शब्द का अर्थ
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अंबवर :
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पुं० [सं० अंबर+वर] अच्छा वस्त्र। (डि०) |
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अंब :
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पुं० [सं० अंबर] आकाश। गगन। उदाहरण—उड़ीयण वरिज अंब हीर-चन्द्र। पुं० [सं० आम्र] आम का वृक्ष और उसका फल। स्त्री०=अंबा (माता)। |
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अंबक :
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पुं० [सं०√अम्ब (जाना) +ण्वुल-अक] १. आँख, नेत्र। २. ताँबा। ३. पिता। |
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अंबख :
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पुं०=अंबक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंबर :
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पुं० [सं०√अब् (शब्द) +घञ-अंब+ रा (दान) +क] १. घेरा परिधि। २. कपास। ३. कपड़ा, वस्त्र। ४. एक विशेष प्रकार का रेशमी कपड़ा। ५. आकाश। मुहावरा—अंबर के तारे डिगना=असंभव घटना घटित होना। उदाहरण—अंबर के तारे डिगैं जूआ लाडै बैल-कोई कवि। ६. बादल, मेघ। ७. ब्रह्वारंध्र। ८. अमृत। ९. अबरक। १॰. उत्तर भारत के एक प्रदेश का पुराना नाम। ११. एक प्रसिद्ध सुगन्धित द्रव्य जो ह्वेल मछली की आँतों में से निकाला जाता है। |
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अंबर-चर :
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वि० [सं० अंबर√चर् (गति)+ट] आकाश में चलने वाला। पुं० १. पक्षी, चिड़िया। २. विद्याधर (देव-योनि)। |
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अंबर-चारी (रिन्) :
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पुं० [सं० अंबर√ चर+णिनि] आकाश में चलनेवाले पक्षी आदि। |
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अंबर-डंबर :
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पुं० [सं० अंबर=आकाश] सूर्यास्त के समय पश्चिम दिशा में दिखाई पड़ने वाली लाली। उदाहरण—अंबर-डंबर साँझ के ज्यों बालू की भीत—अज्ञात। |
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अंबर-द :
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पुं० [सं० अंबर√ दा (देना)+क] कपास जिससे कपड़े बनते हैं। |
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अंबर-पुष्प :
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पुं० [ष० त०] =आकाश-कुसुम। |
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अंबर-बारी :
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स्त्री०=दारुहल्दी। |
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अंबरबेलि :
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स्त्री०=आकाश-बेल। |
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अंबर-मणि :
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पुं० [ष० त०] सूर्य। |
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अंबरसारी :
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पुं० [?] प्राचीन काल में घरों पर लगने वाला एक प्रकार का कर या टैक्स। |
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अंबरांत :
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पुं० [सं० अंबर—अंत ष० त०] क्षितिज। |
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अँबराई :
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स्त्री०=अमराई। |
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अँबराउँ :
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पुं०=अमराई। |
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अँबराव :
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पुं०=अमराई। |
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अँबरी :
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वि० [हिं० अंबर+ई (प्रत्यय] जिसमें अंवर (एक सुगन्धित द्रव्य) पड़ा या मिला हो। अंबर की सुगन्ध से युक्त। जैसे—अंबरी बिरियानी। |
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अंबरीष :
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पुं० [सं० अंब (पाक) +अरिष, नि० दीर्घ] १. विष्णु। २. शिव। ३. सूर्य। ४. ग्यारह वर्ष की अवस्था का बालक। ५. युद्ध लड़ाई। ६. आमड़े का वृक्ष और उसका फल। ७. पश्चात्ताप। ८. भाड़ भरसाई। ९. मिट्टी का वह बरतन जिसमें अनाज के दाने (भाड़ में) भूने जाते है। १॰. अयोध्या के एक प्रसिद्ध और प्राचीन सूर्यवंशी राजा जो इक्ष्वाकु से २८वीं पीढ़ी में हुए थे। |
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अंबरीसक :
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पुं० [सं० अम्बरीष] भाड़, भड़साई। (ड़िं) (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंबरौक (स) :
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पुं० [सं० अंबर-ओकस्, ब० स०] देवता। |
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अंबला :
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वि० =अम्ल। पुं०=अमल।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अँबली :
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पुं० [सं० अंबर] एक प्रकार की गुजराती कपास। |
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अंबष्ठ :
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पुं० [सं० अंब√ स्था (ठहरना)√क) (स्त्री०अंवष्ठा] १. एक प्राचीन जनपद जो चनाव नदी के निचले भाग के दोनों ओर बसा था। २. उक्त प्रदेश का निवासी। ३. ब्राह्यण पिता और वैश्य माता से उत्पन्न एक जाति का पुराना नाम। ४. महावत। ५. कायस्थ जाति का एक वर्ग या शाखा। |
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अंबष्ठा :
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स्त्री० [सं० अंबष्ठ+टाप्] १. अंबष्ठ जाति की एक स्त्री०। २. पाढ़ा नाम की लता। ३. जूही। |
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अंबष्ठिका :
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स्त्री० [सं० अंबष्ठ+कन-टाप्, इत्व]=अंबष्ठा। |
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अंबहर :
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पुं० [सं० अंबर] आकाश। पुं० दे० ‘अमहर'। |
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अंबा :
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स्त्री० [सं०√अंब (गति) +घञ-टाप्] १. जननी। माता। २. पार्वती। ३. काशिराज इंद्रद्युम्न की सबसे बड़ी कन्या जिसे भीष्म हर ले गये थे। ४. यमुना नदी की एक शाखा। ५. पाढ़ा लता। पुं०=आम (वृक्ष और फल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंबाझोर :
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वि० [हि० अंबा=आम+झोरना] बहुत तेज हवा (जिससे पेड़ों के आम झड़ जाएँ) |
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अँबाड़ा :
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पुं०=आमड़ा। |
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अंबापोली :
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स्त्री० [सं० आम्र=आम, प्रा० अंब+सं० पौलि=रोटी] अमावट। |
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अंबार :
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पुं० [फा०] ढेर। राशि। |
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अंबारी :
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स्त्री० [अं० अमारी] १. एक प्रकार का छज्जेदार मंडपवाला हौदा। २. मकान के अगले या ऊपरी भाग में बना हुआ उक्त प्रकार का मंडप। स्त्री० (?) पटसन। (दक्षिण)। |
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अंबालिका :
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स्त्री० [सं० अंबा√ला (लेना) +क-टाप्, इत्व] १. माता। २. काशी के राजा इंद्रद्युम्न की छोटी कन्या जिसे भीष्म पितामह हर ले गए थे। 3. अंबष्ठा या पाढ़ा नाम की लता। |
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अंबिका :
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स्त्री० [सं० अंबा+कन्-टाप्, इत्व] १. माता। २. दुर्गा। ३. पार्वती। ४. जैनियों की एक देवी। ५. काशी के राजा इंद्रद्युम्न की कन्या जिसे भीष्म पितामह हर ले गये थे और जिसके गर्भ से धृतराष्ट्र उत्पन्न हुए थे। ६. कुटकी नाम का पौधा। ७. दे० ‘अंबा’। |
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अंबिका पति :
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पुं० [ष० त०] शिव। |
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अंबिका-वन :
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पुं० [ष० त०] पुराणों के अनुसार एक वन जहाँ पहुँचने पर पुरुष स्त्री० बन जाता था। |
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अंबिकेय :
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पुं० [सं० अंबिका+ढ-एय] १. अंबिका के पुत्र-गणेश। २. कार्तिकेय। ३.धृतराष्ट्र। |
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अँबिया :
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स्त्री० [सं० आम्र० प्रा०अंब] छोटा कच्चा आम। |
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अँबरिया :
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वि० =वृथा। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अँबिली :
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स्त्री०=इमली (का वृक्ष और उसका फल)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अंबु :
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पुं० [सं०√अंब (शब्द) +उ] १. जल, पानी। २. रक्त या खून का जलीय अंश। ३. (जल को चौथा तत्त्व मानने के कारण) चार का अंक या संख्या। ४. जन्म-कुण्डली में चौथा घर या स्थान। ५. सुगंधबाला। |
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अंबु-कंटक :
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पुं० [ष० त०] मगर नाम का जल-जन्तु। |
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अंबु-कीश :
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पुं० [स० त०] सूँस नामक जल-जन्तु। |
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अंबु-कूर्म :
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पुं० [स० त०] सूँस (जल-जन्तु)। |
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अंबु-केशर :
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पुं० [स० त०] नीबू। |
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अंबु-घन :
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पुं० [ष० त०] ओला। |
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अंबु-चर :
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विं० [सं०√अंबु चर् (गति)+ट] जल में रहनेवाला। पुं० जल में रहने या विचरण करनेवाला जंतु या जीव। |
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अंबु-चत्वर :
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पुं० [ष० त०] झील। |
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अंबु चामर :
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पुं० [स०त०]=सिवार। |
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अंबु-चारी (रिन्) :
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पुं० [सं०√अंबु चर्+णिनि]=अंबुचर। |
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अंबुज :
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वि० [सं०√अंबु जन् (उत्पन्न होना) +ड] (स्त्री०अंबुजा) जो जल से या जल में उत्पन्न हुआ हो। जैसे—कमल, कुमुदिनि आदि। पुं० १. जल से उत्पन्न वस्तु। २. कमल। ३. ब्रह्या। ४. चंद्रमा। ५. शंख। ६. वज्र। ७. पनिहा या हिज्जल नामक वृक्ष। ८. सारस पक्षी। ९. कपूर। १. बेंत। |
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अंबुजा :
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स्त्री० [सं० अंबुज√टाप्] १. कुमुदिनि। २. कमलिनि। ३. संगीत में एक रागिनी। |
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अंबुजाक्ष :
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वि० [सं० अंबुज-अक्षि, ब० स०, अच्] जिसके नेत्र कमल के समान हों। पुं० विष्णु। |
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अंबु-जात :
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वि० , पुं० [पं० त०]=अंबुज। |
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अंबुजासन :
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पुं० [सं० अंबुज-आसन, ब० स०] ब्रह्मा। |
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अंबु-ताल :
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पुं० [स०त०]=सिवार। |
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अंबुद :
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वि० [सं० अंबु दा (दान) +क] जल देनेवाला। पुं० १. बादल, मेघ। २. मोथा। |
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अंबु-धर :
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वि० [सं० अंबु धृ (धारण करना) +अच्] जल धारण करनेवाला। पुं० बादल। मेघ। |
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अंबु-धि :
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वि० [सं० अंबु√ धा (धारण) +कि] जिसमें जल हो। पुं० १. समुद्र। २. चार की संख्या। ३. जल रखने का पात्र या बरतन। |
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अंबु नाथ :
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पुं० [ष० त०] १. समुद्र। २. वरुण। |
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अंबु निधि :
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पुं० [ष० त०] सागर। समुद्र। |
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अंबु-प :
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वि० [सं० अंबु√पा (पीना या रक्षा) +क] पानी पीनेवाला। पुं० १. समुद्र। २. वरुण। ३. शतभिक्षा नक्षत्र। ४. चक्रमर्दक या चकवँड़ नामक पौधा। |
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अंबु-पति :
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पुं० [ष० त०] १. समुद्र। २. वरुण। |
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अंबु-पत्रा :
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स्त्री० [ब० स०] एक प्रकार का पौधा। नागरमोथा। |
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अंबु-पालक :
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पुं० [स० त०] (स्त्री० अंबुपालिका) पानी भरनेवाला सेवक। पनभरा। |
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अंबु-भव :
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पुं० [ब० स०] कमल। |
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अंबु-भृत् :
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पुं० [सं० अंबु√भृ (धारण पोषण)+क्विप्] १. बादल, मेघ। २. नागरमोथा नामक पौधा। ३. समुद्र। ४. अभ्रक। अबरक। |
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अंबुमती :
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स्त्री० [सं० अंबु+मतुप्-डीप्] एक प्राचीन नदी का नाम। |
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अंबु-राज :
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पुं० [ष० त०] १. समुद्र। २. वरुण। |
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अंबु-राशि :
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[पुं० ष० त०] जल की राशि सागर। |
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अंबु-रुह :
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पुं० [सं० अंबु√रुह् (उत्पन्न होना) +क] कमल। |
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अंबु-वाची :
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पुं० [सं० अंबु√वच् (बोलना) +णिच्+अण्-डीप्] १. आर्द्रा नक्षत्र का पहला चरण जिसमें पृथ्वी रजस्वला मानी जाती है। २. उक्त अवसर पर एक प्रकार का रखा जानेवाला व्रत। |
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अंबु-वासी (सिन्) :
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पुं० [सं० अंबु√वस् (निवास) +णिनि] पाटला नाम का पौधा। |
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अंबु-वाह :
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पुं० [सं० अंबु√वह् (बहना) +अण्] १. बादल। २. नागरमोथा (पौधा)। ३. झील। |
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अंबु-वाही (हिन्) :
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वि० [सं० अंबु वह् (ढोना) +णिनि] (स्त्री० अंबुवाहिनि) पानी लानेवाला। पुं० १. बादल, मेघ। २. नागरमोथा (पौधा)। |
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अंबु-वेतस् :
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पुं० [मध्य० स०] पानी में होने वाला एक प्रकार का बेंत। जलबेंत। |
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अंबु-शायी (यिन्) :
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पुं० [सं० अंबु√शी (सोना) +णिनि] समुद्र शयन करनेवाले विष्णु। |
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अंबु-सर्पिणी :
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स्त्री० [सं० अंबु सृप् (गति) +णिनि, डीप्] जोंक। |
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अंबोधि :
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पुं०=अंबुधि। |
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अंबोह :
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पुं० [फा०] १. जनसमूह। २. भीड़। |
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अंब्रित :
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पुं०=अमृत।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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