शब्द का अर्थ
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पंखा :
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पुं० [हिं० पंख] [स्त्री० अल्पा० पंखी] १. पक्षियों के पंखों या परों के आकार का ताड़ आदि का वह उपकरण जिसे हवा में उसका वेग बढ़ाने के लिए डुलाया जाता है। क्रि० प्र०—झलना। २. उक्त के आधार पर कोई ऐसा उपकरण, जिससे हवा का वेग बढ़ाया जाता हो। जैसे—बिजली का पंखा। क्रि० प्र०—खींचना।—चलना।—झलना।—डुलाना। विशेष—आरंभ में पंखे ताड़ की पत्तियों, बांस की पट्टियों आदि से बनते थे, जिन्हें हाथ से बार-बार हिलाकर लोग या तो गरमी के समय शरीर में हवा लगाने के अथवा आग सुलझाने के काम में लाते थे; और अब तक इनका प्रायः व्यवहार होता है। बड़े आदमी प्रायः काठ के चौखटों पर कपड़ा मड़वाकर उसे छत से टाँगते थे, और किसी आदमी के बार-बार खींचते और ढीलते रहने पर उस पंखे से हवा निकलती थी, जिससे उसके नीचे बैठे हुए लोगों को हवा लगती थी। आज-कल प्रायः बिजली की सहायता से चलनेवाले अनेक प्रकार के पंखे बनने लगे हैं। ३. किसी चीज में लगा हुआ कोई ऐसा चिपटा लंबा टुकड़ा, जो पानी या हवा की सहायता से अथवा किसी यांत्रिक क्रिया से बार-बार हिलता या चक्कर लगाता रहता हो। जैसे—जहाज या पनचक्की के चक्कर में का पंखा। |
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समानार्थी शब्द-
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पंखा-कुली :
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पुं० [हिं० पंखा+तु० कुली] वह कुली या नौकर जो विशेषतः छत में लगा हुआ पंखा खींचने के लिए नियत हो। |
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पंखाज :
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पुं०=पखावज। |
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पंखा-पोश :
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पुं० [हिं० पंखा+फा० पोश] पंखे के ऊपर उगाया जानेवाला गिलाफ। |
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