शब्द का अर्थ
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अपतंत्र :
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पुं० [सं० ब० स०] =अपतंत्रक। |
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समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
अपतंत्रक :
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पुं० [सं० ब० स०, कप्] प्रायः स्त्रियों को होनेवाला एक वात रोग जिसमें रोगी के हाथ-पैर ऐंठते हैं, मुँह से फेन निकलता है और प्रायः बेहोशी आती है। वातोन्माद। (हिस्टीरिया) |
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समानार्थी शब्द-
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अपत :
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वि० [सं० अ=नहीं+पत्=पत्ता] (पौधा, बेल, वृक्ष आदि) जिसमें पत्ते न हों अथवा जिसके पत्ते झड़ गये हों। पत्र-विहीन। वि० [हिं० अ+पत=प्रतिष्ठा] १. जिसकी प्रतिष्ठा न हो। अप्रतिष्ठित। २. निर्लज्ज। वे-हया। उदा०—तौ मेरी अपत करत कौरव-सुत होत पंडवनि ओते।—सूर। वि० [सं० अपात्र] [स्त्री० अप्रतिष्ठा। बे-इज्जती।] अधम। नीच। उदा०—पावन किये रावन रिपु तुलसिंहु से अपत।—तुलसी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपतई :
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स्त्री० [सं० अपात्र, पा० अपत्त+हिं० ई (प्रत्य०)] १. ‘अपत’ होने की अवस्था या भाव। २. धृष्टता। ३. उत्पात। उपद्रव। ४. झंझट। बखेड़ा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपतानक :
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पुं० [सं० अप√तनु (विस्तार)+ण्वुल्] एक वात रोग जो स्त्रियों को गर्भपात होने तथा पुरुषों को विशेष रुधिर निकलने या भारी चोट लगने से हो जाता है। |
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अपताना :
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पुं० [हिं० अप=अपना+तानना] झंझट। बखेड़ा। जंजाल। अ० [हिं० अपत] १. धृष्टता या ढिठाई करना। २. चंचलता या चपलता दिखाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपति :
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वि० [सं० न० ब०] १. (स्त्री) जिसका पति मर गया हो। विधवा। २. जिसका कोई स्वामी न हो। बिना मालिक का। स्त्री० कुमारी कन्या। वि० [सं० अ०=बुरा+पति=गति] १. पापी। दुराचारी। २. निर्लज्ज। स्त्री० [सं० अ+पत=प्रतिष्ठा, पति=गति] १. दुर्गति। दुर्दशा। २. अपमान। अप्रतिष्ठा। ३. दे० ‘अपतई’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपतिक :
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वि० [सं० न० ब०, कप्] १. (स्त्री) जिसका पति या स्वामी न हो। २. जिसका पति मर चुका हो। विधवा। ३. जिसका विवाह न हुआ हो। कुमारी। |
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अपती :
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स्त्री० [देश०] नाव के सिरे पर लगाई जानेवाली एक छोटी लकड़ी। स्त्री० [हिं० अ+पत=प्रतिष्ठा] १. वह जिसकी कुछ भी प्रतिष्ठा न हो। २. उपद्रवी। शरारती।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
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अपतुष्टि :
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स्त्री० [सं० प्रा० स०] किसी के अपकार, आक्रमण, विरोध आदि करने पर लड़ाई-झगड़े से बचने के लिए उसकी कुछ बातें मान कर और उससे कुछ दबकर उसे तुष्ट या प्रसन्न करने की क्रिया या भाव। (एपीजमेन्ट) |
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अपतोस :
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पुं० दे० ‘अफसोस’। |
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अपत्त :
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स्त्री० [सं० आपत्ति] १. उपद्रव। उत्पात। २. अन्यायपूर्ण आचरण। धींगा-धींगी। |
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अपत्नी :
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वि० स्त्री० [सं० न० त०] १. जो किसी की पत्नी न हो। अविवाहिता। कुमारी। २. विधवा। |
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अपत्नीक :
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वि० [सं० न० ब०, कप्] (पुरुष) जिसकी पत्नी न हो अथवा मर चुकी हो। |
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अपत्य :
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पुं० [सं० √पत् (गिरना)+पत्, न० त०] औलाद। संतान। |
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अपत्य-विक्रयी (यिन्) :
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वि० [ष० त०] अपनी संतान बेचनेवाला। |
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अपत्य-शत्रु :
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वि० [सं० ब० स०] १. जिसका शत्रु उसकी अपत्य या संतान हो। २. जो अपने अंडे या बच्चे स्वयं खा जाय। पुं० [ष० त०] १. केकड़ा। २. साँप। |
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अपत्र :
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वि० [सं० न० ब०] १. (वृक्ष) जिसमें पत्ते न हों। २. (पक्षी) जिसके पंख या पर न हों। |
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अपत्रप :
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वि० [सं० प्रा० ब०] १. निर्लज्ज। २. धृष्ट। ढीठ। |
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अपत्रस्त :
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वि० [सं० अप√त्रस् (उद्वेग)+क्त] जो डर से त्रस्त हो। बहुत भयभीत। |
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अपत्तव्य :
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वि० [सं० प्रा० स०] १. ‘सव्य’ का उलटा। दाहिना। २. उलटा। विपरीत। ३. जिसने पितृ-कर्म करने के लिए जनेऊ अपने दाहिने कंधे पर रखा हो। |
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