] १. जिसे बहुत कष्ट पहुँचाया गया हो। हैरान। तंग। जैसे—तुम तो बहुत दिक करते हों। २. अस्वस्थ। बीमार। पुं० क्षय नामक रोग। तपेदिक। |
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दिकचन :
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पुं० [देश०] एक प्रकार का ऊख जिसका गुड़ बहुत अच्छा बनता है। |
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दिकदाह :
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पुं० दे० ‘दिग्दाह’। |
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दिकली :
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स्त्री० [?] चने की दाल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दिकाक :
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पुं० [अ० दकीक=बारीक] किसी चीज का कटा हुआ छोटा टुकड़ा। कतरन। धज्जी। वि० [अ० दकियानूस] बहुत बड़ा चालक। खुर्राट। स्त्री० [?] बर्रे। भिड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दिक्क :
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पुं० [सं० दिश्√कै (शब्द करना)+क] हाथी का बच्चा। वि०, पुं०=दिक। |
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दिक्कत :
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स्त्री० [अ०] १. दिक होने की अवस्था या भाव। २. कष्ट। तकलीफ। ३. परेशानी। हैरानी। ४. कठिनता। मुश्किल। जैसे—यह काम बहुत दिक्कत से होगा। |
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दिक्-कन्या :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] दिशारूपी कन्या। प्रत्येक दिशा जो ब्रह्मा की कन्या के रूप में मानी गई है। |
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दिक्कर :
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पुं० [सं० दिक्√कृ (करना)+टच्] [स्त्री० दिक्करिका] १. महादेव। शिव। २. नवयुवक। जवान। |
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दिक्करवासिनी :
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स्त्री० [सं० दिक्कर√वस् (बसना)+णिनि+ङीष्] पुराणानुसार दिक्कर अर्थात् महादेव मे निवास करनेवाली एक देवी। |
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दिक्किर :
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पुं०=दिक्करी। |
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दिक्करिका :
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स्त्री० [सं० दिक्करिन्√कै (शौभिक होना)+क+टाप्] पुराणानुसार एक नदी जो मानसरोवर के पश्चिम में बहती है। यह नदी दिग्गजों के क्षेत्र से निकली हुई मानी गई है। |
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दिक्करी (रिन्) :
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पुं० [सं० दिश्(क्)-करि (री) न्, ष० त०] आठों दिशाओं के ऐरावत आदि आठ हाथी। दिग्गज। |
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दिक्कांता :
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स्त्री० [सं० कर्म० स०] दिक् कन्या। |
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दिक्-कुमार :
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पुं० [ष० त०] जैनियों के अनुसार भवनपति नामक देवताओं में से एक। |
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दिक्-चक्र :
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पुं० [ष० त०] आठों दिशाओं का समूह। |
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दिक्-पति :
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पुं० [ष० त०] १. ज्योतिष के अनुसार दिशाओं के स्वामी ग्रह। २. दे० ‘दिक्पाल’। |
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दिक्पाल :
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पुं० [सं० दिक्√पाल् (पालना)+णिच्+अण्] १. पुराणानुसार दसों दिशाओं का पालन करनेवाला देवता। यथा-पूर्व के इन्द्र, अग्निकोण के वह्रि, दक्षिण के यम, नैऋत्यकोण के नैऋत, पश्चिम के वरूण, वायु कोण के मरूत्, उत्तर के कुबेर, ईशान कोण के ईश, ऊर्ध्व दिशा के ब्रह्मा और अधो दिशा के अनंत। २. चौबीस मात्राओं का एक छंद जिसमे १२ मात्राओं पर विराम होता है। उर्दू का रेख्ता यही छंद है। |
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दिक्-शूल :
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पुं० [स० त०]=दिशा मूल। |
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दिक्-साधन :
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पुं० [ष० त०] वह उपाय या क्रिया जिससे दिशाओं का ठीक ज्ञान हो। |
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दिक्-सुन्दरी :
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स्त्री० [कर्म० स०] दे० ‘दिक्कन्या’। |
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दिक्-स्वामी (मिन्) :
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पुं० [ष० त०]=दिक्पति। |
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दिक्षा :
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स्त्री०=दीक्षा। |
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दिक्षागुरु :
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पुं०=दीक्षा गुरु। |
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दिक्षित :
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भू० कृ०=दीक्षित। |
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दिक्षृक्षेण्य :
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वि० [सं० √दृश्+सन्+केन्य] दिदृक्षेय। (दे०) |
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