शब्द का अर्थ
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बाहु :
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स्त्री० [सं०√बाध्+कु, ह-आदेश] भुजा। बाँह। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
बाहुक :
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पुं, ० [सं० ०] १. राजा नल का उस समय का नाम जब वे अयोध्या के राजा के सारथी थे २. नकुल का एकनाम। वि०=वाहक। |
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बाहु-कुब्ज :
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वि० [ब० स०] जिसके हाथ कुबड़े या टेढ़े हो। लूला। |
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बाहुगुण्य :
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पुं० [पुं० बहुगुण+ष्यञ्] १. बहु-गुण होने की अवस्था या भाव। बहुत से गुणों का होना। |
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बाहुज :
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पुं० [सं० बाहु√जन्+ड] क्षत्रिय जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा के हाथ मे मानी जाती है। वि० बाहु से उत्पन्न या निकला हुआ। |
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बाहुजन्य :
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वि० [सं० बहुजन+ष्यञ्] जो बहुजन अर्थात् बहुत बड़े जनसमाज में फैला अथवा उससे संबंध रखता हो। बहुजन संबंधी। |
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बाहुटा :
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पुं० [सं० बाहु] बाँह पर पहनने का बाजूबंद (गहना)। |
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बाहुडना :
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अ०=बहुरना। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बाहुड़ि :
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अव्य०=बहुरि। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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बाहु-त्राण :
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पुं० [ब० स०] चमड़े या लोहे आदि का वह दस्ताना जो युद्ध में हाथों की रक्षा के लिए पहना जाता है। |
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बाहुदंती (तिन्) :
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पुं० [सं० बहु-दंत, ब० स०+अण्(स्वार्थे)+इनि] इंद्र। |
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बाहुदा :
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स्त्री० [सं०] १. महाभारत के अनुसार एक नदी। २. राजा परीक्षित् की पत्नी। |
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बाहु-पाश :
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पुं० [सं० कर्म० स०] दोनों बाहों को मिलाकर बनाया हुआ वह घेरा जिसमें किसी को लेकर आलिंगन करते हैं। भुज-पाश। |
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बाहु-प्रलंब :
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वि० [सं० ब० स०] जिसकी बाँहें बहुत लंबी हों। आजानु-बाहु। |
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बाहु-भूषण :
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पुं० [ष० त०] भुज-बंद नाम का गहना। |
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बाहु-मूल :
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पुं० [ष० त०] कंधे और बाँह का जोड़। |
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बाहु-युद्ध :
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पुं० [ष० त०] कुश्ती। |
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बाहु-योधी (धिन्) :
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पुं० [सं० बाहु√युध्+णिनि] कुश्ती लड़नेवाला। पहलवान। |
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बाहुरना :
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अ०=बहुरना। |
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बाहुरूप्य :
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पुं० [सं० बहुरूप+ष्यञ्] बहुरूपता। |
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बाहुल :
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पुं० [सं० बहुल+अण्] १. युद्ध के समय हाथ में पहनने का एक उपकरण जिससे हाथ की रक्षा होती थी। दस्ताना। २. कार्तिक मास ३. अग्नि। आग। |
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बाहुल-ग्रीव :
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पुं० [सं० ब० स०] मोर। |
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बाहुल्य :
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पुं० [सं० बहुल+ष्यञ्] बहुल होने की अवस्था या भाव। बहुतायत। अधिकता। ज्यादती। |
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बाहु-विस्फोट :
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पुं० [सं० ष० त०] ताल ठोंकना। |
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बाहु-शाली (लिन्) :
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पुं० [सं० बाहु√शाल्+णिनि] १. शिव। २. भीम। ३. धृतराष्ट्र का एक पुत्र। ४. एक दानव। |
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बाहुशीष :
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पुं० [सं० ष० त०] बाँह में होनेवाला एक प्रकार का वायु रोग जिसमें बहुत पीड़ा होती है। |
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बाहु-श्रुत्य :
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पुं० [सं० बहुश्रुत्य+ष्यञ्] बहुश्रुत होने की अवस्था या भाव। बहुत सी बातों को सुनकर प्राप्त की हुई जानकारी। |
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बाहु-संभव :
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पुं० [सं० ब० स०] क्षत्रिय, जिनकी उत्पत्ति ब्रह्मा की बाँह से मानी जाती है। |
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बाहु-हजार :
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पुं०=सहस्रबाहु। (यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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