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अमंगल  : वि० [सं० न० त०] जो मंगलकारक या शुभ न हो। जो कल्याण करनेवाला न हो। पुं० मंगल या कल्याण का अभाव। अहित। खराबी।
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अमंगल्य  : पुं० [सं० न० त०]=अमंगल।
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अमंड  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें माँड न हो। २. जिसका मंडन न हुआ हो। बिना सजाया हुआ। पुं० एरंड का वृक्ष।
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अमंत  : वि०=अमित। उदाहरण—राजन रक्खिय सब्ब इह, बाढ़िय प्रीत अमंत।—चंदबरदाई।
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अमंत्र  : वि० [सं० न० ब०] १. जो वैदिक मंत्रों का जाननेवाला या ज्ञाता न हो। २. वैदिक मंत्रों की उपेक्षा करनेवाला। पुं० १. मंत्र का अभाव। २. ऐसे कर्म जिनमें मंत्र आदि की आवश्यकता नहीं पड़ती।
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अमंत्रक  : वि०=अमंत्र।
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अमंद  : वि० [सं० न० त०] १. जो मंद, धीमा या सुस्त न हो। २. उत्तम। श्रेष्ठ। ३. अच्छा। भला। ४. सुंदर। ५. उद्योगी। प्रयत्नशील। ६. प्रकाशवान्। पुं० पेड़। वृक्ष।
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अम  : पुं० [सं०√अम् (रोग)+घञ्] १. बीमारी का कारण। २. बीमारी। रोग।
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अमका  : वि० =अमुक।
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अमग्न  : पुं० [सं० अमार्ग] अनुचित या बुरा रास्ता। कुमार्ग।
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अमग्गी  : वि० [सं० अमार्गी] अनुचित या बुरे मार्ग पर चलनेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमचूर  : पुं० [हिं० आम+चूर] कच्चे आम के टुकड़ों को सुखाकर तथा उन्हें पीसकर बनाया हुआ चूर्ण जो दाल तरकारी आदि में डाला जाता है।
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अमज्जक  : वि० [सं० न० ब० कप्] जिसमें मज्जा (अर्थात् हड्डी के अंदर का गूदा) न हो।
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अमड़ा  : पुं० [सं० आभ्रात, पा० अंबाड़] १. एक पेड़ जिसके छोटे किन्तु खट्टे फल चटनी और अचार के काम आते हैं। २. उक्त वृक्ष का फल।
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अमत  : वि० [सं० न० त] १. जिसका अनुभव न हो सके या न हुआ हो। अननुभूत। २. अमान्य। ३. अस्वीकृत। ४. अज्ञात। पुं० मत या सहमति न होना। पुं० [√अम्+अतच्] १. रोग। २. मृत्यु। ३. धूलि-कण। ४. काल। समय।
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अमति  : स्त्री० [सं० न० त०] १. मति अर्थात् ज्ञान का अभाव। अज्ञानता। २. सहमत न होना। असंगति। ३. चमक। दीप्ति।
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अमत्त  : वि० [सं० न० त०] १. जो मत्त अथवा नशे में न हो। मद-रहित। २. जिसे मद या घमंड न हो। ३. सावधान। पुं० [सं० अ-मात्रिक] ऐसी कविता या वाक्य रचना जिसमें मात्राओं का प्रयोग न किया जाए। जैसे—अमल-कमल बर बदन सदन जस हरन मद मदन-दहन हर।
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अमद  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसे मद या अभिमान न हो। मद-रहित। २. जो प्रसन्न न हो। दुःखी। ३. विकल। बेचैन। ४. गंभीर। पुं० [अ०] संकल्प। विचार।
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अमन  : वि० [सं० अमनस्] १. जिसे अनुभूति, ज्ञान अथवा वृद्धि न हो। २. जिसका मन किसी काम में न लगे। पुं० [अ०] १. सुख और शांति। पद—अमन-अमान=देश और समाज की सुव्यवस्था जिसमें सब लोग सुख और शांति से रहते हों। २. आराम। चैन। पद—अमन-चैन=वैयक्तिक जीवन में होनेवाला सुख और निश्चिंतता। ३. बचाव। रक्षा।
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अमनस्क  : वि० [सं० न० ब० कप्] १. मन की चंचलता या इच्छा से रहित। उदासीन। २. अनमना। उदास। ३. अन्यमनस्क।
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अमना (नस्)  : वि० [सं० न० ब०] १. बिना मन का। मन-रहित। उदाहरण—अनिवार कामना, नित अबधा अमना बहती।—पंत। २. जिसका अपने मन पर नियंत्रण न हो। ३. अन्यमनस्क। अनमना। ४. लापरवाह। ५. उदास। ६. स्नेह-हीन। ७. ना-समझ। मूर्ख।
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अमनाक्  : वि० [सं० न० त०] जो मनाक् या थोड़ा न हो। अधिक। क्रि० वि० अधिकता से।
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अमनियाँ  : वि० [सं० अ+मल, अथवा कमनीय] १. खाने-पीने की ऐसी चींजे जिनमें कोई छूत न मानी जाती हो। पक्का। (भोजन) २. पवित्र। शुद्ध। स्त्री० भोजन या रसोई बनाने की क्रिया। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमनैक  : पुं० [सं० आम्नायिक] १. नायक या सरदार। २. अधिकारी या पात्र। ३. साहसी। ४. ढीठ। ५. वह जो मन-माने काम करता हो। उदाहरण—दौरि दधि दान काम ऐसी अमनैक तहाँ, आली बनमाली आइ बहियाँ गहत हैं।—पद्याकर। ६. ऐसे आश्तकार जिन्हें किसी कुल विशेष के होने के कारण लगान में कुछ छूट दी जाती थी।
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अमनैकी  : स्त्री० [हिं० अमनैक] १. मनमाना आचरण या व्यवहार। २. स्वेच्छाचार।
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अमम  : वि० [सं० न० ब०] जिसमें ममता न हो, अर्थात् इच्छा, माया, मोह, वासना आदि आसक्तियों से रहित। निर्लिप्त। पुं० जैनों के भावी बारहवें तीर्थकार।
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अमर  : वि० [सं० √मृ(मरना)+अच्, न० त०] १. जो कभी मरे नहीं। न मरनेवाला। २. जिसका कभी अंत, क्षय या नाश न हो। सदा जीवित रहनेवाला। शाश्वत। ३. चिरस्थायी। पुं० १. देवता। २. पारा। ३. सोना। स्वर्ण। ४. उनचास पवनों में से एक। ५. ज्योतिष में, नक्षत्रों का एक गण या वर्ग जिसका विचार विवाह के समय वर और कन्या का राशि-वर्ग मिलाने के लिए होता है। ६. एक प्रकार का देवदारू (वृक्ष)।
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अमर-कंटक  : पुं० [सं० आम्रकूट ?] विध्य पर्वतश्रेणी का एक भाग जहाँ से सोन और नर्मदा नदियाँ निकलती है।
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अमरख  : पुं० [हिं० अमरखी]=अमर्ष।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमरज  : पुं० [सं० अमर√जन् (उत्पन्न होना)+ड] एक प्रकार का खैर। (वृक्ष)।
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अमरण  : वि० [सं० न० ब०] जो मरे नहीं। अमर। पुं० [न० त०] न मरने की अवस्था या भाव। मरण या मृत्यु न होना। अमरता।
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अमर-तटिनी  : स्त्री० [ष० त०] गंगा।
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अमरता  : स्त्री० [सं० अमर+तल्-टाप्] अमर होने की अवस्था या भाव। न मरना या नष्ट न होना।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमरत्व  : पुं० [सं० अमर+त्व] १. अमर होने की अवस्था, भाव या पद अमरता। २. देवत्य।
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अमर-दारु  : पुं० [मध्य० स०] देवदारू का वृक्ष।
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अमर-धाम  : पुं० [ष० त०] देव-लोक। स्वर्ग।
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अमर-नाथ  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं के स्वामी इंद्र। २. काश्मीर में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ।
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अमरपक्षी (क्षिन्) नाथ  : पुं० [सं० मध्य० स०] एक प्रकार की कल्पित चिड़िया जिसके संबंध में यह प्रसिद्ध है कि यह अरब के रेगिस्तान में अपनी चिता आप बनाकर और उसपर बैठकर गाती है, जिससे चिता जल उठती है और यह जल मरती है। फिर उसी राख से इस तरह की और नई चिड़ियाँ पैदा होती है। कुकनुस। (फीनिक्स)
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अमर-पख  : पुं०=पितृ-पक्ष।
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अमर-पति  : पुं० [ष० त०]=इंद्र।
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अमर-पद  : पुं० [ष० त०] १. देवताओं का पद या स्थिति। २. मुक्ति। मोक्ष।
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अमर-पुर  : पु० [ष० त०] १. देवताओं का नगर। अमरावती। २. स्वर्ग।
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अमर-पुरी  : स्त्री० [ष० त०] इंद्रपुरी। अमरावती।
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अमर-पुष्प  : पुं० [ब० स०] १. कल्पवृक्ष। २. केतकी। ३. आम। ४. काँस नामक घास।
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अमर-पुष्पक  : पुं० [ब० स० कप्] १. कल्प-वृक्ष। २. ताल मखाना। ३. काँस। ४. गोखरू।
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अमर-बेल  : स्त्री० [सं० +हिं० ] १. आकाशबेल नाम की लता। २. हठ-योग में सहस्रार का वह रूप जब (कुंडलिनी शक्ति के ब्रह्मय-रंध्र में पहुँच जाने पर) उसमें से अमृत का प्रवाहित होना माना जाता है।
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अमर-रत्न  : पुं० [मध्य० स०] बिल्लौर या स्फटिक जो देवताओं का रत्न माना गया है।
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अमर-राज  : पुं० [ष० त०] इंद्र।
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अमर-लोक  : पुं० [ष० त०] देव-लोक। स्वर्ग।
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अमर-वर  : पुं० [स० त०] देवताओं में श्रेष्ठ, इंद्र।
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अमर-बल्ली  : स्त्री० [कर्म० स०] दे० ‘आकाश-बेल’।
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अमरस  : पुं० [हिं० आम+रस] १. पके आम का निचोड़ा हुआ रस। २. =अमावट।
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अमरसी  : वि० [हिं० आमरस] आम के रस के रंग का सा। हल्का पीला। पुं० उक्त प्रकार का रंग।
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अमरा  : स्त्री० [सं० अमर+टाप्] १. दूब। २. गुर्च। गिलोय। ३. सेहुँड़। थूहर। ४. नील का पेड़। ५. चमड़े की झिल्ली जिसमें गर्भ का बच्चा लिपटा रहता है। जरायु। ६. नाभि का नाल जो नवजात बच्चे को लगा रहता है। ७. इंद्रायण। ८. बरगद की एक छोटी जंगल जाति। बरियारा। ९. घीक्वार। १. इंद्रपुरी। पुं० दे० ‘अमड़ा’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमराई  : स्त्री० [सं० आम्ररजि] वह स्थान जहाँ आम के बहुत से वृक्ष हों। आमों का बगीचा या बारी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमराउ  : पुं० [सं० आम्रराजि] आम का बगीचा। अमराई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमराचार्य  : पुं० [सं० अमर-आचार्य, ष० त०] देवताओं के गुरु, बृहस्पति।
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अमराद्रि  : पुं० [सं० अमर-अद्रि, ष० त०] देवताओं का पर्वत, समेरु।
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अमराधिप  : पुं० [सं० अमर-अधिप, ष० त०] देवताओं का स्वामी, इंद्र।
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अमरापगा  : स्त्री० [सं० अमर-आपगा, ष० त०] देवतताओं की नदी, स्वर्गगा।
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अमरारि  : पुं० [सं० अमर-अरि, ष० त०] देवताओं का शत्रु, असुर या राक्षस।
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अमरालय  : पुं० [सं० अमर-आलय, ष० त०] १. इंद्र-लोक। २. स्वर्ग।
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अमरराव  : पुं० दे० ‘अमराई।
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अमरावती  : स्त्री० [सं० अमर+मतुप्,वकार,दीर्घ] देवताओं की पुरी। इंद्रपुरी।
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अमरिय  : पुं० =अंबर।
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अमरी  : स्त्री० [सं० अमर+ङीष्] १. देव की पत्नी। २. प्रियामाल नामक वृक्ष। स्त्री० [स्त्री० अमर] हठ योगियों की एक विशिष्ट क्रिया। उदाहरण—बजरी करंतां अमरी राषै।—गोरखनाथ।
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अमरीकन  : वि०, पुं०=अमेरिकन।
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अमरीका  : पुं० =अमेरिका। (देश)।
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अमरीकी  : वि० [अं० अमेरिकन] १. अमेरिका में होने या उससे संबंध रखनेवाला। २. अमेरिका का निवासी। स्त्री० अमेरिका की भाषा।
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अमरू  : पुं० [सं० अंबर] एक प्रकार का बढ़िया रेशमी कपड़ा।
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अमरूत  : पुं० [सं० अमृत (फल)] १. एक प्रसिद्ध पेड़ जिसके फल खाये जाते है। २. इस पेड़ का फल, जो आकार में छोटा, गोल तथा पीले रंग का होता है।
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अमरूद  : पुं० =अमरूत।
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अमरेश  : पुं० [सं० अमर-ईश, ष० त०] देवताओं का राजा, इंद्र।
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अमरेश्वर  : पुं० [सं० अमर-ईश्वर, ष० त०] इंद्र।
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अमरैया  : स्त्री० =अमराई।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमरौली  : स्त्री० [सं० अमर] हठ-योगियों की अमरी नाम की क्रिया।
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अमर्त्य  : वि० [सं० न० त०] १. न मरने वाला। अमर। २. जो मर्त्यलोक का न हो अर्थात् दिव्य या स्वर्गीय। पुं० देवता।
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अमर्याद  : वि० [सं० न० ब०] १. मर्यादा से रहित। जिसकी कोई सीमा न हो। २. नियम या व्यवस्था से बाहर। ३. अप्रतिष्ठित। ४. (कार्य) जिसमें मर्यादा का ध्यान न रखा गया हो। ५. व्यक्ति जो मर्यादा का उचित ध्यान न रखता हो। (इम्माडरेट, उक्त दोनों अर्थों में)
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अमर्यादा  : स्त्री० [न० त०] १. मर्यादा या सीमा का अभाव। २. मर्यादा या प्रतिष्ठा का अभाव। अप्रतिष्ठा। बेइज्जती।
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अमर्ष  : पुं० [सं० √मृष्(सहना)+घञ्, न० त०] [वि० अमर्षित, अमर्षी] १. किसी को दबा न सकने के कारण मन में होने वाला रोष। (रिजेन्टमेंट) २. क्रोध। गुस्सा। ३. असहिष्णुता। ४. साहित्य में, वह क्रोध जो किसी अभिमानी का अभिमान देखकर उत्पन्न होता तथा कुद्ध व्यक्ति का अभिमान नष्ट करने में प्रवृत्त करता है। (इसकी गिनती संचारी भावों से होती है)
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अमर्षण  : पुं० [सं० √मृष्+ल्युट्-अन, न० त०] १. क्रोध। गुस्सा। २. असहिष्णुता। ३. असहनशीलता।
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अमर्षी (षिन्)  : वि० [सं० √मृष्+णिनि, न० त०] [स्त्री० अमर्षिणी] १. मन में अमर्ष रखनेवाला। क्रोधी। २. जो सहनशील न हो। असहनशील।
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अमल  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें मल न हो। मल-रहित। निर्मल। २. पवित्र। शुद्ध। ३. साफ। स्वच्छ। ४. निष्पाप। पुं० [न० त०] १. मल का अभाव। २. स्वच्छता। सफाई। ३. [न० ब०] अबरक। ४. पर-ब्रह्म।
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अमल  : पुं० [अ०] १. कार्य या क्रिया के रूप में आना या होना। प्रयोग। व्यवहार। मुहावरा—अमल में आना=किसी आज्ञा, आदेश, निश्चय आदि का व्यवहार में आना। २. कार्य। ३. आचरण। ४. संधान। ५. अधिकार। ६. शासन। ७. सासन-काल। ८. नशा लाने वाली वस्तु। ९. प्रभाव।
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अमल-कोची  : स्त्री० [देश०] कंजे की जाति का एक जंगली वृक्ष। कुंती।
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अमलता  : स्त्री० [सं० अमल+तल-टाप्] १. अमल अर्थात् निर्मल, पवित्र या शुद्ध होने की अवस्था या भाव। २. निर्दोषता।
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अमलतास  : पुं० [सं० अम्ल] [वि० अमलतासी] १. एक प्रकार का वृक्ष जिसमें लंबोतरी बड़ी फलियों का गूदा दवा के काम आता है। घनबहेड़ा। किरवरा। २. इस पौधे की फली या फूल।
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अमलतासी  : पुं० [हिं० अमलतास] एक प्रकार का हल्का पीला रंग जो अमलतास के रंग के जैसा होता है। (किंग्स येलों) वि० उक्त प्रकार के रंग का।
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अमल-दखल  : पुं० [अ०] संपत्ति पर होनेवाला अधिकार, भोग और शासन।
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अमलदारी  : स्त्री० [अ० अमल+फा० दारी] १. शासन। हुकूमत। २. शासन-काल।
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अमल-पट्टा  : पुं० [अ० अमल+हिं० पट्टा] वह अधिकार-पत्र जो किसी अभिकर्ता या कारिंदे का किसी का कार्य विशेषतः भूमि की व्यवस्था के संबंध में दिया जाता है।
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अमल-पानी  : पुं० [अ०+हिं० ] नशे के लिए कोई चीज घोलकर पीना। जैसे—अफीम भाँग आदि का सेवन।
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अमलबेत  : पुं० [सं० अम्लवेतस्] एक पेड़ जिसके फल की खटाई बहुत तीक्ष्ण होती है।
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अमल-मणि  : पुं० [सं० कर्म० स०] बिल्लौर। स्फटिक।
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अमलाँ  : स्त्री० [अ० अमल-नशा] १. नशा। २. अफीम, भाँग आदि नशीले पदार्थ। उदाहरण—अमलाँ खोवा बाजियाँ मचे भंडा मनुवार।—बाँकीदास।
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अमला  : स्त्री० [सं० अमल+टाप्] १. लक्ष्मी। २. शीतला। ३. भू० आँवला। ४. दे० ‘आँवला’। पुं० [अ०] कचहरी या दफ्तर में काम करनेवाला व्यक्ति या चपरासी। पद—अमला-फैला=कचहरी के कर्मचारी। (उपेक्षा-सूचक) वि० [सं० अमल] [स्त्री० अमली] १. जिसमें मल या दोष न हो। मल-रहित या निर्दोष। २. जिसमें कोई बनावट या छल-कपट न हो। सीधा-सादा। उदाहरण—अमली-समली आरती।—नरपति नाल्ह।
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अमलातक  : पुं० [सं० अमल√अत् गति)+अच्+कन्] अमलबेत।
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अमलारा  : वि० [अ० अमल] १. अमल या नशा करने वाला। २. नसे में मस्त या चूर।
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अमलिन  : वि० [सं० न० त०] जो मलिन न हो। निर्मल। स्वच्छ।
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अमली  : वि० [अ०] १. अमल में आने या लाया जानेवाला। व्यावहारिक। २. अमल करनेवाला। व्यवहार में लानेवाला। ३. अमल या नशा करनेवाला। नशेबाज। स्त्री० =अमला। स्त्री०=इमली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमलूक  : पुं० [सं० अम्ल] १. उत्तर-पश्चिमी हिमालय में होनेवाला एक पेड़। २. इस पेड़ के काले छोटे फल।
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अमलोनी  : स्त्री० [सं० अम्ललोणी] एक प्रकार की घास जिसका साग खाया जाता है। नोनियाँ घास। नोनी।
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अमल्लक  : वि० [अ० मुतलक] १. पूरा-पूरा। समूचा। २. ज्यों का त्यों।
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अमस  : वि० [सं०√अम् (गति, रोग आदि)+असच्] १. जिसे कुछ भी ज्ञान न हो। अज्ञानी। २. मूर्ख। पुं० १. एक प्रकार का रोग। २. समय।
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अमसूल  : पुं० [देश०] कोंकण, कनारा और कुर्ग के जंगलों में होनेवाला एक वृक्ष।
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अमहर  : स्त्री० [हिं० आम] कच्चे आम की कटी हुई सुखी हुई फाँकें।
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अमहल  : पुं० [सं० अ-नहीं+अ० महल] १. जिसका कोई घर या रहने का स्थान न हो। २. इधर-उधर घूमता रहनेवाला साधु। ३.वह जो सब जगह व्याप्त हों।
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अमहा  : पुं० [?] एक प्रकार का बैल जो खेतों के लिए अनुपयुक्त या निकम्मा माना जाता है।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमाँ  : अव्य० [हिं० ए+अ० मियाँ] एमियाँ। (संबोधन, मुसलमान)
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अमांस  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसके शरीर में मांस की मात्रा बहुत कम हो। दुबला-पतला। २. जिसमें मांस बिलकुल न हो। मांस-रहित। पुं० [न० त०] वह जो मांस न हो।
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अमा  : स्त्री० [सं० √मा (मान)+का, न० त०] १. अमावस्या। २. चंद्रमा की सोलहवीं कला। ३. घर। मकान। ४. मर्त्य-लोक। स्त्री० [?] चौपायों की आँख में होनेवाली बतौरी।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमाघौत  : पुं० [?] एक प्रकार का धान।
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अमातना  : पुं० [सं० आमंत्रण] १. आमंत्रित करना। बुलाना। २. निमंत्रण या न्योता देना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमातृक  : वि० [सं० न० ब० कप्] जिसकी माँ न हो। बिना माँ का।
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अमात्य  : पुं० [सं० अमा+त्यक्] १. राजा का सहचर। २. हिन्दू राज्य तंत्र में राजा को परामर्श देनेवाला मंत्री।
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अमात्र  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसकी कोई मात्रा न हो। २. सीमा-रहित। निस्सीम।
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अमान  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका मान निश्चित या नियत न हो। २. जिसका मान न हुआ हो। अप्रतिष्ठित। ३. जिसे मान न हो। पुं० [न० त०] मान का अभाव। वि० [हिं० अ+मानना] न माननेवाला। पुं० [अ०] १. बचाव। रक्षा। मुहावरा—अमान माँगना=जीवन आदि की रक्षा के लिए दीनतापूर्वक प्रार्थना करना। २. शरण। पुं०=ईमान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमानत  : स्त्री० [अ०] १. कुछ समय या निश्चित अवधि के लिए अपनी वस्तु किसी दूसरे के पास रखना। २. उक्त प्रकार से रखी हुई चीज। उपनिधि। ३. अमीन का कार्य या पद।
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अमानत-खाता  : पुं० [अ०+हिं० ] पंजी, बही आदि में वह खाता या विभाग जिसमें अमानत की रकमें जमा की जाती हों।
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अमानत-खाना  : पुं० [अ०+फा०] वह स्थान जहाँ चीजें अमानत में रखी जाएँ।
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अमानतदार  : पुं० [अ०+फा०] जिसके पास कोई चीज धरोहर रखी जाती हो या रखी जाए।
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अमानत-नामा  : पुं० [अ० अमानत+फा० नामा] किसी के पास कुछ अमानत रखने के समय उसेक प्रमाण स्वरूप लिखा जानेवाला पत्र।
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अमाना  : अ० [सं० आ-पूरा पूरा+मान-माप] १. किसी चीज के अंदर पूरा-पूरा समाना। अँटना। २. अभिमान से युक्त होना। इतराना। फूलना। स० किसी चीज के अंदर पूरी तरह से भरना। अँटाना। पुं० [सं० अयन ?] अन्न रकने की कोठरी या द्वार। बखार का मुँह।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमानित  : भू० कृ० [सं०√मन् (मानना)+णिच्+क्त, न० त०] १. जिसका मान या सम्मान न हुआ हो। २. माना न गया हुआ।
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अमानिता  : स्त्री० [सं०√मन्+णिनि, न० त० अमानित्+तल्-टाप्] मान या अभिमान का अभाव, अर्थात् नम्रता। स्त्री०=अमान्यता।
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अमानिया  : पुं० [देश०] एक प्रकार का पटसन।
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अमानी (निन्)  : वि० [सं०√मन् (जानना)+णिनि, न० त०] १. मान या अभिमान न करनेवाला। २. न माननेवाला। स्त्री० [सं० आत्मीय] १. भूमि, जिसका प्रबंध ठेके पर न देकर स्वयं किया जाए। २. भूमि, जो शासन के अधिकार में चली गयी हो। स्त्री० [हिं० अ+मान] १. मनमानी कारवाई। २. देन, लगान आदि में होनेवाली ऐसी छूट जो केवल अंदाज से या कूत के आधार पर की जाए। ३. मजदूरों के काम करने का वह ढंग जिसमें केवल दैनिक मजदूरी मिलती है, काम का मान कोई निश्चित नहीं होता।
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अमानुष  : पुं० [सं० न० त०] वह जो मनुष्य न हो, बल्कि मनुष्य से भिन्न हो। जैसे—अलौकिक या देव-पुरुष वि०=अमानुषी।
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अमानुषिक  : वि०=अ-मानुषी।
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अमानुषी  : वि० [सं० अमानुषीय] १. ऐसा निंदित या पाशविक आचरण या व्यवहार जो सभ्य मानव के स्वभाव के प्रतिकूल या विपरीत हो। जैसे—अमानुषी शासन। २. मनुष्य के अधिकार या शक्ति से बाहर का। ३. मनुष्य-रहित। मनुष्यों से शून्य। उदाहरण—अमानुषी भूमि अवानरी करौ।—केशव।
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अमान्य  : वि० [सं० न० त०] १. (बात) जो मानी जाने के योग्य न हो। जो माना न जा सके। २. जो मान अथवा आदर के योग्य न हो।
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अमाप  : वि० [सं० न० त०] १. जो मापा न जा सके या जिसका माप न हो सके। २. जिसके परिणाम का अंदाजा न हो सके। अपरिमित। ३. असीम। बेहद। ४. बहुत अधिक।
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अमापनीय  : वि० [सं० न० त०] जो मापा न जा सकता हो। (इममेजरेबुल)
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अमापित  : वि० [सं० न० त०] जो मापा न गया हो। (अनमेजर्ड)
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अमाप्य  : वि० [सं० न० त०]=अमापनीय।
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अमामसी  : स्त्री० [सं० ब० स० ङीष्] अमावस्या।
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अमामा  : पुं० [अ० अम्मामः] एक विशिष्ट प्रकार की बड़ी और भारी पगड़ी।
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अमाय  : वि०=अमाया।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमाया  : वि० [सं० अमाय] १. माया से रहित। २. छल-कपट, स्वार्थ आदि से रहित। ३.सांसारिक प्रेम, मोह आदि से रहित। निर्लिप्त। स्त्री० [सं० ] माया का अभाव।
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अमायिक  : वि० [सं० न० त०] १. जो माया (छल-कपट,धोखे) आदि से रहित हो। २. जिसमें माया (अनुराग, प्रेम, मोह) आदि न हो। ३. स्वार्थ आदि भावों से रहित।
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अमायी (यिन्)  : वि० [सं० न० त०]=अमायिक।
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अमार  : पुं० [फा० अंबार] अन्न रखने का खत्ता। बखार। पुं०=अमड़ा। (यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमारग  : पुं०=अमार्ग।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमारी  : स्त्री० [सं० अमात] १. आमड़ा नामक वृक्ष। २. आमड़े का फल। स्त्री० =अंवारी (हाथी पर की हौदी)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमार्ग  : पुं० [सं० न० त०] १. अनुचित, निंदनीय या बुरा मार्ग। कु-मार्ग। २. निंदनीय आचरण। बुरा चाल-चलन।
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अमार्जित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसका मार्जन अर्थात् सुधार या संस्कार न हुआ हो। गंदा, भद्दा या अनगढ़। २. (व्यक्ति) जिसने मार्जन न किया हो।
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अमार्ज्य  : वि० [सं० √मृज्(शुद्धि)+ण्यत्, न० त०] १. जिसका मार्जन न हो सके। २. जिसका मार्जन करना उचित न हो।
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अमाल  : पुं० [अ० अमल] अमल रखनेवाला व्यक्ति। हाकिम। शासक। पुं० दे० ‘आमाल’।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमालनामा  : पुं०=आमालनामा।
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अमावट  : स्त्री० [सं० आम, हिं० आम्र+सं० आवर्त, प्रा० आवह] पके आम को निचोड़कर निकाले हुए रस की जमाई हुई परत या तह। स्त्री० [?] पहिना जाति की एक प्रकार की मछली।
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अमावना  : अ० स०=अमाना।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमावस  : स्त्री० [देश०] अमावस्या।
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अमावस्या  : स्त्री० [सं० अमा√वस्(बसना)+ण्यत्नि० ह्रस्व, प्रा० आओस, गुं० अमास, सिं० उमासु, मरा० अवशी, अवस, हिं० अमावस] १. चौद्र मास के कृष्ण पक्ष का अंतिम दिन जिसमें रात को चंद्रमा की एक भी कला नहीं दिखाई देती। २. हठ योग में ध्यान की वह अवस्था जिसमें ईड़ा (चंद्रमा) और पिंगला (सूर्य) दोनों नाड़ियों का लय हो जाता है।
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अमावास्य  : वि० [सं० अमावास्या+अण्] जो अमावस्या के दिन (या रात को) पैदा हुआ या बना हो।
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अमाह  : पुं० [सं० अमांस] एक प्रकार का नेत्र-रोग। नाखूना।
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अमाही  : वि० [हिं० अमार्ह] १. अमाह-रोग-संबंधी। २. जिसे अमाह (रोग) हुआ हो।
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अमिख  : पुं० दे० ‘आमिष’।
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अमिट  : वि० [सं० अ+हिं० मिटना] १. जो मिटने या नष्ट होनेवाला न हो। स्थायी। २. निश्चित रूप से घटित होने वाला। अटल। अवश्यंभावी। जैसे—अमिट भाग्य-विधान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमित  : वि० [सं० न० त०] [स्त्री० अमिता] १. जिसका मित या परिणाम न हो। असीम। बेहद। २. बहुत अधिक। ३. जो किसी निश्चित सीमाओं में न रखा गया हो। (इनआरडिनेट) पुं० साहित्य में, एक अर्थालंकार जिसमें यह कहा जाता है कि साधन से ही साधक की सिद्धि का फल भोग लिया। जैसे—दूती संदेश लेकर नायक के पास गई और वहाँ वही उसका सुख भोग आई।
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अमिताई  : स्त्री० [हिं० आमित] अमित होने की अवस्था या भाव। अमितता। वि० =अमित। उदाहरण—इमि रज्जे रणरंग, सूर नूर अंग अमिताई।—चंदवरदाई।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिताभ  : वि० [सं० अमित-आभा, ब० स०] जिसमे अत्यधिक आभा हो। पुं० १. आठवें मन्वंतर के कुठ देवताओं के नाम। २. गौतम बुद्ध का वह संभोग-कार्य जिसे वे दूसरों के कल्याण के लिए बोधिसत्त्व के रूप में तब तक धारण करते हैं, जब तक उनका निर्वाण नहीं होता।
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अमिताशन  : वि० [सं० अमित-अशन, ब० स०] सब प्रकार की वस्तुओं को खानेवाला। सर्वभक्षी। पुं० अग्नि।
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अमिति  : स्त्री० [सं० न० त०] अमित होने की अवस्था या भाव। असीमता।
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अमितौजा (जस्)  : वि० [सं० अमित-ओजस्, ब० स०] १. असीम शक्तिवाला। २. सर्वशक्तिमान।
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अमित्र  : वि० [सं० न० त०] १. जो मित्र न हो। २. बैरी। शत्रु। वि० [न० ब०] जिसका कोई मित्र न हो। मित्र-हीन। पुं० मित्र न होने का भाव।
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अमित्रखाद  : पुं० [सं० अमित्र√खाद् (खाना)+अण्] इंद्र।
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अमित्रघाती (तिन्)  : वि० [सं० अमित्र√हन्(हिंसा)+णिनि] वैरी या शत्रु का नाश करनेवाला।
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अमित्राक्षर  : पुं० [सं० अमित्र-अक्षर, ब० स०] ऐसा छंद जिसमें मात्राओं की गणना पर विचार न होता हो।
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अमित्री  : वि० [सं० अमित्र्य] १. जो मित्रों जैसा न हो। जैसे—अमित्री व्यवहार। २. शत्रुतापूर्ण। ३. विरोधी।
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अमिय  : पुं० [सं० अमृत, प्रा० अमिअ] अमृत। उदाहरण—रहिमन मोहि न सुहाय, अमिय पियावत मान बिनु।—रहीम।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिय-मूरि  : स्त्री० [सं० अमृत-मूरि] अमृत-बूटी। संजीवनी। जड़ी।
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अमियेन  : अव्य० [हिं० अमिय] अमृत के लिए। उदाहरण—रब्ब रिय रस मंद, क्यू पुज्जति साध अमियेन।—चंदवरदाई।
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अमिरती  : स्त्री०=इमरती। (मिठाई)।
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अमिल  : वि० [सं० अ-नहीं+हिं० मिलना] [भाव० अमिलता, अमिलताई] १. न मिलने अर्थात् न प्राप्त होनेवाला। २. (व्यक्ति) जो दूसरों के साथ मिलता-जुलता न हो। ३. (वस्तु) जो दूसरे के साथ मेल न खाये या न मिले। ४. ऊँचा-नीचा। ऊबड़-खाबड़।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिलता  : स्त्री० [हिं० अमिल+ता(प्रत्यय)] अमिल होने का भाव। बिलकुल अलग या बे-मेल होने की अवस्था या भाव। स्त्री० दे० ‘अम्लता’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिलताई  : स्त्री०=अमिलता।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिलतास  : पुं०=अमलतास।
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अमिल-पट्टी  : स्त्री० [हिं० अमिल+पट्टी-जोड़] सिलाई में, एक प्रकार की चौड़ी तुरपन।
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अमिलित  : वि० [सं० न० त०] जो मिला हुआ न हो, अर्थात् अलग या पृथक।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिलिया  : पुं० [हिं० इमली] इमली के रंग का एक प्रकार का पटसन।
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अमिली  : स्त्री० [सं० अ=नहीं+मिलना] किसी के साथ आपसदारी या मेल-मिलाप न होने की अवस्था या भाव। उदाहरण—जहँ अमिली पाकै हिय माँहाँ। तहँ न भाव नौरंग कै छाहाँ।—जायसी। स्त्री०=इमली।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमिश्र  : वि० [सं० न० त०] १. जो किसी के साथ मिला न हो। २. जिसमें कुछ मिलावट न हो। खालिस। शुद्ध।
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अमिश्रण  : पुं० [सं० न० त०] मिश्रित न होने का भाव।
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अमिश्रराशि  : स्त्री० [सं० मिश्र राशि, कर्म० स० न-मिश्रराशि, न० त०] इकाई (अर्थात् १ से ९ तक) से सूचित होने वाली राशि, अर्थात् १ से ९ तक की प्रत्येक संख्या।
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अमिश्रित  : वि० [सं० न० त०] १. जो मिला या मिलाया न गया हो। २. जिसमें किसी दूसरी चीज का पुट या मेल न हो।
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अमिष  : पुं० [सं० न० त०] १. छल अथवा बहाने का अभाव। वि० [सं० न० ब०] जिसमें छल-कपट या बहाना न हो। पुं०=आमिष।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है)
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अमी  : वि० [सं०√अम् (रोग)+इनि] बीमार। रूग्ण। पुं० =अमिय (अमृत)।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमीकर  : पुं० [सं० अमृतकर] चंद्रमा।
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अमी-कला  : पुं० चंद्रमा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमीत  : वि० [सं० अमित्र, प्रा० अमित्त] जो मीत अर्थात् मित्र न हो, फलतः बैरी या शत्रु।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमीन  : पुं० [अ०] [भाव० अमीनी] माल-विभाग का वह कर्मचारी जो जमीन की नाप-जोख, बँटवारे आदि का प्रबंध करता है।
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अमी-निधि  : पुं० [हिं० अमी+सं० निधि] १. अमृत का समुद्र। २. चंद्रमा।
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अमीमांसा  : स्त्री० [सं० न० त०] १. मीमांसा का अभाव। २. दूषित विवेचन।
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अमीर  : पुं० [अ०] [भाव० अमीरी] १. धनवान। संपन्न। २. उदार। जैसे—दिल का अमीर। ३. नेता। सरदार। ४. अफगानिस्तान के राजाओं की उपाधि।
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अमीरजादा  : पुं० [अ०+फा०] [स्त्री० अमीरजादी] १. राजकुमार। शाहजादा। २. बहुत बड़े अमीर या धनवान का पुत्र।
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अमीराना  : वि० [अ० अमीर से फा०] अमीरों का सा। अमीरों जैसा।
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अमीरी  : स्त्री० [अ०] १. अमीर या धनी होने की अवस्था या भाव। दौलतमंदी। संपन्नता। २. उदारता। वि० १. अमीरों से संबंध रखनेवाला। २. अमीरों की तरह का। जैसे—अमीरी ठाठ।
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अमीव  : पुं० [सं०√अम्+वन, नि० ई] १. पाप। २. कष्ट। दुःख। ३. बीमारी। रोग।
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अमुक  : वि० [सं० अदस्+अकच्, उत्व, मत्व] [भाव० अमुकता] किसी ऐसे अज्ञात, अभिदिष्ट अथवा कल्पित व्यक्ति या बात के लिए प्रयोग में आने वाला शब्द, जिसका नाम न लिया गया हो या न लिया जाने को हो। कोई अनिश्चित (वस्तु या व्यक्ति)। वि० [हिं० अ+मुकना] न मुकने या न समाप्त होनेवाला।
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अमुकता  : वि० [हिं० अ+मुकना-समाप्त होना] जो जल्दी न मुके, अर्थात् बहुत अधिक। स्त्री० [सं० अमुक+तल्-टाप्] अमुक होने की अवस्था या भाव।
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अमुक्त  : वि० [सं० न० त०] १. जो मुक्त न हो। २. बंधन में पड़ा हुआ। ३. (ग्रह) जिसका ग्रहण से मोक्ष न हुआ हो। ४. (शस्त्र) जो हाथ में पकड़ कर ही चलाया जाय, फेंका या दूर से मारा न जाए। (जैसे—तलवार कटार आदि)
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अमुख  : वि० [सं० न० ब०] जिसे मुख न हो। बिना मुँह का।
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अमुख्य  : वि० [सं० न० त०] जो मुख्य या प्रधान न हो।
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अमुग्ध  : वि० [सं० न० त०] १. जो मुग्ध अथवा मोहित न हो। चतुर। होशियार। ३. जितेंद्रिय।
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अमुत्र  : पुं० [सं० अदस्+त्रल्, उत्व, मत्व] १. जन्मांतर। २. पर-लोक।
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अमुरूख  : वि० -मूर्ख। उदाहरण—सो अमुरूख बाउर औ अंधा।—जायसी।
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अमूक  : वि० [सं० न० त०] १. जो मूक अथवा गूँगा न हो। २. बहुत बोलनेवाला। बाचाल। ३. चतुर। होशियार।
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अमूढ़  : वि० [सं० न० त०] १. जो मूढ़ या मूर्ख न हो, अर्थात् चतुर व विद्वान।
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अमूमन्  : अव्य० [अ० उमूमन्] प्रायः। साधारणतः।
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अमूर्त्त  : वि० [सं० न० त०] १. जिसका मूर्त्त या साकार रूप न हो। (एब्सट्रैक्ट) २. अप्रत्यक्ष। पुं० १. परमेश्वर। २. आत्मा। ३. जीव। ४. काल। समय। ५. दिशा। ६. वायु। ७. आकाश।
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अमूर्तिमान् (मत्)  : वि० [सं० न० त०] १. जो मूर्तिमान् न हो। आकार-रहित। निराकार। २. अगोचर। अप्रत्यक्ष।
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अमूल  : वि० [सं० न० ब०]=अमूलक। पुं० सांख्य के अनुसार प्रकृति।
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अमूलक  : वि० [सं० न० ब० कप्] १. जिसका कोई मूल या जड़ न हो। निर्मूल। २. जिसका कोई आधार न हो। निराधार। ३. झूठ। मिथ्या।
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अमूला  : स्त्री० [सं० न० ब० टाप्] अग्निशिखा नाम का पौधा।
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अमूल्य  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका मूल्य आँका या लगाया न जा सके। अनमोल। २. बहुत अधिक मूल्य का। बहुमूल्य। ३. जिसके लिए कोई मूल्यन चुकाना पड़े। मुफ्त का।
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अमृत  : वि० [सं० न० त०] १. जो मृत या मरा हुआ न हो, अर्थात् जीवित। २. [न० ब०] कभी न मरनेवाला। सदा जीवित रहनेवाला। अमर। ३. अविनाशी। ४. परम प्रिय और सुन्दर। पुं० १. एक प्रसिद्ध कल्पित पदार्थ जिसके संबंध में यह कहा जाता है कि इसे खाने (या पीने) पर प्राणी सदा के लिए अमर हो जाता है। पीयूष। सुधा। (नेक्टर) विशेष—हमारे यहाँ पुराणों के अनुसार यह समुद्र-मंथन के समय उसमें से निकला था। २. परम स्वादिष्ट अथवा बहुत अधिक गुणकारी पदार्थ। ३. स्वर्ग। ४. सोम का रस। ५. जल। पानी। ६. दूध। ७. घी। ८. अनाज। अन्न। ९. यज्ञ की बची हुई सामग्री। १. मुक्ति। मोक्ष। ११. औषध। दवा। १२. जहर। विष। १३. पारद। पारा। १४. धन-संपत्ति। १५. सोना। स्वर्ण। १६. रहस्य संप्रदाय में, (क) ईश्वर या परमात्मा, (ख) ईश्वर के प्रति होने वाला अनुराग या प्रेम, (ग) गुरु का सदुपदेश, और (घ) तालु-मूल में स्थित चंद्रमा से निकलनेवाला रस जो योगी जीभ उलटकर पीता है। १७. देवता। १८. शिव। १९. विष्णु। २० धन्वंतरि।
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अमृत-कर  : पुं० [ब० स०] अमृत के समान किरणोंवाला अर्थात् चंद्रमा।
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अमृत-कुंड  : पुं० [ष० त०] दे० ‘मानसरोवर’। (हठ-योग का)।
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अमृत-कुंडली  : स्त्री० [कर्म० स० ?] १. एक प्रकार का छंद। २. स्वर मंडल की तरह का एक बाजा जिसका आकार कुंडली मारे हुए सर्प की तरह होता है।
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अमृत-गति  : स्त्री० [कर्म० स० ?] एक छंद जिसके प्रत्येक छंद में नगण, जगण, नगण और अंत में गुरु होता है।
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अमृत-गर्भ  : पुं० [ब० स०] १. ब्रह्म। ईश्वर। २. जीवात्मा।
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अमृत-जटा  : स्त्री० [ब० स०] जटामासी।
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अमृत-तरंगिणी  : स्त्री० [ष० त०] चंद्रमा की चाँदनी। चंद्रिका।
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अमृतत्व  : पुं० [सं० अमृत+त्व] १. अमृत या अमर होने की अवस्था या भाव। अमरता। न मरना। २. मोक्ष।
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अमृतदान  : पुं० [सं० अमृत-आधान] कटोरदान नामक बरतन।
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अमृत-द्युति  : स्त्री० [ब० स०] चंद्रमा।
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अमृत-द्रव  : पुं० [ष० त०] चंद्रमा की किरण।
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अमृत-धारा  : स्त्री० [ष० त०] एक वर्णवृत्त जिसके प्रथम चरण में २॰, दूसरे में, १२ तीसरे में १६ और चौथे में ८ अक्षर होते है।
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अमृत-धुनि  : स्त्री०=अमृत-ध्वनि।
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अमृत-ध्वनि  : स्त्री० [सं० ब० स०] कहने या पढ़ने के ढंग के विचार से कुडंलिया नामक छंद का एक विशिष्ट प्रकार या रूप। इसमें दोहा तो अपने सामान्य रूप में रहता है, पर रोला के प्रत्येक चरण की आठ-आठ मात्राओं के ऐसे तीन टुकड़े होते हैं जिनमें यमक और द्वित्व वर्णों की प्रचुरता रहती है। अपनी उक्त विशेषताओं और पढ़े जाने के ढंग के कारण ही यह वीर रस के लिए बहुत उपयुक्त होता है।
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अमृतप  : वि० [सं० अमृत√पा(पीना)+क] अमृत पान करनेवाला। पुं० १. देवता। २ विष्णु।
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अमृत-फल  : पुं० [उपमि० स०] १. नाशपाती। २. परवल। पुं० [सं० ] रहस्य संप्रदाय में, परमात्मा या मोक्ष की प्राप्ति।
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अमृत-फला  : स्त्री० [ब० स०] १. आँवला। २. अंगूर। ३. मुनक्का।
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अमृत-बंधु  : पुं० [ष० त०] १. देवता। २. चंद्रमा।
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अमृतदान  : पुं० [मर्त्तबान, बरमा का एक नगर] लाह का रोगन किया हुआ मिट्टी का एक प्रकार का ढक्कनदार बरतन जिसमें अचार, घी आदि रखते है। २. एक प्रकार का केला। मर्त्तबान।
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अमृतमहल  : स्त्री० [सं० ] दक्षिण भारत की एक प्रकार की भैस।
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अमृतमान  : पुं० =अमृतबान।
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अमृत-मूरि  : स्त्री० [सं० अमृतमूल] संजीवनी बूटी।
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अमृत-योग  : पुं० [मध्य०स०] फलित ज्योतिष का एक शुभ योग।
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अमृत-रश्मि  : पुं० [ब० स०] चंद्रमा।
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अमृत-लता  : स्त्री० [कर्म० स०] गुर्च। गिलोय।
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अमृत-लोक  : पुं० [ष० त०] स्वर्ग।
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अमृत-वपु (स्)  : पुं० [ब० स०] १. चंद्रमा। २. विष्णु। ३.शिव।
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अमृत-विंदु  : पुं० [ष० त०] एक उपनिषद् का नाम।
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अमृत-संजीवनी  : स्त्री० [कर्म० स०] =संजीवनी बूटी।
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अमृत-सार  : पुं० [ष० त०] मक्खन।
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अमृतसू  : पुं० [सं० अमृत+सू (प्रसव)+क्विप्] चंद्रमा।
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अमृतांधस्  : पुं० [अमृत-अंधस्, ब० स०] देवता।
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अमृतांशु  : पुं० [अमृत-अंशु, ब० स०] चंद्रमा।
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अमृता  : स्त्री० [सं० अमृत+टाप्] १. गुर्च। २. इंद्रायण। ३. मालकँगनी। ४. अतीस। ५. हड़। ६. लाल निसोत। ७. आँवला। ८. दूध। ९. तुलसी। १. पीपल। ११. मदिरा। १२. फिटकिरी। १३. खरबूजा।
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अमृताक्षर  : वि० [अमृत-अक्षर, कर्म० स०] १. जो कभी मरे नहीं। अमर। २. जिसका कभी नाश न हो। अजर। पुं० अमृत के से गुण वाले अक्षर या शब्द। उदाहरण—फूटी तर अमृताक्षर निर्भर।—निराला।
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अमृताश  : पुं० [सं० अमृत√अश् (भोजन)+अण्] विष्णु।
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अमृताशन  : पुं० [सं० अमृत√अश्+ल्यु-अन] देवता।
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अमृताशी (शिन्)  : पुं० [सं० अमृत√अश्+णिनि] देवता।
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अमृताहरण  : पुं० [सं० अमृत-आ√ह्र(हरण करना)+ल्यु-अन्] गरुड़।
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अमृतेश  : पुं० [अमृत-ईश, ष० त०] देवता।
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अमृतेशय  : पुं० [सं० √शी(सोना)+अच्-शय, अमृतेशय, अलुक्० स०] विष्णु।
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अमृतेश्वर  : पुं० [अमृत-ईश्वर, ष० त०] =अमृतेश।
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अमृत्यु  : वि० =अमर।
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अमृष्ट  : भू० कृ० [सं० न० त०] १. बिना मला हुआ। २. जिसे रगड़ कर साफ न किया गया हो। अस्वच्छ।
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अमे  : सर्व० [सं० अस्मद्] १. हम। २. हमें। (गुज) उदाहरण—सति-सति भाषंत श्री गोरष जोगी अमै तो रहिना रंगै।—गोरखनाथ।
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अमेजना  : स० [फा० आमेजन] किसी में कुछ मिलाना या मिलावट करना। मिश्रण करना।
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अमेठना  : स० =उमेठना।
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अमेत  : वि० [सं० अमित] असंख्य। उदाहरण—अति विचित्र पंडित सुअ कथत जु कथा अमेत।—चंद्रवरदाई।
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अमेदस्क  : वि० [सं० न० ब० कप्] १. जिसमें चरबी न हो, या चरबी की कमी हो। २. दुबला-पतला।
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अमेषा( धस्)  : वि० [सं० न० ब०] जिसमें मेघा शक्ति या बुद्धि न हो, अर्थात् मूर्ख।
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अमेध्य  : वि० [सं० न० त०] १. (जीव या पदार्थ) जिसका यज्ञ में बलि के रूप में उपयोग न हो सकता हो। जैसे—कुत्ता, गधा, उरद या मसूर की दाल आदि। २. (व्यक्ति) जो यज्ञ कराने के योग्य न हो। ३. अपवित्र। अशुद्ध। पुं० एक प्रकार के प्रेत।
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अमेय  : वि० [सं० न० त०] १. जो नापा या मापा न जा सके। २. असीम। निस्मीय। ३. जो जाना या समझा न जा सके।
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अमेयात्मा( त्मन्)  : पुं० [सं० अमेय-आत्मन्, कर्म० स०] विष्णु।
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अमेरिकन  : वि० [अ०] १. जिसकी उत्पत्ति, जन्म या निर्माण अमेरिका में हुआ हो। २. जो अमेरिका से संबंधित हो। पुं० अमेरिका देश का निवासी।
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अमेरिका  : पुं० [अ०] १. पश्चिमी गोलार्द्ध का एकमात्र महादेश जो उत्तरी और पश्चिमी दो बागों में बँटा है। २. उत्तरी अमेरिका के पचास प्रमुख प्रेदेशों का बना हुआ एक संघ राज्य। संयुक्त राज्य।
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अमेरिकी  : वि०=अमेरिकन।
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अमेल  : वि० [हिं० अ+मेल] [स्त्री अमेली] १. जिसका किसी से ठीक मेलन बैठता हो। जो किसी से मेल न खाता हो। २. असंबद्ध। ३. अन-मेल।
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अमेव  : वि० दे० ‘अमेय’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमेह  : पुं० [सं० न० त०] एक रोग जिसके कारण पेशाब नही उतरता या रुक-रुक कर उतरता है।
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अमेंड  : वि० [हिं० अ+मैंड] मर्यादा या बंधन न माननेवाला।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमैठना  : स० दे० ‘अमेठना’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमोक्ष  : वि० [सं० न० ब०] १. जो मुक्त न हुआ हो। २. जिसे मुक्ति न मिली हो। पुं० [सं० न० त०] मोक्ष का अभाव।
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अमोघ  : वि० [सं० न० त०] १. जो निष्फल, निरर्थक या व्यर्थ न हो। २. अपने उद्धेश्य या लक्ष्य तक ठीक पहुँचनेवाला। अचूक। पुं० १. व्यर्थ न जाने का अभाव। २. शिव। ३. विष्णु।
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अमोघ-किरण  : स्त्री० [कर्म० स०] सूर्योदय और सूर्यास्त के समय की किरणें।
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अमोघ-दृष्टि  : वि० [ब० स०] जिसकी दृष्टि कभी विफल न होती है।
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अमोघ-वाक्  : वि० [ब० स०] जिसका कभी वचन व्यर्थ न होता है।
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अमोघ-विक्रम  : पुं० [ब० स०] शिव।
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अमोघा  : स्त्री० [सं० अमोघ+टाप्] १. कश्यप ऋषि की एक स्त्री। २. हरीतकी। हर्रे। ३. वायविडंग। ४. पाढर का पौधा और फूल।
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अमोचन  : पुं० [सं० न० त०] छुटकारा न होने की क्रिया, दशा या भाव। विं० १. [न० ब०] जिसका मोचन न हो सके। २. न छूट सकनेवाला।
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अमोद  : पुं०=आमोद।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमोनिया  : पुं० [अ० एमोलिना] नौसादार।
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अमोरी  : स्त्री० [हिं० आम+औरी(प्रत्यय)] १. आम का कच्चा छोटा फल। अँबिया। २. अमड़ा। आम्रातक।
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अमोल  : वि० [सं० अमूल्य] जिसका मूल्यन लग सके। बहुत अधिकम मूल्य वाला। कीमती।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमोलक  : वि० [हिं० अमोल+क(प्रत्यय)] १. बहुत अधिक मूल्यवाला। बहुमूल्य। २. अमूल्य।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अमोला  : पुं० [हिं० आम] आम का नया निकलता हुआ अंकुर या कल्ला। वि० [हिं० अमोल] अमूल्य। बहुमूल्य। जैसे—है उस परी का सबसे अमोला इजारबंद।—कोई शायर।
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अमोही (हिन्)  : वि० [सं० न० त०] १. जिसे किसी से मोह न हो। विरक्त। २. जिसे किसी से ममता न हो। निर्मोही।
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अमौआ  : पुं० [हिं० आम+औआ (प्रत्यय)] १. एक प्रकार का रंग जो पके हुए आम के रस के समान पीला होता है। अमरसी। २. उक्त रंग का एक प्रकार का कपड़ा। वि० जिसका रंग आम के रस के समान अर्थात् बलका पीला हो।
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अमौन  : पुं० [सं० न० त०] १. मुनि न होने की अवस्था या भाव। २. मुनि के अनुरूप आचरण न करने की दशा। ३. आत्मज्ञान।
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अमौलिक  : वि० [सं० न० त०] १. जो मौलिक न हो। २. जिसकी कोई जड़ न हो। ३. जिसका संबंध मूल से न हो।
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अम्माँ  : स्त्री० [सं० अंबा] माँ। माता। जननी।
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अम्मामा  : पुं० [अ० अम्माम] सिर पर बाँधी जानेवाली एक प्रकार की भारी पगड़ी। (मुसलमानी पहनावा)
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अम्मारी  : स्त्री० दे० ‘अंबारी’।
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अम्रात  : पुं० [सं० अम्ल√अत्(सतत गमन)+अण्] १. आमड़ा नामक पेड़। २. उक्त पेड़ का फल।
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अम्रातक  : पुं० [सं० अम्रात+कन्] अमड़ा। (वृक्ष और फल)
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अम्रियमाण  : वि० [सं० √मृ+यक्+शानच्, न० त०] =अमर।
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अम्ल  : पुं० [सं० -अम्(गति)+क्ल] [वि० अम्लीय] [भाव० अम्लता] १. खाद्य पदार्थों के छः रसों में से एक रस। खटाई। २. कोई ऐसा तत्त्व या रासायनिक द्रव्य जिसमें खटाई वाले तत्त्वों के अतिरिक्त क्षारों का गुण नष्ट करने की भी शक्ति हो। तेजाब। (ऐसिड)। वि० [अम्ल+अच्] खट्टा। तुर्श। इमली आदि के स्वाद का।
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अम्लक  : पुं० [सं० अम्ल+कन्] बड़हर।
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अम्ल-केशर  : पुं० [ब० स०] बिजौरा नीबू।
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अम्लजन  : पुं० दे० ‘आक्सीजन’।
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अम्लता  : स्त्री० [सं० अम्ल+तल्-टाप्] अम्ल का भाव। खट्टापन। खटाई (एसिडिटी)।
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अम्ल-पंचक  : पुं० [ष० त०] (वैद्यक में) जंबीरी नीबू। खट्टा अनार। इमली। नारंगी और अम्लबेत नामक पाँच खट्टे फल।
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अम्ल-पनस  : पुं० [कर्म० स०] बड़हर।
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अम्ल-पित्त  : पुं० [च० त०] पित्त के खराब होने पर किये हुए भोजन के खट्टे हो जाने का रोग। (एसिडिटी)
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अम्ल-फल  : पुं० [ब० स०] इमली।
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अम्ल-मिति  : स्त्री० [ष० त०] वह रासायनिक प्रक्रिया जिसमें यह जाना जाता है कि किसी द्रव्य या पदार्थ में अम्ल का अंश कितना है। (एसिडिमेट्री)
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अम्ल-मेह  : पुं० [कर्म० स०] मूत्र-संबंधी एक रोग।
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अम्ललोणिका  : स्त्री० [सं० अम्ल√ला (आदान)+क,अम्लल√ऊन्(कमहोना)+ण्वुल्-अकटाप्, इत्व] अमलोनी नामक खट्टा साग।
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अम्ल-वृक्ष  : पुं० [ष० त०] इमली का पेड़।
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अम्लसार  : पुं० [ब० स०] १. अमलबेत। २. चुक। ३. काँजी। ४. हिंताल। ५. आमलासार गंधक।
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अम्ल-हरिद्रा  : स्त्री० [कर्म० स०] आँबा हलदी।
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अम्लांकुश  : पुं० [अम्ल-अंकुश, कर्म० स०] एक तरह का खट्टा सांग।
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अम्लाध्युषित  : पुं० [अम्ल-अध्युषित, तृ० त०] अधिक खटाई खाने के फलस्वरूप होने वाला एक नेत्र-रोग।
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अम्लान  : वि० [सं० न० त०] १. जो उदास,मलिन या म्लान न हो। २. खिला हुआ। प्रसन्न। ३. निर्मल। स्वच्छ। पुं० १. बाणपुष्प नामक पौधा। २. कटसरैया। गुल-दुपहरिया।
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अम्लानी (निन्)  : वि० [सं० म्लान+इनि, न० त०] साफ। स्वच्छ।
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अम्लिका  : स्त्री० [सं० अम्ल+कन्-टाप्,इत्व] १. इमली। २. खट्टी डकार।
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अम्लिमा (मन्)  : स्त्री० [सं० अम्ल+इमानिच्] खट्टापन।
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अम्लीकरण  : पुं० [सं० अम्ल+च्वि, ईत्व√कृ (करना)+ल्युट्-अन] [भू० कृ० अम्लीकृत] वह क्रिया जिसमें किसी वस्तु या द्रव्य में अम्लता आवे। (एसिडीफिकेशन)
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अम्लीय  : वि० [सं० ] १. अम्ल-संबंधी। अम्ल का। २. जिसमें अम्लता या खटास हो। (एसिडिक)
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अम्लोटक  : पुं० [अम्ल-उटक, ब० स०] अश्मंतक नामक पौधा।
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अम्लोद्गार  : पुं० [अम्ल-उदगार, ष० त०] खट्टी डकार।
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अम्हाँ  : वि० [सं० अस्माकं] हमारे। मेरे। उदाहरण—अम्हाँ वासना बसी इसी।—प्रिथीराज।
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अम्हीणा  : सर्व० [सं० आत्मानकं, प्रा० अम्हाअं] हमारा।
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अम्हीणो  : सर्व० [सं० अहम्] मेरा। हमारा। उदाहरण—आयौ कहि कहि नाम अम्हीणौ।—प्रिथीराज।
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अम्हौरी  : स्त्री० =पित्ती (शरीर में होनेवाली)।
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