शब्द का अर्थ
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अंग :
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पुं० [सं०√अम् गति आदि+गन्] १. शरीर के विभिन्न अवयव। जैसे—हाथ, पैर, मुँह आदि। मुहा०—(किसी का) अंग छूना=शपथ खाने के लिए उसके शरीर पर हाथ रखना। अंग लगाना- छाती से लगाना, गले लगाना। २. शरीर, देह। मुहा—अंग उभरना- जवानी आना। यौवन का प्रारम्भ होना। अंग ऐड़ा करना—ऐठ, बल या शेखी दिखाना। अंग करना=(क) ग्रहण या स्वीकार करना (ख) अपना या आत्मीय बनाना। अंगों में अंग चुराना-लज्जा से संकुचित होना। अंग टूटना—थकावट आदि के कारण विभिन्न अंगों में पीड़ा होना जिसके फलस्वरूप अँगड़ाई आती है। अंग ढ़ीले होना—(क) थक हो जाना (ख) वृद्ध हो जाना। अंग तोड़ना—(क) अंगड़ाई लेना (ख) शारीरिक पीड़ा या कष्ट के कारण बार-बार अंग फटकना। छट पटाना। अंग देना- थोड़ा आराम करना। अंग में न माना—अति प्रसन्न होना। उदाहरण—पुलकि न मावति अंग।—सूर। अंग मुस्कराना—(क) अति प्रसन्न दिखाई पड़ना (ख) प्रसन्नता से रोमांचित हो जाना (ग) शारीरिक सौन्द्रर्य का खिलना। अंग मोड़ना—(क) शरीर के अंगों को लज्जावश छिपाना (ख) भय या संकोच के कारण पीछे हटना। उदाहरण—खेलै फाग अंग नहिं मोड़े सतगुरु से लपटानी। किसी के अंग लगाना—(क) गले लगाना (ख) संभोग करना (खाद्य पदार्थों का) अंग लगना— खाद्य पदार्थों के उपभोग से शरीर की पुष्टि या वृद्धि होना (रोगी के)। अंग लगना—बहुत दिनों से बिस्तर पर पड़े रहने से शरीर में घाव या शय्या-व्रण होना। अंग लगाना—गले लगाना (कन्या को) अंग लगाना—(कन्या को वर के सुपुर्द करना, सौंपना या विवाह में देना। फूले अंग न समाना—बहुत ही प्रसन्न होना। ३. कार्य सम्पादन करने का उपाय या साधन। ४. व्यक्तित्व। उदाहरण—राउरे अंग जोग जग को है—तुलसी। ५. वे अवयव, तत्त्व या सदस्य जिनके योग से किसी वस्तु, संस्था आदि का निर्माण होता है। अंश। जैसे—आप भी तो इस संस्था के अंग हैं। ६. संगीत में राग के स्वरूप या उसके प्रादेशिक प्रकार के विकार से होनेवाला विशिष्ट वर्ग या विभाग। जैसे—पूर्वी अंग का राग। ७. बड़ी तथा महत्त्वपूर्ण संस्थाओं के उपविभाग जैसे पूर्वी अंग का राग। ८. व्याकरण में प्रत्यय युक्त शब्द का प्रत्यय रहित अंश या भाग। जैसे—रम्+घञ (=राम) में रम् अंग है। ९. भागलपुर के समीपवर्ती प्रदेश का प्राचीन नाम जहाँ की राजधानी चम्पानगरी (आधुनिक चम्पारन) थी। १॰ अंग देश के निवासी। ११. नाटक में अंगी (नायक) के सहायक पात्र। १२. मध्य प्राचीन साहित्य में प्रेम या आपसदारी का सूचक एक संबोधन। १३. छः की संख्या (छः वेदांग होते है) १४. ओर तरफ १५. पक्ष पहलू। वि० १. अंगो वाला। २. अप्रधान। गौण। ३. संलग्न। ४. उलटा। |
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अँगऊँ :
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पु० दे० ‘अँगोगा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अँगक :
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पुं० [सं० अंग+कन्] शरीर का कोई छोटा अंग। |
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अंग-कद :
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पुं० [सं० अंग+फा० कद्] चित्रकला में इस बात का विचार कि चित्रित आकृति के सब अंग उसके कद या ऊँचाई के अनुसार ठीक हों। |
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अंग-कर्म :
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(न्) स्त्री०=अंग-क्रिया। |
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अंग-क्रिया :
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स्त्री० [ष० त०] १. यज्ञ में अपने किसी अंग का बलिदान देना। २. शरीर में उबटन आदि लगाना। |
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अंग-ग्रह :
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पुं० [ष० त] १. आघात रोग आदि के कारण अंगों में होने वाली पीड़ा। २. लोहे व ताँबे का वह टुकड़ा जो दो पत्थरों को एक साथ जोड़ने में उन पर जड़ा जाता हैं। |
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अंग-घात :
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पुं० [ ब० स०] शरीर की बात नाड़ियों तथा स्नायु-संस्थान के विकार के कारण होने वाला एक रोग, जिसमें शरीर का कोई एक अथवा कई अंग अक्रिय, अचेष्ट या सुन्न हो जाते हैं। (पैरालिसिस)। |
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अंगचारी :
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(रिन्)- पुं० [सं० अंग√चर् (गति) +णिनि] सहचर सखा। उदाहरण—मेरे नाथ आप सुधि लीनी, कीन्हीं निज अँगचारी। आनन्दघन। |
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अंग-चालन :
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पुं० [ष० त०] अंगों को हिलाना डुलाना या चलाना। |
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अंगच्छेद :
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पुं० [ष० त०] १. शरीर का कोई अंग काटने की क्रिया या भाव। २. अपराधी को उक्त रूप में दिया जाने वाला दण्ड। ३. रोगी के शरीर का कोई अंग काटकर अलग करने की क्रिया या भाव। (ऐम्प्यूटेशन)। |
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अंगज :
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वि० [अंग√जन् (उत्पन्न होना)+ड] जो अंग से उत्पन्न हुआ हो। जैसे—पसीना, रोएँ आदि। पुं० १. पुत्र। २. पसीना। ३. बाल। ४. काम, क्रोध आदि मनोविकार। ५. कामदेव। ६. रोग। ७. खून। ८. साहित्य में वर्णित सात्त्विक विकारों में से ये तीन-हाव, भाव हेला। |
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अंगजा :
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स्त्री० [अंग √जन्+ड-टाप] पुत्री। बेटी। |
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अंग-जाई :
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स्त्री० अंगजा। |
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अंग-जात :
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वि० पुं० [अंगजा+टाप्] दे० ‘अंगज’। |
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अंग-जाता :
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स्त्री० [ष० त०] दे० अंगजा। |
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अंग-जाया :
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स्त्री० [सं० अंगजात] [स्त्री० अंगजाई] औरस पुत्र। लड़का। |
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अंगड़-खंगड़ :
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वि० [अनु] १. टूटा-फूटा (समान)। २. गिरा-पड़ा अथवा इधर-उधर बिखरा हुआ सामान। ३. बचा-खुचा और निर्रथक। पुं० व्यर्थ की चीजें जो टूटी-फूटी इधर-उधर बिखरी पड़ी हो। |
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अंगड़ाई :
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स्त्री० [हि० अंगड़ाना] १. शरीर की एक स्वाभाविक क्रिया जो आलस्य या थकावट के कराण होती है और जिसके फलस्वरूप सारा शरीर कुछ पलों के लिए ऐंठ, तन या फैल जाता है। २. अँगड़ाई की क्रिया या भाव, २- हाव-भाव। मु०—अँगड़ाई लेना आलस्य आदि के कारण अंगो को ऐंठना तानना या फैलाना। |
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अँगड़ाना :
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अ० [सं० अंग] आलस्य, शिथिलता आदि के कारण शरीर के अंगों को तानने या फैलाने की क्रिया अँगड़ाई लेना। |
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अंगण :
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प० [सं०√अंग (गति आदि)+ल्युट्-अन-णत्व] आँगन। |
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अंगणि :
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स्त्री० [सं० अंगना] औरत, स्त्री। |
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अंगति :
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पुं० [सं० अंग (गति आदि) +अति] १. ब्रह्मा। २. विष्णु। ३. अग्निहोत्री। ४. अग्नि। ५. यान, सवारी। |
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अंग-त्राण :
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पुं० [ष० त०] १. अंगो की रक्षा करने वाली चीज। जैसे—कवच, जिरह, बकतर आदि। २. अँगरखा, कुरता या ऐसा ही कोई पहनने का कपड़ा। |
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अंगद :
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पुं० [सं० अंग√दै (सोधना) या दा (दान) +क ] [वि अंगदीय] १. बाँह पर पहनने का बाजूबंद (गहना)। २. राम की सेना का एक बंदर जो बालि का पुत्र था। ३. लक्ष्मण के दो पुत्रों में से एक। |
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अंग-दान :
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पुं० [ष० त०] १. युद्ध में आत्मसमर्पण करना। २. (स्त्रियों का रतिकाल में) अपना शरीर पुरुष को समर्पित करना। ३. स्त्री० से संभोग करना। ४. पीछे हटना, पीठ दिखलाना, भागना। |
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अंगदीय :
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वि० [सं० अंगद+छ-ईय] [स्त्री० अंगदीया] अंगद-संबंधी, अंगद का। |
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अंग-द्वार :
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पुं० [प० त०] शरीर के छेद या द्वार इस प्रकार हैं—दोनों कान, दोनों आँखे, नाक के दोनों रन्ध्र, मुख, गुदा, लिंग और ब्रह्माण्ड। विशेष—गीता के अनुसार शरीर में केवल नौ द्वार (ब्रह्मांण्ड को छोड़कर हैं)। |
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अंग-द्वीप :
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पुं० [ष० त०] पुराणों के अनुसार छः दीपों में से एक द्वीप। |
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अंगधारी :
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(रिन्) पुं० -[ अंग√ धू (धारण) +णिनि] अंग अथवा शरीर धारण करनेवाला प्राणी। |
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अंगन :
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पुं० [√अंग् (गति)+ल्यूट-अन]=आँगन। स्त्री०=अंगना |
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अंगना :
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पुं० -आँगन।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंगना :
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स्त्री० [सं०√अंग् (गति आदि) +न—टाप्] १. सुन्दर अंगों वाली स्त्री०, सुन्दरी। जैसे—देवांगना, नृत्याँगना आदि। २. उत्तर दिशा में सार्वभौम दिग्गज की हथिनी का नाम। ३. रहस्य समप्रदाय में अन्तकरण। हृदय। सं० [सं० अंग) अपने ऊपर लेना। अंगीकृत करना। उदाहरण—दो जग तो हम अंगिया, यह उर नाहीं मुज्झ—कबीर। |
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अँगनाई :
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स्त्री०-आँगन। |
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अंगना-प्रिय :
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पुं० [ष० त०] अशोक का वृक्ष। |
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अँगनैत :
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पुं० [हि० आँगन ऐत (प्रत्यय)] आँगन का स्वामी या घर का मालिक। गृहपति।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अँगनैया :
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स्त्री०-आँगन। |
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अंग-न्यास :
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पुं० [ष० त०] संध्या-पूजा आदि धार्मिक कृत्यों के समय मंत्रों का उच्चारण करते हुए विधिपूर्वक विभिन्न अंगों को स्पर्श करना। |
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अंग-पाक :
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पुं० [ष० त०] अंगों के पकने या सड़ने की क्रिया या रोग। |
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अंगपालिका :
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स्त्री०, [अंग√पाल् (पालन करना)+ण्वुल्-अकटाप् इत्व] धाय। दाई। |
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अंगपाली :
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स्त्री० [सं० अंग√पाल्+इअंगपालि+डीष्] आलिंगन। गले लगाना। |
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अंगपोछा :
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पुं० =अँगोछा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंग-प्रत्यंग :
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पुं० [द्व० सं० ] शरीर के सभी बड़े व छोटे अंग। |
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अंग बीन :
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पुं० [फा० अंगबी=शहद] एक प्रकार का बढ़िया आम और उसका वृक्ष। |
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अंग-भंग :
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पुं० [ष० त०] १. शरीर के किसी अंग का भंग या खण्डित होना। अंग का टूट जाना। २. दे अंग भंगी। वि० [ब० स०] १. जिसका कोई अंग टूटा या खंडित हो। २. अपाहज। |
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अंग-भंगिमा :
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(मन्) स्त्री० [ष० त०]=अंग-भंगी। |
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अंग-भंगी :
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स्त्री० [ष० त०] १. पुरुष या स्त्री० की कोमल और मनोहर चेष्टाएँ। २. पुरुष को मोहित करने के लिए स्त्री० का अपने विभिन्न अंगों (आँख, कान, मुँह हाथ आदि) को कौशलपूर्वक इस प्रकार हिलाना कि देखनेवाले प्रेमपूर्वक आकृष्ट हों। अदा। हाव-भाव। |
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अंग-भाव :
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पुं० [ष० त०] १. नृत्य या संगीत में शरीर के विभिन्न अंगों द्वारा मनोभाव प्रकट करने की क्रिया। |
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अंग-भू :
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वि० [अंग√ भू (होना)+क्विप्] शरीर या अंग से उत्पन्न। हो। पुं० १. पुत्र। बेटा। २. कामदेव। |
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अंग-भूत :
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भू० कृ० [पं० त०] १. जो शरीर या अंग से उत्पन्न हुआ हो। २. जो किसी के अंग के रूप में उसके अन्तर्गत या अन्दर हो अथवा साथ लगा हो। पुं० १. पुत्र। बेटा। २. कामदेव। |
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अंग-मर्द :
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पुं० [ष० त०] १. हड्डियों में दर्द होना। २. दे० ‘अंगमर्दक'। |
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अंग-मर्दक :
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पुं० [ष० त०] शरीर दबाने व उसमें मालिश करनेवाला। |
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अंग-मर्दन :
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पुं० [ष० त०] १. अंगों को मलने का कार्य। मालिश करना। २. देह दबाना। |
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अंग-मर्ष :
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पुं० [ष० त०] गठिया नामक रोग। |
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अंग-रक्षक :
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पुं० [ष० त०] वे सैनिक या सेवक जो बड़े शासकों आदि की रक्षा के निर्मित उनके साथ रहते हैं। (बाडीगार्ड) |
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अंग-रक्षा :
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पुं० [ष० त०] शरीर के अंगों की रक्षा या बचाव। |
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अंग-रक्षी क्षिन् :
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पुं० [ष० त०] स्त्री० अंग-रक्षिणी १. अंग रक्षक २. कवच। |
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अँगरखा :
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पुं० [सं० अंग रक्षक] एक प्रकार का लंबा पहनावा जिसमें बाँधने के लिए बंद रहते हैं। अंगा। अचकन। |
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अंग-रस :
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पुं० [ष० त०] किसी वनस्पति के फलों, फूलों, पत्तियों आदि को कूटकर तथा निचोड़कर निकाला हुआ रस। |
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अँगरा :
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पुं० [सं० अंगार] १. बैलों के पैर में होने वाला एक रोग। २. दे० ‘अंगारा'। |
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अँगराई :
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स्त्री०=‘अँगड़ाई'। उदा०—करुणा की नव अँगराई सी।—प्रसाद। |
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अँग-राग :
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पुं० [ष० त०] १. उबटन, विशेषतः केसर, कपूर आदि सुगन्धित द्रव्यों का। २. मेंहदी, महावर आदि सामग्री जिससे स्त्रियाँ अपने अंग विशेष रगती हैं। ३. शरीर की सजावट की सामग्री। ४. स्त्रियों के पाँच अंगों की सजावट—माँग में सिन्दूर, माथे पर रोली, गाल पर तिल, केसर का लेप और हाथ-पैर में महावर या मेंहदी लगाना। ५. सुगन्धित बुकनी जो मुँह तथा शरीर पर लगाई जाती है। (पाउडर) |
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अंग-राज :
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पुं० [ष० त०, टच्] १. अंगदेश का राजा कर्ण। २. राजा दशरथ के सखा लोमपाद। |
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अँगराना :
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अं०=अँगड़ाना। |
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अँगरी :
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स्त्री० [सं० अंग+रक्ष या अंगुलीयक] १. कवच, जिरह, झिलम आदि। २. गोह के चमड़े का दस्ताना जो धनुष चलाते समय हाथ में पहना जाता था। उदाहरण—अँगरी पहिरि कूंड़ सिर धरहीं—तुलसी। |
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अँगरेज :
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पुं० [पुर्त इंग्लेज] इंग्लैण्ड देश का निवासी। |
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अँगरेजियत :
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स्त्री० [दे० अंगरेज] अँगरेजी रंग-ढंग या चाल-ढाल। अँगरेजीपन। |
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अँगरेजी :
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वि० [दे० अँगरेज] १. अंगरेजों का या उनसे संबन्ध रखने वाला। २. अंगरेजों जैसा। स्त्री० १. अंगरेजों की भाषा। २. पुरानी चाल की एक प्रकार की तलवार। |
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अंगलेट :
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पुं० [सं० अंग] शरीर की गठन, ढाँचा या बनावट। (फिजीक) |
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अंग-लेप :
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पुं० [ष० त०] शरीर पर सुगन्धित द्रव्य या लेप। |
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अँगवना :
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सं० [सं० अंग] १. अंगीकार करना। ग्रहण करना। २. आलिंगन करना। गले लगाना। ३. सहना। बर्दाश्त करना। ४. किसी प्रकार अपने ऊपर लेना। |
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अँगवनिहारा :
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वि० [हि० अंगवना+हारा (प्रत्यय)] १. अंगीकार या ग्रहण करने वाला। २. अपने ऊपर लेने वाला या सहनेवाला। (क्व०)(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अँगवाना :
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सं० हि० अंगवाना का प्रे०।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अँगवारा :
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पुं० [सं० अंग=अंश] १. ग्राम के किसी छोटे भाग का स्वामी। २. खेत की जुताई में एक-दूसरे को दी जाने वाली सहायता।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंग-विकृति :
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स्त्री० [ष० त०] १. शरीर या अंगो के रूप में विकार होना। २. मिरगी का रोग। अपस्पार। |
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अंग-विक्षेप :
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पुं० [ष० त०] १. हाव-भाव दिखलाना। चमकना-मटकना। २. नाच-नृत्य। ३. कलाबाजी। |
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अंगविद्या :
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स्त्री० सामुद्रिक। |
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अंग-विभ्रम :
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पुं० [ष० त०] एक रोगी जिसमें रोगी अपने किसी या कई अंगो की सुधि भूल जाता है। |
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अंगशुद्धि :
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स्त्री० [ष० त०] १. शरीर के अंगों की शुद्धि या सफाई। २. मंत्रों आदि के द्वारा की जानेवाली शरीर की शुद्धि। |
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अंग-शोष :
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पुं० [ ष० त०] अंगों के सूखने का रोग। सुखंडी। |
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अंग-संग :
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पुं० [ष० त०] मैथुन। संभोग। |
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अंग-संगी :
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(गिन्) वि० [ष० त०] मैथुन या संभोग करनेवाला। |
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अंग संचालन :
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पुं० [ष० त०] अंगों को संचालित करने या हिलाने-डुलाने की क्रिया। |
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अंग-संधि :
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स्त्री० [ष० त०]=संध्यंग |
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अंग-संस्कार :
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पुं० [ष० त०] अंगों का श्रृंगार। शरीर की सजावट। |
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अंग-संस्थान :
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पुं० [ष० त०] दे० ‘रूप विधान’ (मारफालोजी)। |
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अंग संहति :
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स्त्री० [ष० त०] अंगों की गठन या बनावट। अंगलेट। |
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समानार्थी शब्द-
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अंग-सख्य :
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पुं० [ष० त०] गहरी या गाढ़ी मित्रता। |
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समानार्थी शब्द-
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अंग-सिहरी :
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स्त्री० [स० अंग+दे सिहरना] १. अंगों का सिहरना। कँपकपी। २. जूड़ी बुखार।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंग-सेवक :
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पुं० [ष० त०] १. शारीरिक सेवाएँ करनेवाला नौकर। २. निजी सेवक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंग-हानि :
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स्त्री० [ष० त०] १. अंग का कटकर अलग हो जाना या नष्ट हो जाना। २. अंग की विकृति। ३. किसी प्रधान कार्य के किसी अंग विशेष को उचित ढ़ंग से या बिल्कुल ना करना या न होना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंग-हार :
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पुं० [ष० त०] १. चमकना मटकना। २. नृत्य, नाच। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंग-हीन :
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वि० [तृ० त०] १. जिसके शरीर का कोई अंग खंडित हो। लुंज। २. जिसके शरीर का कोई अंग निष्किय हो, लूला। पुं० कामदेव। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगांगीभाव :
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पुं० [सं० अंगांगिभाव, अंग अंगी, द्ध० स० अंगांगि-भाव ष० त०] १. वह भाव या संबंध जो शरीर और अंग से होता है। २. किसी प्रधान या बड़ी वस्तु आदि का उसके गौण या लघु भाग से होनेवाला संबंध। ३. संकर अलंकार का एक भेद, जहाँ एक ही छन्द में कुछ अलंकार प्रधान रूप में और कुछ उससे आश्रित रूप में आते हैं। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगा :
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पुं० [सं० अंगक)=‘अँगरखा’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगाकड़ी :
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स्त्री० [सं० अंगार+कड़ी (प्रत्यय)] अंगारों पर सेंककर बनाई हुई मोटी रोटी। बाटी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगाधिप :
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पुं० [सं० अंग-अधिप, ष० त०] १. अंग देश का राजा कर्ण। २. किसी लग्न का स्वामी गृह। (ज्योतिष)। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगाधीश :
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[सं० अंग-अधीश, ष० त०]=अंगाधिप। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगाना :
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सं० [सं० अंग] अपने अंग में या अपने ऊपर लेना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) उदाहरण—मनहुँ एक कौ रंग एक निज अँग अँगाए।—रत्ना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगार :
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पुं० [सं०√अंग (गति आदि) +आरन्] १. जलता हुआ कोयला या लकड़ी का टुकड़ा। मुहा०—अंगार उगलना—उद्धण्डतापूर्वक बहुत कड़ी बात कहना। जली-कटी सुनाना। २. चिनगारी। ३. मंगल गृह। ४. हितावली नामक पौधा। ५. लाल रंग। वि० जलते हुये कोयले की तरह लाल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगारक :
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पुं० [सं० अंगार+कन्] १. जलता या दहकता हुआ कोयला आदि। २. मंगल गृह। ३. भँगरैया नामक वनस्पति। ४. कटसरैया नामक पेड़। ५. एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण अधातवीय तत्त्व जिसका परमाण्वीय भार। १२ और परमाण्वीय संख्या ६ है। (कार्बन) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगारकाम्ल :
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पुं० [सं० अंगारक+अम्ल, कर्म, सं,०] एक अम्ल जो आक्सीजन और कार्बन के मेल से बनता है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगारकारी (रिन्) :
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पुं० [सं० अंगार√कृ (करना) +णिनि] बेचने के लिए कोयला बनानेवाला। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगारकित :
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भू० कृ० [सं० अंगारक+इतच्] १. आग से जलाया हुआ। २. अंगारों पर भूना हुआ। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगार-धानिका :
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स्त्री० [ष० त०] अँगीठी। |
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अंगार-धानी :
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स्त्री० [ष० त०] अँगीठी। |
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अंगार-पर्ण :
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पुं० [ब० स०-अंगारपर्ण (-वन तथा उसका स्वामी) +अच्] चित्ररथ नामक गंधर्व का एक नाम। |
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अंगार-पाचित :
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पुं० [सं० त०] अँगारों पर पकाया हुआ भोजन। जैसे—बिस्कुट, कबाब, नानखटाई आदि। भू० कृ० अंगारों पर पकाया हुआ। |
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अंगार-पुष्प :
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पुं० [ब० सं० ] हिंगोट का पेड़, जिसके फूल अँगारे की तरह लाल होते हैं। |
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अंगार-बल्ली :
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स्त्री०=अंगारबल्ली। |
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अंगार-मंजरी :
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स्त्री० [ब० स०] करौंदा। |
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अंगार-मणि :
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पुं० [मध्य सं० ] मूंगा। |
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अंगार-मती :
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स्त्री० [सं० अंगार+मतुप्-डीप्] १. कर्ण की स्त्री० का नाम। २. हाथ की उँगलियों में होनेवाला गलका नाम का रोग। |
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अंगार-वल्ली :
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स्त्री० [मध्य सं० ] १. घुंघची की लता। २. करंज की लता। |
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अँगारा :
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पुं० [सं० अंगार, मरा अंगार, गु० अंगारी, अंगिरा] जलता तथा दहकता हुआ कोयला या लकड़ी का टुकड़ा। मुहावरा— अँगारा बनाना—आवेश तथा क्रोध के कारण लाल होना। अंगारा होना—अंगारा बनना। अंगारे उगलना-अप्रिय, जलीकटी या चुभती हुई बातें कहना। अंगारे फाँकना- ऐसा काम करना जिसका बुरा फल हो। अंगारे बरसना-(क) अत्यधिक गरमी पड़ना। (ख) धूप का बहुत तेज होना। (ग) तेज लू चलना। अंगारे सिर पर धरना- बहुत कष्ठ सहना। अंगारों पर पैर रखना—जानबूझकर अपने को खतरे में डालना। अंगारों पर लोटना—(क) अत्यधिक क्रोध से अभिभूत होना। (ख) अत्यधिक ईर्ष्या या आत्म ग्लानि से जलना। पद—लाल अंगारा बहुत अधिक लाल। वि० गरम तथा तपा हुआ। |
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अंगारिका :
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स्त्री० [सं० अंगार+ठन्-इक्-टाप्] १. अंगीठी। २. ऊख या उसका टुकड़ा। ३. किंशुक की कली। |
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अंगारिणी :
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स्त्री० [सं० अंगार+इनि-डीप] १. अँगीठी। २. डूबते हुए सूर्य की लालिमा से रंजित दिशा। |
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अंगारित :
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भू० कृ० [सं० अंगार+क्विप्+क्त] जला हुआ। दग्ध। पुं० पलाश की कली। |
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अंगारी :
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स्त्री० [सं० अंगार+ठन्-इक, पृषो०-कलोप-डीष्] १. छोटा अंगारा। २. चिनगारी। ३.अंगारों पर पकाई हुई छोटी रोटी। बाटी। ४. अंगीठी। स्त्री० [सं० अंगारिका) १. गन्ने के कटे हुए छोटे टुकड़े। गँडेरी। २. गन्ने के सिरे पर की पत्तियाँ। गोंडी। |
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अंगारीय :
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वि० [सं० अंगार√छ-ईय] १. अंगार-संबंधी। २. कोयला बनाने के काम में आने योग्य (वृक्ष आदि)। |
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अंगिका :
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स्त्री० [सं०√अंग् (गतिआदि) +इनि+कन्-टाप्] स्त्रियों की अँगिया। चोली। |
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अँगिया :
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स्त्री० [सं० अंगिका] १. कुरती के आकार का परन्तु उससे छोटा पहनावा, जिससे स्त्रियाँ अपने स्तन ढकती हैं। (बाडी) २. आटा छानने की चलनी। |
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अंगिरस :
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पुं० [सं० छान्दस प्रयोग] १. परशुराम के अवतार के समय का विष्णु का एक शत्रु। २. दे० ‘अंगिरा’। |
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अंगिरा (रस) :
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[सं०√अंग्√असि, इरूट्] १. एक ऋषि जिनकी गणना दस प्रजातियों में होती है और जो अथर्ववेद के मंत्र-द्रष्टा माने जाते हैं। २. बृहस्पति। ३. साठ संवत्कारों में से छठा। ४. गुल्लू नामक वृक्ष का गोंद। |
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अँगिराना :
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अ० दे० ‘अँगड़ाना’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंगी :
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(गिन्)- पुं० [सं० अंग+इनि] १. अंग या शरीरवाला। देहधारी। २. वह जिसके साथ और अंग भी लगे हुए हों। ३.समष्टि। ४.चौदह विद्याएँ। ५. नाटक का प्रधान नायक। ६. नाटक का प्रधान रस। वि० जिसने शरीर धारण किया हो। |
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अंगीकरण :
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पुं० [सं० अंग√च्वि+कृ(करना)+ल्युट्-अन्] वि अंगीकार्य, भू० कृ० अंगीकृत अंगीकार करने की क्रिया या भाव। |
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अंगीकार :
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पुं० [सं० अंग+च्वि√ कृ+घञ वि० अंगीकार्या, भू० कृ० अंगीकृत] १. अपने अंग पर या अपने ऊपर लेने की क्रिया या भाव। ग्रहण करना। २. स्वीकार करना। |
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अंगीकार्य :
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वि० [सं० अंग+च्वि√कृ+घञ] [वि० अंगीकार्य, भू० कृ० अंगीकृत] १. अपने अंग या अपने ऊपर लेने की क्रिया या भाव। ग्रहण करना। २. जो अंगीकर किया जाने के को हो। |
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अंगीकृत :
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भू० कृ० [सं० अंग+च्वि√कृ+क्त] १. जिसका अंगीकरण हुआ हो। ग्रहण किया हुआ। २. स्वीकृत किया हुआ। ३. अपने ऊपर लिया हुआ। |
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अंगीकृति :
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स्त्री० [सं० अंग+च्वि√ कृ+क्तिन्]=अंगीकरण। |
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अँगीठ :
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पुं० अँगीठा। |
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अँगीठा :
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पुं० [सं० अग्नि] बड़ी अँगीठी। |
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अँगीठी :
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स्त्री० [सं० अग्निष्ठिका] मिट्टी, लोहे आदि का वह प्रसिद्ध पात्र जिसमें आग सुलगाते हैं। |
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अंगीय :
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वि० [सं० अंग+छ-ईय] अंग-सम्बन्धी। अंग का। |
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अँगुठी :
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स्त्री० [सं० अंगुष्ठ]=अँगूठी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंगुर :
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पुं०=अंगुल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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अँगुरि :
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स्त्री०=अंगुलि।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगुरिया :
|
स्त्री०=उँगली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगुरी :
|
स्त्री०=उँगली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुरीय :
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पुं० [सं० अंगुरि+छ-ईय] अँगूठी। |
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अंगुरीयक :
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पुं० [सं० अंगुरीय+कन्] अँगूठी। |
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अंगुल :
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पुं० [सं०√अंग् (गति आदि) +उल] १. उँगली। २. एक नाप जो उँगली की चौड़ाई के बराबर होती है। ३. नक्षत्र का बारहवाँ भाग। (ज्यो०) ४. वात्यायन मुनि। |
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अंगुलि :
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स्त्री० [सं०√अंग्+उलि] १. उँगली। २. अंगुल की चौड़ाई के बराबर नाप। ३. हाथी के सूड़ का अगला भाग जिससे वह उँगलियों का काम लेता है। ४. गजकर्णिका नामक वृक्ष। |
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अंगुलि-त्र :
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पुं० [सं० त्रै (बचाना) +क, ष० त०] १. मिजराब आदि से बजाए जाने वाले सितार आदि बाजे। अंगुलि-त्राण। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुलि-त्राण :
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पुं० [ष० त०] १. गोह के चमड़े का दस्ताना जो बाण चलाते समय पहना जाता था। २. दस्ताना। |
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अंगुलि-निर्देश :
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पुं० [तृ० त] किसी की ओर उँगली से इशारा करने की क्रिया जो उसकी निंदा या बदनामी का सूचक होता है। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुलि-पंचक :
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पुं० [ष० त०] हाथ की पाँचों उँगलियाँ। |
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अंगुलि-पर्व :
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(न्) पुं० [ष० त०] उँगलियों के पोर। |
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अंगुलि-प्रतिमुद्रा :
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स्त्री० [ष० त०] किसी व्यक्ति विशेषता अपराधी आदि की पहचान के लिए ली जाने वाली उँगली के अगले भाग की छाप। (फिंगर-प्रिंट) |
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अंगुलि-मुद्रा :
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स्त्री० [ष० त०] १. ऐसी अंगूठी जिसपर जिसका नाम खुदा हो। २. नाम खोदी हुई अंगूठी जो मोहर लगाने के काम आती है। ३. दे० ‘अंगुलि-प्रतिमुद्रा’। |
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अंगुलि-वेष्टन :
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पुं० [ष० त०] दस्ताना। |
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अंगुलि-संदेश :
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पुं० [तृ० त०] उँगली की मुद्रा अथवा चुटकी बजाकर कोई बात कहना या संकेत करना। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुलिका :
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स्त्री० [सं० अंगुलि+कन्-टाप्] १. उँगली २. एक प्रकार की च्यूँटी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगुली :
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स्त्री०=उँगली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगुल्यादेश :
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पुं० [सं० अंगुलि आदेश, तृ त०] अंगुलि-निर्देश। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुल्यानिर्देश :
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पुं० [सं० असमस्तपद] अंगुलि-निर्देश। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगुश्ताना :
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पुं० [फा०] १. सिलाई करते समय उंगली के बचाव के लिए उँगली पर पहनने के लिए लोहे या पीतल की एक टोपी। २. तीर चलाते समय हाथ के अँगूठे के रक्षा के लिए पहनीं जाने वाली सींग या हड्डी की बनी एक विशेष प्रकार की अँगूठी। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुष्ठ :
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पुं० [सं० अंगु√ स्था (ठहरना) +क] (हाथ या पैर का) अँगूठा। |
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समानार्थी शब्द-
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अंगुसा :
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पुं० [सं० अंकुश=टेढ़ी नोंक] अँखुआ अंकुर। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगुसाना :
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अ० [हि० अँगुसा] अंकुरित होना। अँखुआ निकलना। सं० अंकुरित करना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगूसी :
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स्त्री० [सं० अंकुश] १. हल का फाल। २. दे० ‘अँकुसी’। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगूठना :
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सं० दे० ‘अगूठना’ घेरना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगूठा :
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पुं० [सं० अंगु+स्थ, अंगुष्ठ, प्रा० अंगुट, जल्द० अंगुस्त, फा० अंगुस्त, सिंह० अंगुष्ट, सिं० अँगूठी, प० अँगूठो, मरा० अंगठा] १. मनुष्य के हाथ की पाँच उँगलियों में से वह छोटी तथा मोटी उँगली जिसके दोपोर होते हैं। (बाकी चारों उँगलियों के चार-चार पोर होते हैं।) मुहावरा—अँगूठा चूमना—(क) चापलूसी करना। (ख) अत्यधिक विनम्रता दिखाना। (ग) पूर्णता अधीन होना। अंगूठा चूसना—बड़े होकर भी बच्चों की सी नादानी करना। अँगूठा दिखाना—अभिमान पूर्वक अस्वीकृति सूचित करना। (ख) किसी कार्य को करने से हट जाना। अँगूठे पर मारना—परवाह न करना। पद—अँगूठे का निशान या अँगूठे की छाप-बाएँ हाथ के अँगूठे का वह निशान व छाप जो किसी व्यक्ति की ठीक पहचान के लिए लेख्यों आदु पर ली जाती है। (थम्ब इम्प्रेशन)। २. मनुष्य के पैर की सबसे मोटी उँगली। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगूठी :
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स्त्री० [दे० अँगूठा+ई] १. उँगलियों में पहना जाने वाला धातु का एक गोलाकार गहना। मुँदरी मुद्रा। पद—अँगूठी का नगीना=बहुत महत्त्वपूर्ण पदार्थ या व्यक्ति। २. पाई को राछ में छोड़ते समय उँगली में लपेटे हुए तागों का लच्छा। स्त्री० (हि० अँगूठना-घेरना) १. घेरने की क्रिया या भाव। २. घेरा उदारहण—जेहि कारन गढ़ि कीन्ह अँगूठी—जायसी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगूर :
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पुं० [फा] [वि० अंगूरी] १. कश्मीर, अफगानिस्तान आदि देशों में होने वाली एक प्रसिद्ध लता जिसके मीटे छोटे फल खाये जाते हैं। किशमश, दाख, मुनक्का इसी के भेद और रूप हैं। २. उक्त लता के फल। मुहावरा—अंगूर खट्टे होना—किसी अच्छी चीज का अपनी पहुँच के बाहर होना। पद— अंगूर की टट्टी-पतली लकड़ियों की बनी हुई वह टट्टी या परदा जिस पर अंगूर की बेलें चढ़कर फैलती है। पुं० [सं० अंकुर) घाव के भरने के समय उसमें दिखाई पड़ने वाले मांस के छोटे लाल दाने। मुहावरा—अंगूर तड़कना या फटना—भरते हुए घाव पर बंधी हुई मांस की झिल्ली का तड़क या फट जाना। अँगूर बँधना=घाव के ऊपर मांस की नई झिल्ली जमना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगूरशेफा :
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पुं० [फा०] एक प्रकार की जड़ी जो हिमालय पर होती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगूरिया :
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स्त्री०=अँगूरी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगूरिया बेल :
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स्त्री०=अंगूरी बेल। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगूरी :
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वि [फा० अंगूर+ई] १. अंगूर से बना हुआ। जैसे—अंगूरी शरबत। २. अंगूर के रंग का। जैसे—अंगूरी कपड़ा। ३. अंगूर की लता की तरह का। जैसे—कपड़ों पर बनी हुई अंगूरी बेल। पद—अंगूरी बेल—कपड़ों आदि पर तागे से काढ़ी जाने या रंग से छापी जाने वाली बेल जो देखने में अंगूर की बेल जैसे होती है। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगूरी शराब :
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स्त्री० [फा०] अंगूर के रस से बनाई हुई शराब। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगेजना :
|
सं० [सं० अंग+?] अपने ऊपर लेना। २. ग्रहण या स्वीकार करना। 3. सहन करना। झेलना। उदा०—मैं तो बाबा की दुलारी दरद कैसे अँगेजब हो।—ग्रामगीत।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगेट :
|
स्त्री० सं० [सं० अंग+?] अंग की या शरीर की शोभा या दीप्ति। उदा०—एड़ी तैं सिखा लौं है अनूठिए अंगेट आछी रोम रोम नेह की निकाई में रही है सनी।—घनानन्द। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगेठा :
|
पुं० [स्त्री० अंगेठी]=अँगीठा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगेरना :
|
सं० =अँगेजना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगोछना :
|
अ० [हि० अंगोछा से] कपड़े या अँगोछे से शरीर पोंछना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगोछा :
|
पुं० [सं० अंगवस्त्र; गु० अंगुछो, हि० अंगोछा, सि० अगोचा, मरा, अंगुचें, का० अंगोस] [स्त्री० अल्पा० अँगोली] शरीर पोछने का एक प्रकार का छोटा कपड़ा। गमछा। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगोजना :
|
सं०=अँगेजना। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगोट :
|
स्त्री०=अंगेट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगोरा :
|
पुं० [सं० अंग+ ?] मच्छर।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगोरी :
|
स्त्री०=अँगारी। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगौंगा :
|
पुं० [सं० अग्र-अगला+अंग-भाग] अन्न आदि की राशि में किसी देवी या देवता के नाम पर निकाला हुआ अंश या उसके बदले में कुछ धन। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगौटी :
|
स्त्री०=अँगेट।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगौड़ा :
|
पुं०=अंगौंगा।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँगौरिया :
|
पुं० [सं० अंग=भाग] वह हलवाहा जो मजदूरी के बदले किसान से हल बैल लेकर अपना खेत जोतता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंग्य :
|
वि० [सं० अंग+यत्] अंग संबंधी, अंगो का। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंग्रेज :
|
पुं० =अंगरेज। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अँग्रेजी :
|
स्त्री०=अंगरेजी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगज :
|
वि० [सं० गज=गंजन] जिसे जीता न जा सके। अजेय। उदाहरण—आवन अवनि अगंज हुआ, जानि उल्कापात—चन्द्रबरदाई। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अंगीत पछीत :
|
क्रि० वि० [सं० आग्रतः पश्चात्] १. आगे-पीछे। २. अगवाड़े-पिछवाड़े। पुं० आगे और पीछे के भाग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |