शब्द का अर्थ
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बासंतिक :
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वि० [सं० वासंतिक] १. बसंतऋतु संबंधी। २. बसंत ऋतु में होनेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
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बासंती :
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स्त्री० [सं० बासंती] १. अडूसा। बासा। २. माधवी लता। ३. दे० ‘बासंती’। वि० [हिं० बसंत] पीले रंग का। पीला। |
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बास :
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पुं० [सं० वास] १. रहने की क्रिया या भाव। निवास। २. रहने का स्थान। निवास-स्थान। ३. कपड़ा। वस्त्र। ४. एक प्रकार का का छन्द। स्त्री० १. गन्ध। बू। महक। २. बहुत ही छोटी या थोड़ा अंश। जैसे—उसमें भल-मनसत की बात तक नही है। स्त्री० [सं० वाशि] १. अग्नि। आग। २. एक प्रकार का अस्त्र। ३. पत्थर लोहे आदि के टुकड़े तो तोप के गोलों में भरकर फेंके जाते हैं। स्त्री०=वासना। पुं० [सं० वासर०] दिन। पुं० [देश०] एक प्रकार का बड़ा वृक्ष जिसकी लकड़ी लाल रंग की और मजबूत होती है। बिपरसा। पुं० [सं० वसन] वस्त्र। उदाहरण—मंद-मंद बदन बासि (बास) में दुरावै।—अलबेली अलि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासक :
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पुं० [सं० वासुकि] साँप। उदाहरण—पेट्याँ बाक भेजिया जी।—मीराँ। पुं०=वासक। स्त्री० [फा०] जँभाई। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासक-सज्जा :
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स्त्री०=बासक-सज्जा। (नायिका)। |
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बासठ :
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वि० [सं० द्विषष्ठि, प्रा० द्वासट्ठि, वासट्ठि] जो गिनती में साठ और दो हो। इकतीस का दूना। पुं० उक्त की सूचक संख्या जो इस प्रकार लिखी जाती है।—६२। |
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बासठवाँ :
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वि० [सं० द्विषष्ठितम, हिं० बासठ+वाँ (प्रत्यय)] [स्त्री० बासठवीं] क्रम या गिनती के विचार से बासठ के स्थान पर पड़नेवाला। जैसे—बासठवीँ वर्ष-गाँठ। |
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बासदेव :
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पुं० [सं० वाशिदेव] अग्नि। आग। (डिगल) पुं०=वासुदेव। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासन :
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पुं०=बरतन। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासना :
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स्त्री० [सं० वास०] १. गंध। महक। २. विशेषतः हल्की गंध। स०=सुगंधित करना। स्त्री०=वासना। |
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बासफूल :
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पुं० [हिं० बास=गंध+फूल] १. एक प्रकार का धान। २. उक्त धान का चावल। |
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बासमती :
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पुं० [हिं० बास=महक+मती (प्रत्यय)] १. एक प्रकार का धान। २. उक्त धान का चावल जो बहुत बढ़िया और सुगंधित होता है। |
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बासर :
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पुं० [सं० वासर] १. दिन। २. प्रातःकाल। सवेरा। ३. प्रातःकाल गाये जानेवाले प्रभाती भैरवी आदि गीत या भजन। |
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बासव :
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पुं०=वासव (इन्द्र)। |
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बासवी :
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पुं० [सं० वासवि] अर्जुन (डिं०) |
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बासवी दिसा :
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पुं० [सं० वासवी दिशा] पूर्व दिशा जो इन्द्र की दिशा मानी जाती है। |
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बाससी :
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पुं० [सं० वास] वस्त्र। |
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बासा :
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पुं० [सं० वास=निवास] १. रहने का स्थान। निवास स्थान। २. बसेरा। उदाहरण—मानस पंखि लेहि फिर बासा।—जायसी। ३. वह स्थान जहाँ दाम देने पर पकी-पकाई रसोई, (चावल, रोटी, दाल आदि) खाने को मिलती है। भोजनालय। पुं० [सं० वासक] १. अडूसा। २. एक प्रकार की घास। पुं० [देश०] एक प्रकार का शिकारी पक्षी। पुं० दे० ‘पिया-बाँस’। पुं० [सं० वास=कपड़ा] कपड़ा। वस्त्र। उदाहरण—मंद-मंद हास वदन बासि में दुरावै।—अलबेली अलि। पुं०=बाँसा। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासिग :
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पुं०=वासुकि। (नाग)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासित :
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भू० कृ०=बासित। |
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बासिन :
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पुं०=बासा (शिकारी पक्षी)। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासिष्ठी :
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स्त्री० [सं० वासिष्ठी] बन्नास नदी का एक नाम जो वशिष्ठ जी के तपः प्रभाव से उत्पन्न मानी गई है। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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बासी :
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वि० [हिं० बास=दिन+ई (प्रत्यय)] १. (खाद्य पदार्थ) जो एक या कई दिन पहले का बना हआ हो। जैसे—बासी रोटी। २. (फल आदि) जो एक या अनेक दिन पहले पेड़ (या पौधें) से तोड़ा गया हो। ताजा का विपर्याय। विशेष—बासी अन्न में कुछ बू सी आने लगती है, और बासी फल कुछ मुरझा से जाते हैं। पद—बासी-तिबासी (देखें) ३. जो कुछ समय तक रखा या यों ही पड़ा रहा हो। जैसे—(क) रात का रखा हुआ बासी पानी। (ख) बासी मुँह। पद—बासी मुँह=बिना कुछ खाये पिये हुए। ४. सूखा या कुम्हलाया हुआ। जो हरा-भरा न हो। जैसे—बासी फूल। मुहावरा—बासी कढ़ी में उबाल आना=बहुत समय बीत जाने पर किसी काम के लिए उत्सुकतापूर्वक प्रयत्न होना। पुं० १. धार्मिक दृष्टि से कुछ विशिष्ट अवसरों पर पहले दिन का बना हुआ बासी भोजन दूसरे दिन खाना। २. दे० ‘बसिऔरा’। वि०=बासी (निवासी)। |
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बासी-तिबासी :
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वि० [हिं० बास+तीन+बासी] दो-तीन दिन का। रखा हुआ। जो बासी से भी कुछ और अधिक बिगड़ चुका हो। जैसे—बासी-तिबासी रोटी। |
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बासु :
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स्त्री०=बास। |
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बासुकी :
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स्त्री०=वासुकि। |
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बासू :
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पुं०=वासुकि (नाग)। |
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बासूर :
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स्त्री० [अ०] बवासीर। |
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बासौंधी :
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स्त्री०=बसौंधी (रबड़ी)। |
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बास्त :
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पुं० [सं० बस्त+अण्] १. बकरे से संबंध रखनेवाला। २. बकरे से प्राप्त होनेवाला। |
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