शब्द का अर्थ
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पंचम :
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वि० [सं० पंचन्+डट्, मट्] १. पाँचवाँ। २. मनोहर। सुंदर। ३. दक्ष। निपुण। पुं० [सं०] १. संगीतशास्त्र में, सरगम का पाँचवा स्वर, जिसका संक्षिप्त रूप ‘प’ है। विशेष—कहा गया है कि इसके उच्चारण में प्राण, अपान, समान, उदान और व्यान नामक पाँचों प्राणों या वायुओं का उपयोग होता है; इसीलिए इसे ‘पंचम्’ कहते हैं। यह ठीक कोकिल के स्वर के समान होता है और इसके उच्चारण में क्षिति, रक्ता, संदीपनी और आलापिनी नाम की चार श्रुतियाँ लगती हैं। २. छः प्रधान रागों में तीसरा राग, जिसे कुछ लोग हिंडोल और कुछ लोग भैरव का पुत्र मानते हैं। ३. व्यंजनों में प्रत्येक वर्ग का अंतिम वर्ण। जैसे—ङ, ञ, ण आदि। ४. चमार, डोम आदि जातियाँ। अन्त्यज। हरिजन। ५. मैथुन, जो तंत्रिकों के अनुसार पाँचवाँ मकार है। |
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समानार्थी शब्द-
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पंचमांग :
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पुं० [सं० पंचम-अंग, कर्म० स०] १. किसी काम चीज़ या बाँत का पाँचवाँ अंग। २. आधुनिक राजतंत्र में राज्य या शासन का वह पाँचवाँ अंग या विभाग जो गुप्त रूप से दूसरे देशों के देश-द्रोहियों से मिलकर और उन्हें अपनी ओर मिलाकर उन देशों को हानि पहुँचाता है। राज्य या शासन के शेष चार अंग ये हैं—स्थल-सेना, जल-सेना, वायु सेना और समाचार-प्रकाशन विभाग। (फिफ्थ कालम) |
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पंचमांगी (गिन्) :
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वि० [सं० पंचमांग+इनि] पंचमां-संबंधी। पंचमांग का। पं० किसी देश या राज्य का वह निवासी जो दूसरे देशों के साथ गप्त संबंध स्थापित करके अपने देश को हानि पहुँचाता हो। शत्रुओं के साथ मिला हुआ देश-द्रोही। (फिफ्थ कालमिस्ट) |
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पंचमाक्षर :
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पुं० [सं० पंचम-अक्षर, कर्म० स०] वर्णमाला में किसी वर्ग का पाँचवाँ व्यंजन। जैसे—ङ, ञ, ण आदि। |
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पंचमास्य :
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वि० [सं० पंच-मास, कर्म० स०+यत्] हर पाँच महीने होने वाला। पुं० [पंचम-आस्य, ब० स०] कोकिल या कोयल, जो पंचम स्वर में बोलती है। |
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पंचमी :
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स्त्री० [सं० पंचम+ङीष्] १. चांद्र मास के प्रत्येक पक्ष की पाँचवी स्थिति। २. द्रौपदी, जिसके पाँच पति थे। ३. संगीत में एक प्रकार की रागिनी। ४. व्याकरण में अपादान कारक और उसकी विभक्ति। ५. वैदिक युग में एक प्रकार की ईंट, जो एक पुरुष की लंबाई के पाँचवे भाग के बराबर होती थी और यज्ञ में वेदी बनाने के काम आती थी। ६. तंत्र में एक प्रकार की मंत्र-विधि। |
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पंचमुखी :
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वि० [सं० पंचमुख] जिसके पाँच मुख हों। पंच-मुख। स्त्री० [पंचमुख+ङीष्] १. पार्वती। २. मादा सिंह। शेरनी। ३. अड़ूसा। ४. गुड़हल। जपा या जवा। |
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पंचमेश :
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पुं० [पँचम-ईश, ष० त०] फलित ज्योतिष के अनुसार जन्म-कुंडली में पाँचवे घर का स्वामी। |
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