शब्द का अर्थ
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दौं :
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अव्य० [सं० अथवा] अथवा। या। वा। (दे० ‘धौ’)। स्त्री० [सं० दोव] १. आग। उदा०—हिरदै अंदर दौँ लगी, धूआँ न परगट होय। २. गरमी के कारण लगनेवाली प्यास। ३. गरमी के कारण होनेवाली बेचैनी या विकलता। ४. जलन। क्रि० प्र०—लगना। |
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दौंकना :
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अ०=दमकना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौंगरा :
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पुं०=दवँगरा। |
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दौंच :
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स्त्री०=दोच (दुबिधा)। |
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दौंचना :
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स० [हिं० दबोचना] १. किसी पर दबाव डालकर उससे कुछ लेना। किसी न किसी प्रकार ले लेना। ३. लेने के लिए जोर से पकड़ना। ४. दबोचना। |
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दौंजा :
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पुं० [देश०] मचान। |
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दौंरी :
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स्त्री० [?] झुंड। स्त्री०=दँवरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौःशील्य :
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पुं० [सं० दुःशील+ब्यञ्] दुःशील होने की अवस्था या भाव। स्वभाव की दुष्टता। |
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दौःसाधिक :
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पुं० [सं० दुर्-साध प्रा० स०,+ठक्-इक] १. द्वारपाल। २. ग्राम-निरीक्षक। |
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दौ :
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स्त्री० [सं० दव] १. जंगल की आग। दावानल। २. जंगल। वन। ३. दुःख। संताप। ४. दाह। |
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दौकूल :
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वि० [सं० दुकूल+अण्] १. दुकूल-संबंधी। २. दुकूल या कपड़े का बना हुआ। |
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दौड़ :
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स्त्री. [हिं० दौड़ना] १. दौड़ने की क्रिया या भाव। मुहा०—दौड़ मारना या लगाना=(क) दौड़ते हुए कहीं जाना। (ख) लंबी यात्रा करना। चलकर बहुत दूर पहुँचना। २. ऐसी क्रीड़ा विशेषतः प्रतियोगिता जिसमें वेगपूर्वक आगे बढ़ा जाय। जैसे—घुड़दौड़। ३. किसी क्षेत्र में बहुत से लोगों का एक दूसरे से आगे बढ़ने के लिए किया जानेवाला प्रयत्न। ४. सिपाहियों का एकाएक किसी को पकड़ने अथवा तलाशी लेने के लिए किसी के घर पर वेगपूर्वक पहुँचना। ५. उक्त उद्देश्य से आने या पहुँचनेवाले सिपाही। ६. वेगपूर्वक किया जानेवाला आक्रमण। चढ़ाई। ७. गति, प्रयत्न का वेग या सीमा। जैसे—मियाँ की दौड़ मसजिद तक। क्रि० प्र०—लगाना। ८. बुद्धि या समझ की गति या सीमा। जैसे—बस यहीं तक तुम्हारी दौड़ है। ९. लंबाई या विस्तार का वह अंश जिस पर कोई चीज चलती या लगती हो या कोई काम होता हो। जैसे—साड़ी में बेल या बूटे की दौड़। १॰. किसी पदार्थ का लंबाई के बल का विस्तार। जैसे—इस दीवार की दौड़ ४॰ गज है। ११. जहाज पर की वह चरखी जिसमें लकड़ी डालकर घुमाने से वह जंजीर खिसकती है जिसमें पतवार बँधा रहता है। |
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दौड़-धपाड़ :
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स्त्री०=दौड़-धूप। |
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दौड़-धूप :
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स्त्री० [हिं० दौड़ना+धूपना=धापना] ऐसा प्रयत्न जिसमें अनेक स्थानों पर बार-बार आना-जाना तथा अनेक आदमियों से मिलना और उनसे अनुनय करनी पड़े। जैसे—चुनाव के समय उम्मीदवारों को काफी दौड़-धूप करनी पड़ती है। |
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दौड़ना :
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अ० [सं० धोरण] [भाव० दौड़ाई] १. जैव या अजैव वस्तुओं का तीव्र गति से किसी दिशा की ओर या किसी पथ पर बढ़ना। जैसे—(क) मनुष्य, हाथी या इंजन दौड़ना। (ख) कागज पर कलम दौड़ना। विशेष—मनुष्य तो दौड़ने के समय जब एक पैर जमीन पर रख लेता है, तब दूसरा पैर उठाता है; परन्तु पशु प्रायः उछल-उछल कर जमीन पर से अपने चारों पैरे ऊपर उठाते हुए दौड़ते हैं। संयो० क्रि०—जाना।—पड़ना। २. (व्यक्ति का) अपेक्षया अधिक तीव्र गति या वेग से किसी ओर जाना या बढ़ना। जैसे—दौड़कर मत चलो; नहीं तो ठोकर लगेगी। ३. किसी उद्देश्य की सिद्धि के लिए बार-बार कहीं आना-जाना। जैसे—अभी उसे दो-चार दिन दौड़ लेने दो, तब आप ही उसकी बुद्धि ठिकाने हो जायगी। मुहा०—दौड़ दौड़कर आना=जल्दी-जल्दी और बार-बार आना। जैसे—हमारे यहाँ दौड़-दौड़ कर तुम्हारा आना व्यर्थ है। दौड़ पड़ना=एकाएक तीव्र गति से या वेग से चलना आरंभ करना। जैसे—जहाँ तुम खेल-तमाशे का नाम सुनते हो, वहीं दौड़ पड़ते हो। (किसी काम या बात के पीछे) दौड़ पड़ना=बिना सोचे-समझे किसी ओर वेगपूर्ण प्रवृत्त होना। (किसी पर) चढ़ दौड़ना=आक्रमण या चढ़ाई करने के लिए बहुत तेजी से आगे बढ़ना। जैसे—गुंडे मार-पीट करने के लिए उनके मकान पर चढ़ दौड़े। ४. दौड़ की किसी प्रतियोगिता में सम्मिलित होना। ५. तरल पदार्थ के संबंध में, धारा का वेगपूर्वक किसी ओर बढ़ना। जैसे—(क) नसों में खून दौड़ना। (ख) नालियों में पानी दौड़ना। ६. किसी चीज का अंश या प्रभाव कार्यकारी, विद्यमान या व्याप्त होना। जैसे—(क) चेहरे पर लाली या स्याही दौड़ना। (ख) शरीर में जहर या विष दौड़ना। |
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दौड़हा :
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पुं० [हिं० दौड़ना+हा (प्रत्य०)] वह जिसका काम दौड़कर समाचार या पत्र आदि ले आना और ले जाना हो। हरकारा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौड़ाई :
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स्त्री० [हिं० दौड़ना+आई (प्रत्य०)] १. दौड़ने की क्रिया या भाव। २. बार-बार इधर से उधर आते-जाते रहने का काम या भाव। ३. दौड़ने के बदले में मिलनेवाला पारिश्रमिक या पुरस्कार। |
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दौड़ा-दौड़ :
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क्रि० वि० [हिं० दौड़+दौड़] [भाव० दौड़ा-दौड़ी] बहुत तेजी से और बिना रुके। बेतहाशा। जैसे—सब लोग दौड़ा-दौड़ वहाँ जा पहुँचे। स्त्री०=दौड़ा-दौड़ी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौड़ा-दौड़ी :
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स्त्री० [हिं० दौड़ना] १. बहुत से लोगों के एक साथ दौड़ने की क्रिया या भाव। २. दौड़-धूप। ३. आतुरता। जल्दी। हड़बड़ी। |
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दौड़ान :
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स्त्री० [हिं० दौड़ना] १. दौड़ने की क्रिया या भाव। दौड़। २. गति की तीव्रता या वेग। झोंक। ३. क्रम। सिलसिला। ४. लंबाई। विस्तार। |
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दौड़ाना :
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सं० [हिं० दौड़ना का सकर्मक रूप] १. किसी को दौड़ने में प्रवृत्त करना। जैसे—इंजन या घोड़ा दौड़ना। २. किसी को बहुत जल्दी या तुरन्त कोई काम कर आने के लिए भेजना। जैसे—रोगी की दशा खराब देखकर डाक्टर को लाने के लिए आदमी दौड़ाया गया। संयो० क्रि०—देना। ३. किसी काम में ऐसी आनाकानी करना कि उसके लिए किसी को कई बार आना-जाना पड़े। जैसे—वे रुपए तो देते नहीं, बार-बार हमारे आदमी को दौड़ाते हैं। ४. किसी चीज को जमीन के साथ घसीटत हुए अथवा ऊपर कुछ दूर तक बढ़ाते हुए बराबर आगे ले जाना। जैसे—बिजली का तार उस कमरे तक दौड़ा दो। ५. किसी चीज को जल्दी जल्दी आगे बढ़ने में प्रवृत्त करना। जैसे—कागज पर कलम दौड़ाना। संयो० क्रि०—देना। |
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दौत्य :
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वि० [सं० दूत+व्यल्] दूत-संबंधी। पुं० दूत का काम, पद या भाव। दूतत्व। |
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दौन :
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पुं०=दमन। |
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दौना :
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पुं० [सं० दमनक] एक प्रकार का पौधा जिसका पत्तियाँ कटावदार होती हैं और जिनमें तेज सुगंध निकलती है। स० [सं० दमन] दमन करना। दबाना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) पुं०=दोना (पत्तों का)। |
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दौनागिरि :
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पुं० [सं० द्रोणगिरि] द्रोणगिरि नामक पर्वत जो पुराणों में क्षीरोद समुद्र में स्थित कहा गया है। लक्ष्मण को शक्ति लगने पर हनुमान जी यहीं संजीवनी बूटी लेने गये थे। |
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दौनाचल :
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पुं०=द्रोणाचल। |
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दौनी :
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स्त्री० १.=दावनी। २.=दँवरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौर :
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पुं० [अ०] १. चक्कर। फेरा। २. वह क्रम, व्यवस्था अथवा समय जिसमें उपस्थित व्यक्ति कोई काम एक बार बारी-बारी से संपादित करे। जैसे—(क) शराब का पहला दौर। (ख) मुशायरे का दूसरा या तीसरा दौर। ३. अच्छे और बुरे अथवा सौभाग्य और दुर्भाग्य के दिनों का चलता रहनेवाला चक्र। ४. प्रताप और वैभव अथवा उसके फलस्वरूप चारों ओर फैलनेवाला आतंक या दबदबा। पद—दौर-दौरा (दे०)। स्त्री०=दौड़।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौर-दौरा :
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पुं० [फा०] किसी की ऐसी प्रधानता या प्रबलता जिसके सामने और बातें या लोग दबे रहते हों। जैसे—आज-कल राजनीतिक नेताओं का दौर-दौरा है। |
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दौरना :
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अ०=दौड़ना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौरा :
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पुं० [अ० दौर] १. चारों ओर घूमने की क्रिया। चक्कर। भ्रमण। २. बराबर इधर-उधर या चारों ओर घूमते-फिरते रहने की अवस्था या दशा। ३. ऐसा आना-जाना जो समय-समय पर बराबर होता रहता हो। सामयिक आगमन। फेरा। जैसे—कभी-कभी इधर भी उनका दौरा हो जाता है। ४. जाँच-पड़ताल, निरीक्षण आदि के लिए अधिकारी का केन्द्र से चलकर आस-पास के स्थानों में घूमने या फेरा लगाने की क्रिया। मुहा०—दौरे पर रहना या होना=जाँच-पड़ताल या देख-भाल के लिए केन्द्र से बाहर रहना या आस-पास के स्थानों में घूमना। ५. जिले के प्रधान न्यायाधीश या जज के द्वारा होनेवाली फौजदारी अभियोगों की वह सुनवाई जो प्रायः आदि से अंत तक बराबर एक साथ होती है। मुहा०—(किसी को) दौरा सुपुर्द करना=निम्नस्थ अधिकारी का संगीन मुदकमें के अभियुक्त को विचार तथा निर्णय के लिए सेशन जज के पास भेजना। ६. बार-बार होती रहनेवाली बात का किसी एक बार होना। ऐसी बात होना जो समय-समय पर प्रायः होती रहती है। ७. किसी ऐसे रोग का होनेवाला कोई उत्कट आक्रमण जो प्रायः या बीच-बीच में होता रहता हो। जैसे—पागलपन, मिरगी या सिर के दर्द का दौरा। पुं० [सं० द्रोण] [स्त्री० अल्पा० दौरी] बाँस की पट्टियों, बेंत आदि का बना हुआ टोकरा। |
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दौरा जज :
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पुं० [हिं० दौरा+अ० जज] किसी जिले का वह प्रधान न्यायाधिकारी (जज) जो फौजदारी से संगीन मुकदमे सुनता और उनका निर्णय करता हो। (सेशन्स जज) |
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दौरात्म्य :
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पुं० [सं० दुरात्मन्+ब्यञ्] १. दुरात्मा होने की अवस्था, भाव या वृत्ति। २. दुर्जनता। |
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दौरादौर :
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क्रि० वि०, स्त्री०=दौड़ा-दौड़। |
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दौरान :
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पुं० [फा०] १. दौर। चक्र। २. काल का चक्र। दिनों का फेर। ३. उतना समय जितने में कोई काम बराबर चलता या होता रहता हो। भोगकाल। जैसे—बुखार के दौरान में वे कभी-कभी बेहोश भी हो जाते थे। ४. दो घटनाओं के बीच का समय। ५. पारी। फेरा। बारी। |
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दौराना :
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स०=दौड़ना। |
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दौरति :
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पुं० [सं० ?] क्षति। हानि। |
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दौरी :
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स्त्री० [हिं० दौरा का स्त्री० अल्पा०] १. बाँस या मूँज को छोटी टोकरी। छोटा दौरा। २. वह टोकरी जिसकी सहायता से खेतों में सिंचाई के लिए पानी डालते हैं। ३. खेतों में उक्त प्रकार से पानी सींचने की क्रिया। |
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दौर्गन्ध्य :
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पुं० [सं० दुर्गंध+ष्यञ्] दुर्गंध। |
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दौर्ग :
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वि० [सं० दुर्ग+अण्] १. दुर्ग-संबंधी। दुर्ग का। २. दुर्गा-संबंधी। दुर्गा का। |
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दौर्गत्य :
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पुं० [सं० दुर्गेति+ष्यञ्] दुर्गति होने की अवस्था या भाव। दुर्दशा। |
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दौर्ग्य :
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पुं० [सं० दुर्ग+ष्यञ्] कठिनता। |
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दौर्ग्रह :
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पुं० [सं० दुर्ग्रह+अण्] अश्वमेध यज्ञ। |
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दौर्जन्य :
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पुं० [सं० दुर्जन+ष्यञ्] दुर्जनता। |
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दौर्बल्य :
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पुं० [सं० दुर्बल+ष्यञ्] दुर्बल होने की अवस्था या भाव। दुर्बलता। |
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दौर्भाग्य :
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पुं० [सं० दुर्भग+ष्यञ्] दुर्भाग्य। |
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दौभ्रत्रि :
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पुं० [सं० दुर्भ्रातृ+अण्] भाइयों का परस्पर का झगड़ा या विवाद। |
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दौर्मनस्य :
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पुं० [सं० दुर्मनस्+ष्यञ्] १. ‘दुर्मनस’ होने की अवस्था या भाव। २. दुर्जनता। |
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दौर्य :
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पुं० [सं० दूर+ष्यञ्] ‘दूर’ का भाव। दूरता। दूरी। |
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दौर्योधनि :
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पुं० [सं० दुर्योधन+इत्र्] दुर्योधन के कुल में उत्पन्न व्यक्ति। दुर्योधन का वंशज। |
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दौर्वृत्य :
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पुं० [सं० दुर्वृत्त+ष्यञ्] १. दुर्वृत्त होने की अवस्था या भाव। २. दुराचार। |
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दौर्हार्द :
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पुं० [सं० दुर्हृद्+अण्] १. दुर्हृद होने की अवस्था या भाव। २. दुष्ट स्वभाव। ३. किसी के प्रति मन में होने वाला दुर्भाव, द्वेष और वैर। |
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दौर्हृद :
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पुं० [सं० दुर्हृद्+अण्] १. दुर्हृदय होने की अवस्था या भाव। २. मन या हृदय की खोटाई। दुष्टता। ३. दे ‘दोहद’। |
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दौर्हृदय :
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पुं० [सं० दुर्हृदय+अण्] १. दुर्हृदय होने की अवस्था या भाव। २. शत्रुता। |
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दौर्हृदिनी :
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स्त्री० [सं० दौर्हृद+इनि-ङीप्] गर्भवती स्त्री। गर्भिणी। लाक्षणिक अर्थ में कोई अमूल्य तथा महत्त्वपूर्ण चीज। |
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दौलत :
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स्त्री० [अं०] १. वे अधिकृत सभी वस्तुएँ जिनका आर्थिक मूल्य हो। धन और सम्पत्ति। २. उक्त प्रकार की वे बहुत-सी वस्तुएँ जिनके अधिकार में होने पर कोई गरीब या धनी कहलाता है। ३. लाक्षणिक अर्थ में कोई अमूल्य तथा महत्त्वपूर्ण चीज। जैसे—लेखनी ही उनकी दौलत है। |
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दौलत-खाना :
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पुं० [फा० दौलतखानः] १. संपत्ति रखने का स्थान। २. निवास स्थान। (बड़ों के लिए आदर सूचक) जैसे—आप के दोलत खाने पर हाजिर हो जाऊँगा। |
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दौलत-मंद :
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वि० [फा०] [भाव० दौलतमंदी] अमीर। धनवान। मालदार। |
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दौलति :
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स्त्री०=दौलत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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दौलताबादी :
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पुं० [दौलतवाद, दक्षिण भारत का नगर] एक प्रकार का बढ़िया कागज जो दौलताबादी (दक्षिण भारत का एक प्रदेश) में बनता है। |
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दौलेय :
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पुं० [सं० दुलि+ढक्—एय] कच्छप। कछुआ। |
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दौल्मि :
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पुं० [सं० दुल्म+इञ्] इंद्र। |
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दौवालिक :
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पुं० [सं०] १. एक प्राचीन देश का नाम। २. उक्त देश का निवासी। |
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दौश्चर्म्य :
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पुं० [सं० दुष्चर्मन्+ष्यञ्] दुश्चर्म्मा होने की अवस्था या भाव। दे० ‘दुष्चर्मा’। |
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दौश्चर्य :
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पुं० [सं० दुश्चर+ष्यञ्] १. दुराचरण। २. दुष्टता। ३. दुष्कर्म। |
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दौष्कुल :
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वि० [सं० दुष्कुल+अण्] बुरे या हीन कुल में उत्पन्न। |
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दौष्मंत :
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वि० [सं०] दुष्मंत+अण्] दुष्मंत के कुल में उत्पन्न व्यक्ति। |
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दौष्मंति :
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पुं० [सं० दुष्मंत+इञ्]=दौष्मंत। |
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दौष्यंति :
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पुं० [सं० दुष्यंत+इञ्] दुष्यंत का शकुन्तला के गर्भ से उत्पन्न पुत्र, भरत। |
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दौहित्र :
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पुं० [सं० दुहितृ+अञ्] [स्त्री० दौहित्री] १. लड़की का लड़का। दोहता। नाती। २. तलवार। ३. तिल। ४. गौ का घी। |
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दौहित्रक :
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वि० [सं० दौहित्र+ठक्—क] दौहित्र-संबंधी। |
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दौहित्रायण :
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पुं० [सं० दौहित्र+फक्-आयन] दौहित्र का पुत्र। |
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दौहित्री :
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स्त्री० [दौहित्र-डीप्] बेटी की बेटी। नतनी। |
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समानार्थी शब्द-
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दौहृद :
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पुं० [सं० दौर्हृद] गर्भवती की इच्छा। दोहद। (दे०) |
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दौहृदिनी :
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स्त्री [सं० दौर्हृदिनी] गर्भवती स्त्री। |
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