शब्द का अर्थ
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पिप्पल :
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पुं० [सं०√पा+अलच्, पृषो० सिद्धि] १. पीपल का पेड़। अश्वत्थ। २. एक प्रकार का पक्षी ३. रेवती से उत्पन्न मित्र का एक पुत्र। (भागवत) ४. नंगा आदमी। ५. जल। पानी। ६. वस्त्रखंड। कपड़े का टुकड़ा। ७. अंगे आदि की बाँह या आस्तीन। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पलक :
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पुं० [सं० पिप्पल+कन्] स्तनमुख। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पलयांग :
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पुं० [सं०] चीन और जापान में होनेवाला एक प्रकार का पौधा जो अब भारतवर्ष में भी गढ़वाल, कुमाऊँ और काँगड़े की पहाडियों में पाया जाता है। इसके फलों के बीज के अन्दर चरबी की तरह का चिकना पदार्थ होता है जिसे चीनी मोम कहते हैं। मोमचीना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पला :
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स्त्री० [सं०] एक प्राचीन नदी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पलाद :
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पुं० [सं० पिप्पल√अद् (खाना)+अण्] पुराणानुसार एक ऋषि जो अथर्ववेद की एक शाखा के प्रवर्तक माने गये हैं। |
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समानार्थी शब्द-
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पिप्पलाशन :
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वि० [पिप्पल-अशन, ब० स०] जो पीपल का फल या गूदा खाता हो। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पलि :
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स्त्री० [सं० पिप्पल+इन्] पीपल नामक लता और उसकी कली जो दवा के काम आती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पली :
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स्त्री० [सं० पिप्पली+ङीष्] पीपल (लता)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पली-खंड :
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पुं० [ष० त०] वैद्यक के अनुसार एक औषध जो पीपल के चूर्ण, घी, शतमूली के रस, चीनी आदि को दूध में पकाकर बनाई जाती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
पिप्पलीमूल :
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पुं० [ष० त०] पीपल की जड। पिपरामूल। |
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समानार्थी शब्द-
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पिप्पल्यादिगण :
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पुं० [सं० पिप्पली-आदि, ब० स०, पिप्पल्यादि-गण, ष० त०] सुश्रुत के अनुसार ओषधियों का एक वर्ग जिसके अंतर्गत पिप्पली, चीता, अदरख, मिर्च, इलायची, अजवायन, इन्द्रजव, जीरा, सरसों, बकायन, हींग, भारंगी, अतिविषा, वच, विडंग और कुटकी है। |
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पिप्पल :
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पुं० [सं०√पा+अलच्, पृषो० सिद्धि] १. पीपल का पेड़। अश्वत्थ। २. एक प्रकार का पक्षी ३. रेवती से उत्पन्न मित्र का एक पुत्र। (भागवत) ४. नंगा आदमी। ५. जल। पानी। ६. वस्त्रखंड। कपड़े का टुकड़ा। ७. अंगे आदि की बाँह या आस्तीन। |
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पिप्पलक :
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पुं० [सं० पिप्पल+कन्] स्तनमुख। |
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पिप्पलयांग :
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पुं० [सं०] चीन और जापान में होनेवाला एक प्रकार का पौधा जो अब भारतवर्ष में भी गढ़वाल, कुमाऊँ और काँगड़े की पहाडियों में पाया जाता है। इसके फलों के बीज के अन्दर चरबी की तरह का चिकना पदार्थ होता है जिसे चीनी मोम कहते हैं। मोमचीना। |
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पिप्पला :
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स्त्री० [सं०] एक प्राचीन नदी। |
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पिप्पलाद :
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पुं० [सं० पिप्पल√अद् (खाना)+अण्] पुराणानुसार एक ऋषि जो अथर्ववेद की एक शाखा के प्रवर्तक माने गये हैं। |
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पिप्पलाशन :
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वि० [पिप्पल-अशन, ब० स०] जो पीपल का फल या गूदा खाता हो। |
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पिप्पलि :
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स्त्री० [सं० पिप्पल+इन्] पीपल नामक लता और उसकी कली जो दवा के काम आती है। |
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पिप्पली :
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स्त्री० [सं० पिप्पली+ङीष्] पीपल (लता)। |
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पिप्पली-खंड :
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पुं० [ष० त०] वैद्यक के अनुसार एक औषध जो पीपल के चूर्ण, घी, शतमूली के रस, चीनी आदि को दूध में पकाकर बनाई जाती है। |
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पिप्पलीमूल :
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पुं० [ष० त०] पीपल की जड। पिपरामूल। |
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पिप्पल्यादिगण :
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पुं० [सं० पिप्पली-आदि, ब० स०, पिप्पल्यादि-गण, ष० त०] सुश्रुत के अनुसार ओषधियों का एक वर्ग जिसके अंतर्गत पिप्पली, चीता, अदरख, मिर्च, इलायची, अजवायन, इन्द्रजव, जीरा, सरसों, बकायन, हींग, भारंगी, अतिविषा, वच, विडंग और कुटकी है। |
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