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वेवि  : वि०=विवि (दो)। उदा०—बेवि सरोरुह उपर देखल।—विद्यापति।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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वेंकट  : पुं० [सं०] दक्षिण भारत में स्थित एक पहाड़ की चोटी जिस पर विष्णु का मंदिर है।
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वेंकटाचल  : पुं० [सं० मध्यम० स०]=वेंकट पर्वत।
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वेंकटेश, वेकेंटश्वर  : पुं० [सं०] वेंकट पर्वत पर स्थापित विष्णु की मूर्ति का नाम।
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वे  : सर्व० [हिं० वह] हिं० वह का बहुवचन। विशेष—विभक्ति लगाने पर वे का रूप उन तथा उन्हीं हो जाता है। जैसे—(क) उनमें बहुत से सफल कलाकार हैं। (ख) उन्होंने ये सब खेत दिखलाये थे।
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वेकट  : पुं० [सं०√वे+कटच्] १. युवक। जवान। २. विदूषक। ३. जौहरी। ४. भाकुर मछली।
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वेक्षण  : पुं० [सं० अव√ईक्ष् (देखना)+ल्युट-अन] १. अच्छी तरह ढूँढ़ना या देखना। २. देखना।
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वेग  : पुं० [सं० विञ् (चलना आदि)+घञ्] १. मन में होनेवाली प्रबल प्रवृत्ति। मनोवेग। २. गति या चाल में होनेवाला जोर या तेजी। जैसे—नदी का वेग अब कुछ कम होने लगा है। ३. किसी प्रकार की क्रिया के सम्पादन में समय के विचार से होनेवाली तेजी या शीघ्रता। ४. शरीर की वह आन्तरिक वृत्ति या शक्ति जो प्राणियों को मल, मूत्र आदि का त्याग करने में प्रवृत्त करती है। ५. जल्दी। शीघ्रता। ६. कोई काम करने की दृढ़ प्रतिज्ञा या पक्का निश्चय। ७. उद्यम। उद्योग। ८. बढ़ती। वृद्धि। ९. आनन्द। प्रसन्नता। १॰. वीर्य। शुक्र। ११. न्याय के अनुसार चौबीस गुणों में से एक गुण जो आकाश, जल, तेज, वायु और मन में पाया जाता है। १२. ला इन्द्रायन। १३. महाज्योतिष्मती। १४. दे० ‘संवेग’।
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वेगग  : वि० [सं०] [स्त्री० वेगगा] १. बहुत तेज चलनेवाला। २. बहुत तेज बहनेवाला।
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वेग-धारण  : पुं० [सं०] ऐसी क्रिया को रोकना जो वेगवती हो। विशेषतः मल-मूत्र रोकना जो स्वास्थ्य के लिए अत्यन्त हानिकारक होता है।
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वेग-नाशन  : पुं० [सं०] जिसके कारण शरीर से निकलनेवाला मल आदि रुकता है।
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वेग-निरोध  : पुं० [सं० ष० त०] १. वेग का काम करना या घटाना। २. दे० ‘वेगधारा’।
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वेगमापक  : पुं० [सं०] ऐसा यंत्र जो किसी गतिमान वस्तु की गति का वेग मापता हो। जैसे—नदी की धारा का वेग-मापक यंत्र।
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वेगवती  : वि० [सं० वेग+मतुप, म-व,+ङीष्] जिसका वेग अत्यधिक हो। स्त्री० दक्षिण भारत की एक नदी।
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वेगवान्  : वि० [सं० वेग+मतुप्] वेग-पूर्वक चलनेवाला। तेज चलनेवाला। पुं० विष्णु।
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वेग-वाहिनी  : स्त्री० [सं०] १. गंगा। २. पुराणानुसार एक प्राचीन नदी। ३. संगीत में कर्नाटकी पद्धति की एक रागिनी।
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वेग-विधात  : पुं० [सं०] वेग-धारा।
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वेगसर  : पुं० [सं०] १. तेज चलनेवाला घोड़ा। २. खच्चर।
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वेगा  : स्त्री० [सं० वेग+टाप्] बड़ी मालकंगनी। महाज्योतिष्मती।
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वेगित  : भू० कृ० [सं० वेग+इतच्] १. वेग से युक्त किया हुआ। २. क्षुब्ध (समुद्र)।
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वेगिनी  : स्त्री० [सं० वेग+इनि+ङीष्] नदी।
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वेगी (गिन्)  : वि० [सं० वेग+इनि] १. जिसका वेग तीव्र या अत्यधिक हो। वेगवान्। पुं० बाज पक्षी।
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वेगीय  : वि० [सं० वेग+छ, छ-ईय] १. वेग संबंधी। वेग का। २. वेग के फलस्वरूप होनेवाला।
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वेट्  : पुं० [सं०√वेट् (शब्द करना)+क्विप्] यज्ञ में प्रयुक्त होनेवाला स्वाहा की तरह का एक शब्द।
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वेट्ट चंदन  : पुं० [सं० मध्यम० स०] मलयागिरि चंदन।
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वेड  : पुं० [सं०√विड्+अच्] एक तरह का चंदन।
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वेड़ा  : स्त्री०=बेड़ा (नावों का समूह)।
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वेढमिका  : स्त्री० [सं० वेढग+कन्+टाप्, इत्व] वह कचौरी जिसमें उरद की पीठी भरी हुई हो। बेढ़ई।
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वेण  : पुं० [सं०√वेण् (गमन)+अच्] १. एक प्राचीन वर्णशंकर जाति जो मुख्य रूप से गाने-बजाने का काम करती थी। २. राजा पृथु के पिता का नाम।
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वेणवी (विन्)  : वि० [सं० वेणु+इनि] जिसके पास वेणु हो। पुं० शिव।
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वेणा  : स्त्री० [सं० वेण+टाप्] १. एक प्राचीन नदी जिसे पर्णसा भी कहते हैं। २. उशीर। खस।
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वेणि  : स्त्री० [सं०√वी (गमन)+नि, णत्व] बालों की लटकती हुई चोटी। २. चोटी गूँधने की क्रिया। ३. जल-प्रवाह। ४. संगम। ५. देवदाली। बंदाल।
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वेणिक  : पुं० [सं० वेणि+कन्] १. एक प्राचीन जनपद। २. उक्त जनपद का निवासी।
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वेणिका  : स्त्री० [सं० वेणिक+टाप्] स्त्रियों की वेणी।
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वेणिनी  : स्त्री० [सं० वेण+इनि+ङीष्] स्त्री जिसकी गुँथी हुई चोटी लटक रही हो।
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वेणी  : स्त्री० [सं० वेण+ङीष्] १. स्त्रियों के बालों की गूँथी हुई चोटी। कवरी। २. पानी का बहाव। ३. भीड़-भाड़। ४. देवदाली। ५. एक प्राचीन नदी। ६. भेड़। ७. देवताड़।
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वेणीदान  : पुं० [सं० ष० त०] किसी तीर्थ-स्थान विशेषतः प्रयाग में केश मुड़वाने का एक कृत्य या संस्कार।
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वेणीर  : पुं० [सं० वेण+ईन्] १. नीम का पेड़। २. रीठा।
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वेणु  : पुं० [सं०√अज् (गमन)+णु, अज-वी (वे)] १. बाँस। २. बाँस की बनी हुई वंशी। मुरली। ३. दे० वेणु। वि० वेणुकीय।
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वेणुक  : पुं० [सं० वेणु+कन्] १. वह लकड़ी या छड़ी जिससे गौ, बैल आदि हाँकते हैं। २. अंकुश। ३. बाँसुरी। ४. इलायची।
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वेणुका  : स्त्री० [सं० वेणु+कन्+टाप्] १. बाँसुरी। २. हाथी को चलाने का प्राचीन काल का एक प्रकार का दंड जिसमें बाँस का दस्ता लगा होता था। २. जहरीले फलवाला एक प्रकार का वृक्ष।
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वेणुकार  : पुं० [सं० वेणु√कृ (करना)+अण्, उप० स०] वह व्यक्ति जिसका पेशा बाँसुरी बनाना हो।
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वेणुकीय  : वि० [सं० वेणुक+छ, छ-ईय] वेणु-संबंधी। वेणु का।
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वेणुज  : वि० [सं० वेणु√जन्+ड] जो वेणु अर्थात् बाँस से उत्पन्न हो। पुं० १. बाँस के फूल में होनेवाला दाने जो चावल कहलाते है और जो पीसकर ज्वार आदि के आटे के साथ खाये जाते हैं। बाँस का चावल। २. गोल मिर्च।
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वेणुज-मुक्ता  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] बाँस में होनेवाला एक प्रकार का गोलदाना जो प्रायः मोती कहलाता है।
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वेणुप  : पुं० [सं०] १. एक प्राचीन जनपद (महाभारत) २. उक्त जनपद का निवासी।
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वेणुपुर  : पुं० [सं०] आधुनिक बेलगाँव का पुराना नाम।
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वेणु-बीज  : पुं० [सं०] बाँस के फूल में होनेवाला दाने जो ज्वार आदि के साथ पीसकर खाये जाते हैं। बाँस का चावल।
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वेणुमती  : स्त्री० [सं० वेणु+मतुप्+ङीष्] पश्चिमोत्तर प्रदेश की एक नदी। (पुराण)
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वेणुमान  : पुं० [सं० वेणुमम्] १. एक पौराणिक पर्व। २. एक पौराणिक कुल या वंश।
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वेणु-मुद्रा  : स्त्री० [सं०] तान्त्रिकों की एक प्रकार की मुद्रा।
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वेण-यव  : पुं० [सं०] वेणु-बीज।
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वेणु-वन  : पुं० [सं० ष० त०] ऐसा वन जिसमें बाँसों के बहुत अधिक झुरमुट हों।
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वेण्य  : स्त्री० [सं० वेणु+यत्] पुराणानुसार विध्यं पर्वत से निकली हुई एक नदी।
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वेण्वा  : स्त्री० [सं० वेणु+अच्+टाप्] पुराणानुसार पारिपत्र पर्वत की एक नदी।
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वेण्वा-तट  : पुं० [सं० ष० त०] वेण्वा नदी के तट पर स्थित एक प्रदेश (महा) २. उक्त देश का निवासी।
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वेत  : पुं०=बेंत।
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वेतन  : पुं० [सं०√वी (गमन)+तनन्] १. वह धन जो किसी को कोई काम करने के बदले में दिया जाय। पारिश्रमिक। उजरत। २. वह धन जो निश्चित रूप से निरंतर काम करते रहने पर बराबर नियत समय पर मिलता रहता है। तनख्वाह। (पे)। जैसे—मासिक या साप्ताहिक वेतन। ३. जीविका निर्वाह का साधन। ४. चाँदी। रजत।
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वेतन-भोगी (गिन्)  : पुं० [सं०] वह जो वेतन पर किसी के यहाँ नौकरी करता हो।
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वेतस  : पुं० [सं०] १. बेंत। २. जल-बेंत। ३. बड़वानल।
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वेतसक  : पुं० [सं० वेतस+कन्] एक प्राचीन जनपद। (महाभारत)
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वेतस-पत्रक  : पुं० [सं०] एक तरह का शल्य। (सुश्रुत)
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वेताल  : पुं० [सं०√अज्+विच्, वी√तल्+घञ्, कर्म० स०] १. द्वारपाल। संतरी। २. शिव के एक गणाधिप। ३. पुराणानुसार एक तरह की भूत-योनि या प्रेतात्माओं का वह वर्ग जिसका निवास-स्थान श्मशाम माना गया है। ४. उक्त योनि के भूत जो साधारण भूतों के प्रधान माने गए हैं। ५. ऐसा शव जिस पर भूतों ने अधिकार कर लिया हो। ६. छप्पय के छठे भेद का नाम जिसमें ६५ गुरु और २२ लघु कुल ८७ वर्ण या १५२ मात्राएँ अथवा ६५ गुरु और १८ लघु कुल ८३ वर्ण या १४८ मात्राएँ होती है।
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वेताला  : स्त्री० [सं० वेताल+टाप्] दुर्गा।
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वेत्ता  : वि० [सं०√विद् (जानना)+तृच्] समस्त पदों के अन्त में, अच्छा या पूर्ण ज्ञाता। जैसे—तत्त्ववेत्ता, शास्त्रवेत्ता।
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वेत्र  : पुं० [सं०√वी+त्र] १. बेंत। २. द्वारपाल के पास रहनेवाला डंडा।
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वेत्रक  : पुं० [सं० वेत्र+कन्] रामसर। सरपत।
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वेत्रकार  : पुं० [सं० वेत्र√कृ (करना)+अण्] वह जो बेंत के सामान बनाता हो।
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वेत्रकूट  : पुं० [सं० मध्यम० स०] पुराणानुसार हिमालय की एक चोटी।
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वेत्र-गंगा  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] हिमालय से निकली हुई एक नदी।
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वेत्रधर  : पुं० [सं० वेत्र√धृ (रखना)+अच्, ष० त०] १. द्वारपाल। संतरी। २. चोबदार। ३. लठैत।
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वेत्रवती  : स्त्री० [सं० वेत्र+मतुप, म—व,+ङीष्] वेतवा नदी।
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वेत्रहा (हन्)  : पुं० [सं० वेत्र√हन् (मारना)+क्विप्] इंद्र।
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वेत्रासन  : पुं० [सं० ष० त०] बेंत का बुना हुआ आसन।
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वेत्रासुर  : पुं० [सं० मध्यम० स०] एक असुर जिसका वध इन्द्र ने किया था।
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वेत्रिक  : पुं० [सं० वेत्र+ठक्-इक] १. एक जनपद। २. उक्त जनपद का निवासी। ३. चोबदार।
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वेत्री  : पुं० [सं० वेत्र+इनि, वेत्रिन्] १. द्वारपाल। संतरी। २. चोबदार।
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वेद  : पुं० [सं०] १. वह जो जाना गया हो। ज्ञान। २. धार्मिक ज्ञान। तत्त्वज्ञान। ३. भारतीय आर्यों के आद्य प्रधान ग्रन्थ जो हिन्दुओं के सर्व प्रधान है। विशेष—आरंभ में ऋग्वेद और सामवेद ही तीन वेद थे। जिनके कारण वेदत्रयी पद बना था। पर बाद में चौथा अथर्ववेद भी इनमें सम्मिलित हो गया था, और अब उनकी संख्या चार हो गई है। ये संसार के सबसे अधिक प्राचीन धर्मग्रंथ है प्रत्येक पद के दो मुख्य विभाग है। (क) मंत्र अथवा संहिता और (ख) ब्राह्मण भाग। हिन्दू इन्हें अ-पौरुषेय मानते हैं, अर्थात् ये मनुष्यों द्वारा रचित नहीं है, बल्कि स्वयं ब्रह्मा के मुख से निकले हैं। स्मृतियों से इनका पार्थक्य जलताने के लिए इन्हें श्रुति भी कहते हैं। जिसका आशय यह है कि वेदो में कही हुई बातें लोग परम्परा से सुनते चले आये थे, जो बाद में लिपिबद्ध करके ग्रंथ रूप में संकलित की गई थी। आधुनिक विद्वानों के मत से इनकी रचना लगभग ६॰॰॰ वर्ष पूर्व हुई होगी। ४. विष्णु का एक नाम। ५. यज्ञों को भिन्न-भिन्न अंग या कृत्य। यज्ञांग। ६. छंद। ७. धन-संपत्ति।
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वेदक  : वि० [सं० वेद+कन्] वेदन अर्थात् ज्ञान करानेवाला।
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वेदकर्ता (र्त्तृ)  : पुं० [सं० ष० त०] १. वेद या वेदों का रचयिता। २. सूर्य। ३. शिव। ४. विष्णु। ५. वर पक्ष के वे लोग जो विवाह कृत्य सम्पन्न हो जाने पर वधू के घर पहुँचकर उसे और वर को आर्शीवाद देते तथा मंगल-कामना प्रकट करते हैं।
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वेदकार  : पुं० [सं०] वेद या वेदों का रचयिता।
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वेद-गंगा  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] दक्षिण भारत की एक नदी जो कोल्हापुर के पास से निकलकर कृष्णा नदी में मिलती है।
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वेदगर्भ  : पुं० [सं० ष० त०] १. ब्रह्मा। २. ब्राह्मण।
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वेदगर्भा  : स्त्री० [सं० वेदगर्भ+टाप्] १. सरस्वती नदी। २. रेखा नदी।
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वेदगुप्त  : पुं० [सं० ब० स०] श्रीकृष्ण का एक नाम।
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वेदगुह्य  : पुं० [सं० ब० स०] विष्णु।
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वेद-जननी  : स्त्री० [सं० ष० त०] सावित्री जो वेद की माता कही गई है।
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वेदज्ञ  : पुं० [सं० वेद√ज्ञा (जानना)+क] १. वेदों का ज्ञाता। वेद जाननेवाला। २. ब्रह्म-ज्ञानी।
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वेदत्व  : पुं० [सं० वेद+त्व] वेद का धर्म या भाव।
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वेद-दीप  : पुं० [सं० ष० त०] महीघर का किया हुआ शुक्ल यजुर्वेद का भाष्य।
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वेदन  : पुं० [सं०√विद् (जानना)+ल्युट-अन] १. ज्ञान। २. अनुभूति। ३. संवेदन। ४. कष्ट। पीड़ा। वेदना। ५. धन-संपत्ति। ६. विवाह। ७. शूद्र स्त्री का उच्च वर्ग के पुरुष के साथ होनेवाला विवाह।
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वेदना  : स्त्री० [सं० वेदन+टाप्] १. बहुत तीव्र मानसिक या शारीरिक कष्ट। विशेषतः प्रसव के समय स्त्रियों को होने वाला कष्ट। २. तीव्र मानसिक दुःख। व्यथा।
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वेदनी  : स्त्री० [सं०√वेदन+ङीष्] त्वचा।
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वेदनीय  : वि० [सं०√विद् (जानना)+अनीयर्] १. जो वेदन के लिए उपयुक्त हो अथवा जिसका वेदन हो सके। २. जानने के लिए उपयुक्त। ३. वेदना या कष्ट उत्पन्न करनेवाला।
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वेदबीज  : पुं० [सं० ष० त०] श्रीकृष्ण।
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वेजभू  : पुं० [सं० ब० स०] देवताओं का एक गण। (महा०)
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वेद-मंत्र  : पुं० [सं० मध्यम० स० या ष० त०] १. वेदों में आए हुए मंत्र। २. पुराणानुसार एक प्राचीन जनपद। ३. उक्त जनपद का निवासी। ४. मूलमंत्र (दे०)।
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वेद-माता (तृ)  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. गायत्री। सावित्री। दुर्गा। २. सरस्वती।
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वेद-मूर्ति  : पु० [सं० ष० त०] १. वेदों का बहुत बड़ा ज्ञाता। २. सूर्य।
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वेद-यज्ञ  : पुं० [मध्यम० स०] वेद पढ़ना। वेदाध्ययन।
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वेदवती  : स्त्री० [सं०] १. सीता का पूर्वजन्म का नाम। उस जन्म में ये राजा कुशध्वज की पुत्री थी। २. एक प्राचीन नदी।
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वेद-वदन  : पुं० [ब० स०] १. ब्रह्मा। २. व्याकरण।
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वेद-वाक्य  : पुं० [सं०] ऐसा वाक्य या कथन जिसकी सत्यता असंदिग्ध हो। वेद में आए हुए वाक्य के समान मान्य कोई अन्य वाक्य या कथन।
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वेदवादी (दिन्)  : पुं० [सं०] वेदों का ज्ञाता।
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वेदवाह  : पुं० [सं० वेद√वह् (ढोना)+घञ्] वह जो वेदों का ज्ञाता हो।
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वेद-वाहन  : पुं० [सं० ष० त०] सूर्य।
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वेद-व्यास  : पुं० [सं० वेद+वि√अस् (होना)+अण्] एक प्राचीन मुनि जिन्होंने वेदों का वर्तमान रूप में संकलन किया था। ये सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न पराशर के पुत्र थे। व्यास।
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वेद-व्रत  : पुं० [सं० ब० स०] वह जो वेदों का अध्ययन करता हो।
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वेदशिर  : पुं० [सं० ब० स०] १. एक प्रकार का अस्त्र (पुराण) २. पुराणानुसार मार्कडेय का एक पुत्र जो मूर्द्धन्या के गर्भ से उत्पन्न हुआ था। कहते है कि भार्गव लोगों का मूल पुरुष यही था।
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वेदसार  : पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।
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वेद-स्वरूपी  : पुं० [सं०] संगीत में कर्नाटकी पद्धति का एक राग।
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वेदांग  : पुं० [सं० ष० त०] वेद के अंगों में हर एक। २. वेद के छः अंग। ३. सूर्य।
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वेदांत  : पुं० [सं० वेद+अंग] १. वेदों में प्रतिपादित सिद्धान्तों का निरूपण और विवेचन करनेवावाला शास्त्र। २. भारतीय चः दर्शनों में से अंतिम दर्शन जो उपनिषदों की शिक्षा और सिद्धान्तों पर आश्रित है और जिसमें वेदों का अंतिम य चरम उद्देश्य निरूपित होता है और जिसे उत्तर-मीमांसा भी कहते हैं। विशेष—इस दर्शन का मुख्य सिद्धान्त यह है कि सारी सृष्टि एकमात्र ब्रह्म से उद्भुत है, और वह इस ब्रह्म इस सृष्टि के प्रत्य़ेक अणु-परमाणु तक में व्याप्त है। इस दर्शन में मुख्यतः ब्रह्म और जगत् तथा ब्रह्मा और जीव के पारस्परिक संबंधों का निरूपण है। अहं ब्रह्मास्मि, तत्त्वमसि, सोहंअस्मि आदि इसके मुख्य सिद्धान्त है। लोक में जो अद्वैत की भावना भूत या माया के प्रति तिरस्कार आदि के भाव प्रचलित है वे अधिकतर इसी वेदातं की शिक्षा के फल हैं।
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वेदांत  : पुं० [सं०] व्यास कृत ब्रह्मसूत्र।
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वेदांती (तिन्)  : पुं० [सं० वेदान्त+इनि] वेदांत का पूर्ण ज्ञाता। ब्रह्मवादी।
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वेदाग्रमी  : स्त्री० [सं० ष० त०] सरस्वती।
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वेदात्म  : पुं० [सं० ष० त०] १. विष्णु। २. सूर्य।
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वेदादि  : पुं० [सं० ष० त०] प्रणव या ओंकार का मंत्र।
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वेदाधिदेव  : पुं० [सं० ष० त०] ब्राह्मण।
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वेदाधिप  : पुं० [सं० ष० त०] वेदों के अधिपतिग्रह। विशेष—ऋग्वेद के अधिपति, बृहस्पति यजुर्वेद के शुक्र सामवेद के मंगल अथर्ववेद के बुध।
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वेदाध्यक्ष  : पुं० [सं० ष० त०] विष्णु।
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वेदि  : स्त्री०=वेदी।
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वेदिका  : स्त्री० [सं० वेदिक+टाप्]=छोटी वेदी।
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वेदित  : भू० कृ० [सं०√विद् (जानना)+क्त] १. निवेदित। २. वेद द्वारा कथित या जतलाया हुआ। २. देखा हुआ।
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वेदितव्य  : वि० [सं०√विद् (जानना)+तव्यत्] बात का विषय जो जाना जा सके।
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वेदित्व  : पुं० [सं० वेदि+त्व] विदित होने का भाव। ज्ञान।
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वेदी (दिन्)  : वि० [सं०] १. जाननेवाला। ज्ञाता। २. पंडित। विद्वान। ३. विवाद करनेवाला। पुं० १. ब्रह्मा। २. आचार्य। ३. एक प्राचीन तीर्थ (महाभारत)। स्त्री० १. यज्ञ कार्य के लिए साफ करके तैयार की हुई भूमि। वेदी। २. मांगलिक या शुभ कार्य के लिए तैयार किया हुआ चौकोर स्थान और उसके ऊपर का मंडप। ३. सरस्वती। ४. ऐसी अंगूठी जिस पर किसी का नाम अंकित हो। ५. पूजन आदि के समय उंगली की एक प्रकार की मुद्रा। ६. अंबष्ठा नामक वनस्पति।
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वेदीश  : पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा।
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वेदुक  : वि० [सं०√विद् (जानना)+उकञ्] १. जाननेवाला। ज्ञाता। २. प्राप्त करनेवाला। ३. मिला हुआ। प्राप्त।
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वेदेश्वर  : पुं० [सं० ष० त०] ब्रह्मा।
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वेदोक्त  : भू० कृ० [सं० स० त०] वेदों में कहा हुआ।
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वेदोपकरण  : पुं० [सं० ष० त०] वेदांग।
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वेदोपनिषद्  : स्त्री० [सं० मध्यम० स०] एक उपनिषद् का नाम।
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वेद्वव्य  : वि० [सं०√विध् (छेदना)+तव्यम्] वेधे या छेदे जाने के योग्य।
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वेद्वा  : वि० [सं०√विध् (छेदना)+तृच्] १. वेधने या छेदनेवाला। २. वेध करनेवाला।
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वेद्य  : वि० [सं०√विद् (जानना)+ण्यत्] १. (बात या विषय) जो जानने या समझने के योग्य हो। २. कहे जाने के योग्य। ३. प्रशंसनीय। ४. प्राप्त किये जाने के योग्य।
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वेद्यत्व  : पुं० [सं० वेद्य+त्व] ज्ञान। जानकारी।
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वेध  : पुं० [सं०√विध् (छेदना)+घञ्] १. किसी चीज में नुकीली चीज धँसाना। बेधना। २. यंत्रों आदि की सहायता से आकाशस्थ ग्रहों नक्षत्रों आदि की गति,स्थिति आदि का पता लगाने की क्रिया। पद—वेधशाला। ३. ज्योतिष के ग्रहों का किसी ऐसे स्थान में पहुँचना जहाँ से उनका किसी दूसरे ग्रह में सामना होता हो। जैसे—युतवेध, पताकी वेध। ४. गंभीरता। गहराई। ५. ब्रह्मा। ६. विष्णु। ७. शिव। ८. सूर्य। ९. दक्ष आदि प्रजापति। १॰. पंडित। विद्वान। ११. सफेद मदार।
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वेधक  : पुं० [सं०√विध् (भेदना)+ण्वुल-अक] १. वेध करनेवाला। २. वेधन करने या बेधनेवाला। पुं० १. वह जो मणियों आदि को बेचकर अपनी जीविका चलाता हो। २. कपूर। ३. धनिया। ४. अमलबेंत।
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वेधनी  : पुं० [सं० वेधन+ङीष्] १. वह उपकरण जिससे मोती आदि वेधे जाते हैं। २. अंकुश।
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वेधनीय  : वि० [सं०√विध् (छेदना)+अनीयर्] जिसका वेध या बेधन हो सके या होने को हो।
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वेधशाला  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह प्रयोगशाला जिसमें ग्रह, नक्षत्रों आदि की गति का पर्यवेक्षण किया जाता है। (आबज़र्वेटरी)
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वेधस  : पुं० [सं० वि√धा+अस्, वेधस्+अच्] हथेली में अँगूठे की जड़ के पास का स्थान। अंगुष्ठमूल। ब्रह्मतीर्थ। विशेष—आचमन के लिए इसी गड्ढे में जल देने का विधान है।
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वेधा (धस्)  : पुं० [सं० वि√धा+अस्, बेधादेश] १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. शिव। ४. सूर्य। ५. दक्ष आदि प्रजापति। ६. आक। मदार।
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वेधालय  : पुं० [सं० ष० त०]=वेधशाला।
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वेधित  : भू० कृ० [सं०√विध् (छेदना)+णिच्+क्त] १. जिसका वेधन या भेदन किया गया हो। २. (ग्रह या नक्षत्र) जिसका ठीक-ठीक पर्यवेक्षण किया जा चुका हो।
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वेधिनी  : स्त्री० [सं०√विधन्+ङीष्] जोंक। वि० सं० ‘वेधी’ का स्त्री०।
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वेधी (धिन्)  : पुं० [सं०] १. वेधन या भेदन करनेवाला। २. ग्रह-नक्षत्रों आदि की गति का पर्यवेक्षण करनेवाला।
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वेध्य  : वि० [सं०√विध् (छेदना)+ण्यत्] जिसमें वेध किया जाय। जिसका वेध हो सके या होने को हो।
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वेन  : पुं० [सं०√अज् (गमन)+न,अज-वी] वेण (दे०)।
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वेन्य  : पुं० [सं० वेन+यत्] सुन्दर। मनोहर। पुं० वेण।
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वेपथु  : पुं० [सं० वेप् (काँपना)+अधुच्] १. काँपने की क्रिया। कँप-कँपी। २. कंप (साहित्यिक अनुभाव)।
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वेपन  : पुं० [सं०√वेप् (काँपना)+ल्युट-अन] १. काँपना। कंप। २. बात रोग।
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वेर  : पुं० [सं० अज+रन, अज=वी] १. शरीर। देह। बदन। २. केसर।
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वेल  : पुं० [सं०] १. उपवन। २. कुंज। ३. बौद्धों के अनुसार एक बहुत बड़ी संख्या। स्त्री०=वेला।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वेलना  : अ० [सं० वेल्] १. हिलना। २. काँपना। ३. विकल होना।
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वेला  : स्त्री० [सं०] १. मर्यादा। सीमा। २. समुद्र का तट। ३. तरंग। लहर। ४. किसी काम या बात का नियमित या निश्चित समय। जैसे—भोजन की वेला, मृत्यु की वेला,सन्ध्या की वेला आदि। ५. समय का एक विभाग जो दिन और रात का चौबीसवाँ भाग होता है। कुछ लोग दिनमान के आठवें भाग की भी वेला मानते हैं। ६. वाणी। ७. अवकाश। अवसर। ८. आसक्ति। राग। ९. भोजन। १॰. रोग। बीमारी। वि० [हिं० उरला] इस ओर या पार का। इधर का। उदाहरण—सुर नर मुनिजन ये सब वैले तीर।—कबीर।
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वेला-जल  : पुं० [सं०] चंद्रमा के आकर्षण से ऊपर उठनेवाला समुद्र का ज्वार जल (टाइडल वाटर्स)।
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वेला-ज्वर  : पुं० [सं०] मृत्यु के समय होनेवाला ताप या ज्वर।
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वेलाद्रि  : पुं० [सं० स० त०] ऐसा पर्वत जो समुद्र के किनारे स्थित हो।
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वेलाधिप  : पुं० [सं०] फलित ज्योतिष में दिनमान के आठवें भाग या वेला के अधिपति देवता।
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वेलार्ख  : पुं० [?] वाण का फूल। (डि०)। उदाहरण—वेलार्थ अणी झूठि द्रिठि बंग्धै।—प्रिथीराज।
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वेलावित्त  : पुं० [सं० ब० स०] प्राचीन काल के एक प्रकार के कर्मचारी (राजतरंगिणी)।
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वेलिका  : स्त्री० [सं० वेला+कन्+टाप्, इत्व] १. नदी के किनारे का स्थान। २. ताम्रलिप्त का एक नाम।
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वेल्लन  : पुं० [सं०√वेल्ल (चलना)+ल्युट-अन] [भू० कृ० वेल्लित] १. गमन। २. कंप। कंपन। ३. जमीन पर घोड़ों के लोटने की क्रिया या भाव। ४. झुकना। ५. लिपटना।
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वेल्ली  : स्त्री० [सं० वेल्लि+ङीष्] बेल लता।
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वेशंत  : पुं० [सं०] १. पानी का गड्ढा। २. अग्नि। आग।
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वेश  : पुं० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+घञ्] १. अन्दर जाने या पहुँचने की क्रिया या भाव। प्रवेश। २. प्रवेश का द्वार, मार्ग या साधन। ३. रहने का स्थान, घर या मकान। ४. वेश्या का घर। ५. पहनने के कपड़े आदि। पोशाक। ६. कुछ खास तरह के ऐसे कपडे जिन्हें पहनने पर कोई विशिष्ट रूप प्राप्त होता है। भेस। (डिस्गाइज) जैसे—अभिनेता कभी राजा का कभी सेवक का वेश धारण करता है। ७. परिश्रम या सेवा के बदले में मिलनेवाला धन। पारिश्रमिक। ८. खेमा। तंबू।
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वेशक  : वि० [सं० वेश+कन्] प्रवेश करनेवाला। पुं० घर। मकान।
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वेशकार  : पुं० [सं०] १. वह जो पुतलियाँ बनाता और उनका श्रृंगार करता हो। २. पहनने के अनेक प्रकार के वस्त्र बनानेवाला। (आउट-फ़िटर)।
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वेशता  : पुं० [सं० वेश+तल्+टाप्] वेश का धर्म या भाव। वेशत्व।
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वेशत्व  : पुं० [सं० वेश+त्व]=वेशता।
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वेशधर  : पुं० [सं०] १. वह व्यक्ति जिसने किसी दूसरे का वेश धारण किया हो। २. वह जिसने किसी को छलने के लिए अपना वे बदल लिया हो। ३. जैनियों का एक सम्प्रदाय।
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वेशन  : पुं० [सं०] प्रवेश करना।
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वेशनी  : स्त्री० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+ल्युट-अन+ङीष्] ड्योढ़ी। पौरी।
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वेश-युवती  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या। रंडी।
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वेशर  : पुं० [सं० वेश+रक्] खच्चर।
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वेश-रथ्या  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश-वीथी।
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वेश-वधू  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या। रंडी।
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वेश-वनिता  : स्त्री० [सं०] वेश्या। रंडी।
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वेश-वार  : पुं० [सं० ष० त०] १. वेश्या का घर। २. धनिया, मिर्च लौंग आदि मसाले।
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वेशवास  : पुं० [सं० ष० त०] वेश्या का कोठा। वेश्यालय।
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वेश-वीथी  : स्त्री० [सं० ष० त०] वह गली या बाजार जिसमें वेश्याएँ रहती हों।
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वेश-स्त्री०  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] वेश्या रंडी।
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वेशांत  : पुं० [सं०√विश् (प्रवेश करना)+अ-अन्त, ष० त० ब० स०] छोटा तालाब।
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वेशिक  : पुं० [सं० वेश+ठक्-इक] हस्त-शिल्प। दस्तकारी।
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वेशी (शिन्)  : वि० [सं०√विश् (प्रेवश करना)+णिनि] प्रेवश करनेवाला।
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वेश्म  : पुं० [सं०√विश्+मनिन्] घर। मकान।
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वेशमस्त्री  : स्त्री० [सं०] वेश्या। रंडी।
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वेश्मांत  : पुं० [सं०] अन्तःपुर। जनानाखाना।
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वेश्मा  : पुं० [सं०] १. वेश्या के रहने का मकान। रंडी का घर। २. वेश्या की वृत्ति। रंडी का पेशा।
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वेश्यांगना  : स्त्री० [सं० कर्म० स०] ऐसी स्त्री जो वेश्यावृत्ति करती हो।
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वेश्या  : स्त्री० [सं०] १. ऐसी स्त्री जो धन लेकर लोगों के साथ संभोग कराने का व्यवसाय करती हो। गणिका। २. आज-कल ऐसी स्त्री जो उक्त प्रकार का व्यवसाय करने के सिवाय लोगों को रिझाने के लिए नाचगाने का भी काम करती हो तवायफ।
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वेश्याचार्य  : पुं० [सं०] रंडियो का दलाल। भडुआ।
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वेश्या-पत्तन  : पुं० [सं०] वह बाजार जहाँ वेश्याएँ रहती हों। चकला।
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वेश्यालय  : पुं० [सं० ष० त०] वेश्या या वेश्याओं के रहने की जगह।
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वेश्या-वृत्ति  : स्त्री० [सं० ष० त०] १. वेश्या बनकर अर्थात् धन लेकर पर-पुरुषों से संभोग कराना। कसब कमाना। २. गुण, शक्ति का वह परम घृणित और निदनीय उपयोग जो केवल स्वार्थ साधन के लिए बहुत बुरी तरह से किया या कराया जाय। (प्रॉस्टीट्यूशन)
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वेष  : पुं० [सं०√वेष्+अच्] १. पहने हुए कपड़े आदि। वेश। २. रंग-मंच में पीछे का वह स्थान जहाँ नट लोग वे रचना करते हैं। नेपथ्य। ३. वेश्या का घर। रंडी का मकान। ४. काम करना या चलाना।
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वेषकार  : पुं० [सं०] वह कपड़ा जो किसी चीज पर उसे सुरक्षित रखने के लिए लपेटा जाता है। बेठन।
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वेषण  : पुं० [सं०√वेष् (व्याप्त होना)+ल्युट-अन] १. वेष बनाने की क्रिया या भाव। २. परिचर्या। सेवा। ३. कासमर्द्द। ४. धनिया। ५. सेवा।
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वेषधारी  : वि०=वेशधारी।
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वेष-भूषा  : स्त्री० [सं०] १. वे कपड़े जो किसी विशिष्ट देश, जाति, संप्रदाय आदि लोग करते हैं। २. शरीर की सजावट के लिए पहने हुए कपड़े आदि।
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वेषवार  : पुं० बेसवार।
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वेष्ट  : पुं० [सं०√वेष्ट (लपेटना)+घञ्] १. वृक्ष का किसी प्रकार का निर्यास। २. गोद। ३. धूपसरल नामक पेड़। ४. सुश्रुत के अनुसार मुँह में होनेवाला एक प्रकार का रोग। ५. ब्रह्म। ६. आकाश। ७. पगड़ी।
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वेष्टक  : वि० [सं०√वेष्ट्+ण्वुल्-अक] चारों ओर से घेरनेवाला। पुं० १. छाल। वल्कल। ३. कुम्हड़ा। ४. उष्णीय। पगड़ी। ४. चहार-दीवारी। परकोटा। ५. दे० वेष्ट।
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वेष्टन  : पुं० [सं०√वेष्ट+ल्युट-अन] १. कोई चीज किसी दूसरी चीज के चारों ओर लपेटना। २. इस प्रकार लपेटी जानेवाली चीज। ३. पगड़ी। ४. मुकुट। ५. कान का छेद।
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वेष्टनक  : पुं० [सं० वेष्टन√कै (प्रकाश करना)+क] कामशास्त्र में एक प्रकार का रतिबंध।
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वेष्टव्य  : वि० [सं०√वेष्ट (लपेटना)+तव्यत्] घेरे या लपेटे जाने के योग्य।
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वेष्टसार  : पुं० [सं० ब० स०] १. श्रीवेष्ट। गंधबिरोजा। २. धूपसरल नामक वृक्ष।
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वेष्टित  : भू० कृ० [सं०√वेष्ट (लपेटना)+क्त] १. चारों ओर से घिरा या घेरा हुआ। २. कपड़े, रस्सी आदि से लिपटा या लपेटा हुआ। ३. रुका या रोका हुआ। रुद्ध। पुं० १. पगड़ी। २. एक प्रकार का रतिबंध। ३. नृत्य की एक मुद्रा।
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वेस  : स्त्री०=वयस।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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वेसन्नर  : पुं० [सं० वैश्वानर] आग। (डिं०)
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वेसर  : पुं० [सं० वेस√रा (लेना)+क] खच्चर।
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वेसवार  : पुं० [सं० वेस√वृ (निवास करना)+अस्] १. जीरा, धनिया, लौंग मिर्च आदि पीसकर बनाया हुआ मसाला। २. एक प्रकार का पकाया हुआ मांस।
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वेसासना  : स० [सं० विश्वास] विश्वास करना। (डिं०) उदाहरण—ब्रिध पणै मति कोई बेसायौ।—प्रिथीराज।
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वेह  : पुं० [?] मंगल कलश (डि०)।
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