शब्द का अर्थ
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साँध :
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स्त्री० [सं० संधान] निशाना। लक्ष्य। स्त्री० [सं० संधि] १. सीमा। हद। २. दे० ‘संधि’। ३. दे० ‘सेंध’। स्त्री०=साँझ।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
सांध :
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वि० [सं० संधि+अण्] संधि-संबंधी। संधि का। |
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साँधना :
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स० [सं० संधान] निशाना साधना। लक्ष्य करना। संधान करना। स० [स० साधन] काम पूरा करना। स० [सं० सन्धि] १. आपस में मिलाकर एक करना। २. चीजों में जोड़ या टाँका लगाना। |
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साँधा :
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पुं० [सं० संधि] दो रस्सियों आदि में दी हुई गाँठ। (लश०) क्रि० प्र०—मारना।—लगाना। |
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सांधिक :
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पुं० [सं० संधा+ठक्—इक] वह जो मद्य बनाता या बेचता हो। शौंडिक। वि० सन्धि या मेल करानेवाला। |
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सांधि-विग्रह :
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पुं० [सं० संधि-विग्रह, द्व० स० ठन्—क] प्राचीन भारत में, वह राजकीय अधिकारी जिसे दूसरे राज्यों के साथ संधि और विग्रह करने का अधिकार होता था। |
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सांध्य :
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वि० [सं०] १. संध्या-संबंधी। संध्या का। २. संध्या के समय होनेवाला। |
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सांध्य कुसुमा :
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स्त्री० [सं०] ऐसी वनस्पतियाँ या बेलें जो संध्या के समय फूलती हों। |
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सांध्य गोष्ठी :
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स्त्री० [सं०] संध्या के समय आमंत्रित मित्रों की गोष्ठी जिसमें जलपान भी होता है। इवनिंग पार्टी) |
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