शब्द का अर्थ
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अभ्रंकष :
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वि० [सं० अभ्र√कष्(हिंसा)+खच्,मुम्] आकाश को छूनेवाला। गगन-चुंबी। उदाहरण—अभ्रंकष, प्रासाद और ये महल हमारे।—मैथिलीशरण। पुं० १. वह अट्टालिका या भवन जो आकाश को छूता हुआ जान पड़े। (स्काई स्क्रेपर) २. पहाड़। ३. वायु। |
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समानार्थी शब्द-
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अभ्रंलिह :
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वि० [सं० अभ्र√लिह्(स्वाद लेना)+खश्, मुम्] आकाश को छूनेवाला, अर्थात् बहुत ऊँचा। पुं० वायु। |
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अभ्र :
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पुं० [सं० √अभ्र(गति)+अच्,प्रा० अब्भ, गुं० आभ, हिं० अभाल, सिं० अबु० का० अबुर, सिंह० अष, मराठी० आभ] १. मेघ। बादल। २. आकाश। ३. अबरक। ४. सोना। ५. शून्य। (गणित) ६. कपूर। ७. नागरमोथा। |
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अभ्रक :
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पुं० [सं० √अभ्र+क्वन्-अक] १. राहु ग्रह। २. दे० ‘अबरक’। (धातु)। |
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अभ्र-गंगा :
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स्त्री० [ष० त०] आकाश-गंगा। |
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अभ्रनाग :
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पुं० [ष० त०] ऐरावत। |
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अभ्रपटी :
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स्त्री० [ष० त० ङीष्] आकाश। आसमान। |
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अभ्र-पिशाच :
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पुं० [स० त०] राहु। |
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अभ्र-पुष्प :
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पुं० [ष० त०] १. एक प्रकार का बेंत। २. पानी। ३. अनहोनी या असंभव बात। |
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अभ्रभेदी (दिन्) :
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वि० [सं० अभ्र√भिद्(विदारण)+णिनि] इतना ऊँचा कि आकाश तक पहुँचता हो। गगन-चुंबी। |
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अभ्रम :
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वि० [सं० न० ब०] जिसे भ्रम न हो। पुं० [सं० न० त०] भ्रम का अभाव। |
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अभ्र-भांसी :
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स्त्री० [ब० स० ङीष्] जटामासी। |
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अभ्र-मासंग :
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पुं० [ष० त०] ऐरावत। |
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अभ्रमु :
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स्त्री० [सं० ] १. पूर्व के दिग्गजों की पत्नी। २. इंद्र के हाथी ऐरावत की पत्नी। |
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अभ्ररोह :
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पुं० [सं० अभ्र√रूह्(उत्पन्न होना)+अच्] वैदूर्यमणि। |
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अभ्रांत :
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वि० [सं० न० त०] १. (व्यक्ति) जिसे किसी प्रकार की भ्रांति न हो। २. (बात) जिसमें या जिसके संबंध में किसी प्रकार की भ्रांति या भ्रम न हो। |
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अभ्रांति :
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स्त्री० [सं० न० त०] भ्रांति न होने की अवस्था या भाव। भ्रम-हीनता। |
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अभ्रातृव्य :
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वि० [सं० न० ब०] जिसका कोई प्रतिद्वंद्वी या प्रतिस्पर्धी न हो। |
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अभ्रावकाशिक :
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वि० [सं० अभ्रावकाश, कर्म० स० ठन्-इक] जिसका आवरण केवल आकाश हो, अर्थात् दिगंबर। |
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अभ्रावकाशी (शिन्) :
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वि० [सं० अभ्रावकाश+इनि] =अभ्रावकाशिक। |
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अभ्रित :
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वि० [सं० अभ्र+इतच्] अभ्र या बादलों से घिरा हुआ। मेघाच्छन्न। |
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अभ्रिम :
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वि० [सं० अभ्र+घ-इय] बादलों में या बादलों से होनेवाला। अभ्र-संबंधी। पुं० बिजली। |
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अभ्रोत्थ :
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पुं० [सं० अभ्र-उद्√स्था (ठहरना)+क] वज्र। |
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