शब्द का अर्थ
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रक्ष :
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पुं० [सं०√रक्ष् (पालन)+अच्] १. रक्षक। रखवाला। २. रक्षा। रखवाली। हिफाजत। ३. लाक्षा। लाख। ४. छप्पय के साठवें भेद का नाम जिसमें ११ गुरु और १३0 लघु मात्राएं अथवा ११ गुरु और १२६ लघु मात्राएँ होती है। पुं० =राक्षस। |
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समानार्थी शब्द-
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रक्षक :
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पुं० [सं०√रक्ष्+ण्वुल्—अक] १. रक्षा करनेवाला। बचानेवाला। हिफाजत करनेवाला। २. पहरेदार। ३. पालन-पोषण करनेवाला। |
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रक्षण :
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पुं० [सं०√रक्ष्+ल्युट—अन] १. रक्षा करना। हिफाजत करना। रखवाली। २. पालन-पोषण करना। ३. रक्षक। |
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रक्षणकर्ता (र्तृ) :
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पुं० [ष० त०] रक्षा करनेवाला। रक्षक। |
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रक्षणीय :
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वि० [सं०√रक्ष्+अनीयर्] [स्त्री० रक्षणीया] रक्षा किये जाने के योग्य। जिसे रक्षित रखना हो। |
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रक्षन :
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पुं० =रक्षण। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रक्षना :
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स० [सं० रक्षण] रक्षा करना। हिफाजत करना। सँभालना। बचाना। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रक्षपाल :
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पुं० [सं० रक्ष√पाल् (रक्षा)+णिच्+अण, उप० स०] वह जिसका काम रक्षा करना हो। |
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रक्षमाण :
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वि० =रक्ष्यमाण। |
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रक्षस :
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पुं० =राक्षस। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रक्षा :
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स्त्री० [सं०√रक्ष्+अ-टाप्] १. ऐसा काम जो आक्रमण, आघात, आपद, नाश आदि से बचने या बचाने के लिए किया जाता हो। हिफाजत। जैसे—अपनी रक्षा, घर की रक्षा, संकट में पड़े हुए मित्र की रक्षा। २. बालकों को भूत-प्रेत नजर आदि से बचने के उद्देश्य से बाँधा जानेवाला यंत्र या सूत्र। कवच। ३. गोद। ४. भस्म। |
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रक्षाइद :
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स्त्री० [हिं० रक्ष+आइद (प्रत्यय)] राक्षसपन। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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रक्षा-कवच :
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पुं० [मध्य० स०] १. तंत्र-मंत्र की विधि से बनाया हुआ वह कवच या यंत्र जो किसी को आपत्तियों आदि से रक्षित रखने के लिए पहनाया जाता है। २. कोई ऐसी चीज या बात जो सब प्रकार से किसी की रक्षा करने के लिए यथेष्ट मानी जाती है। (सेफ-गार्ड)। |
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रक्षा-गृह :
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पुं० [ष० त०] १. चौकी। २. सूतिका-गृह। जच्चा-खाना। |
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रक्षा-पति :
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पुं० [ष० त०] नगर का शासक या रक्षा का प्रबंध करनेवाला एक प्राचीन भारतीय अधिकारी। |
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रक्षा-पत्र :
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पुं० [ब० स०] १. भोजपत्र। २. सफेद सरसों। |
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रक्षापाल :
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पुं० [सं० रक्षा√पाल् (बचाना)+णिच्+अण्] पहरेदार। प्रहरी। |
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रक्षा-पुरुष :
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पुं० [च० त०] पहरेदार। प्रहरी। |
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रक्षापेक्षक :
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पुं० [रक्षा-अपेक्षक, ष० त०] १. पहरेदार। प्रहरी। २. अंतःपुर का पहरेदार। ३. अभिनेता। नट। |
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रक्षा-प्रदीप :
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पुं० [च० त०] भूत-प्रेत आदि की बाधा से बचे रहने के उद्देश्य से जलाया जानेवाला दीपक। (तंत्र) |
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रक्षा-बंधन :
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पुं० [ष० त०] १. किसी के हाथ में रक्षासूत्र बाँधने की क्रिया या भाव। २. हिन्दुओं का एक त्यौहार जो श्रावण शुक्ला पूर्णिमा को होता है, जिसमें बहन अपने भाई तथा पुरोहित अपने यजमान की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधता है। |
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रक्षा-भूषण :
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पुं० [च० त०] वह भूषण या जंतर जिसमें किसी प्रकार का कवच आदि हो और जो भूत-प्रेत या रोग आदि की बाधाओं से रक्षित रहने के लिए पहना जाय। |
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रक्षा-मंगल :
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पुं० [च० त०] भूत-प्रेत आदि की बाधा से रक्षित रहने के उद्देश्य से किया जानेवाला अनुष्ठान। |
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रक्षामणि :
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पुं० [च० त०] वह मणि या रत्न जो किसी ग्रह के प्रकोप से रक्षित रहने के लिए धारण किया जाय। |
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रक्षा-रत्न :
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पुं० =रक्षामणि। |
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रक्षासूत्र :
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पुं० [च० त०] वह मंत्रपूत सूत या डोरा जो हाथ की कलाई में रक्षा-कारक मानकर बाँधा जाता है। राखी। |
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रक्षिक :
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वि० [सं०√रक्ष्+णिनि+कन्] रक्षक। पुं० पहरेदार। संतरी। |
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रक्षिका :
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स्त्री० [सं० रक्षा, कन्-टाप्, ह्रस्व, इत्व] रक्षा। हिफाजत। |
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रक्षित :
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भू० कृ० [सं०√रक्ष्+क्त] [स्त्री० रक्षिता] १. जिसकी रक्षा की गई हो। हिफाजत किया हुआ। २. पाला-पोसा हुआ। ३. संभाल कर रखा हुआ। जैसे—रक्षित वन। ४. किसी विशिष्ट कार्य, व्यक्ति आदि के उपयोग के लिए निश्चित किया या ठहराया हुआ। |
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रक्षित-राज्य :
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पुं० [सं० कर्म० स०]=संरक्षित-राज। |
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रक्षिता :
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स्त्री० [सं० रक्षिन्+तल्+टाप्] १. रक्षा। हिफाजत। २. [रक्षित+टाप्] बिना विवाह किये रखी हुई स्त्री। रखेली स्त्री। |
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रक्षिता (तृ) :
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पुं० [सं०√रक्ष्+तृच]= रक्षक। |
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रक्षी (क्षिन्) :
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पुं० [सं०√रक्ष्+णिनि] १. रक्षक। २. पहरेदार। प्रहरी। पुं० [हिं० रक्षस् से] वह जो राक्षसों की उपासना करता हो। |
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रक्षी-दल :
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पुं० [सं० रक्षि-दल] आरक्षी (पुलिस) विभाग के साधारण सिपाहियों के वर्ग का सामूहित नाम (कान्स्टेबुलेरी) |
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रक्षोध्न :
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पुं० [सं० रक्षासहन् (हिंसा)+टक्] १. हींग। २. भिलावाँ। ३. सफेद सरसों। ४. चावल का वह पानी या माँड़ जो कुछ समय तक रखने से खट्टा हो गया हो। |
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रक्षोध्नी :
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स्त्री० [सं० रक्षोध्न+ङीष्] वचा। बच। |
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रक्ष्य :
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वि० [सं०√रक्ष्+ण्यत्] जिसका रक्षा करना उचित या कर्त्तव्य हो। रक्षणीय। |
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रक्ष्यमाण :
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वि० [सं०√रक्ष्+लट् (कर्मणि)-शानच्, यक्, मुगागम] जिसकी रक्षा की जा सके या की जाने को हो। |
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