शब्द का अर्थ
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अलिंग :
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वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें कोई लिंग (स्त्री पुरुष का चिन्ह अथवा किसी प्रकार का लक्षण) न हो। २. (शब्द) जिसमें लिंग का सूचक तत्त्व न हो और इसी लिए जो सब लिगों में समान रूप से प्रयुक्त होता हो। जैसे—तुम, वह, हम आदि। पुं० [न० त०] लिंग का अभाव। |
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अलिंजर :
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पुं० [√अल् (भूषण आदि)+इन्, अलि√जृ (जीर्ण होना)+अच्, पृषो० मुम्] पानी रखने का मिट्टी का बरतन। जैसे—घड़ा, झंझर आदि। |
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अलिंद :
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पुं० [सं०√अल्+किन्दच्] १. बाहरी दरवाजे के सामने का चबूतरा या छज्जा। २. किसी उद्देश्य से निमित्त किया हुआ उच्च समतल स्थल। (प्लेटफार्म) ३. एक प्राचीन जनपद। ४. प्राचीन भारत में राजद्वार के भीतरी रास्ते के दोनों ओर के कमरे जिनमें लोगों का स्वागत-सत्कार होता था। ५. शरीर विज्ञान में, हृदय के ऊपर के वे दोनों छिद्र जिनमें फेफड़ों और शिराओं में रक्त आता है। (आँरिकल्) ६. कान की तरह बाहर निकला हुआ कोई अंग। पुं० [सं० अलि] भौंरा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है) |
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अलि :
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पुं० [सं० √अल्+इन] [स्त्री० अलिनी] १. भौंरा। २. कोयल। ३. कौआ। ४. बिच्छू। ५. वृष्चिक राशि। ६. कुत्ता। ७. मदिरा। शराब। स्त्री० [?] आँख की पुतली। स्त्री० दे० ‘अली’। |
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अलिक :
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पुं० [सं०√अल्+इकन्] ललाट। माथा। पुं० दे० ‘अली’। |
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अलिखित :
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वि० [सं० न० त०] १. जो लिखा हुआ न हो। बिना लिखा। २. जो लिखा तो न हो, फिर भी प्रायः लिखे हुए के समान हो। जैसे—अलिखित विधान। |
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अलिगर्द्ध :
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पुं० [सं० अलि√गृध् (चाहना)+अच्] पानी में रहनेवाला एक प्रकार का साँप। |
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अलि-जिह्वा :
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स्त्री० [सं० उपमि० स०] [वि० अलिजिह्रीय] गले के अंदर ऊपरी भाग में लटकनेवाला मांस का टुकड़ा। कौआ। घाँटी। (यूव्यूलर)। |
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अलि-जिह्विका :
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स्त्री० दे० ‘अलिजिह्वा’। |
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अलि-जिह्वीय :
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वि० [सं० अलिजि ह्वा+छ-ईय] अलि-जिह्वा संबंधी (यूव्यूलर) |
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अलिपक :
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पुं० [सं०√लिप्+वुन्-अक, न० त०] १. भौंरा। २. कोयल। ३. कुत्ता। |
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अलि-पत्रिका :
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स्त्री० [सं० ब० स०] १. वृश्चिकपत्र नामक वृक्ष। २. बिछुआ नाम की घास। |
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अलिपर्णी :
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स्त्री०=अलिपत्रिका। |
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अलिप्त :
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वि० [सं० न० त०] १. जो लिप्त न हो। २. अलग। पृथक्। |
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अलि-प्रिय :
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पुं० [सं० ब० स०] लाल कमल। |
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अलिमक :
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पुं० [सं० अलि√मक्क्+अच्, पृषो० कलोप] १. कोयल। २. मेंढक। ३. कमल के तंतु या रेशे। |
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अलिमोदा :
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स्त्री० [सं० अलि√मुद् (हर्ष)+णिच्+अम्-टाप्] गनियारी नाम का पौधा। |
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अलियल :
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पुं० [सं० अलि] भ्रमर। भौंरा। उदाहरण—सौरभ अकबर साह, अलियल आभडियो नहीं।—प्रिथीराज। |
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अलिया :
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स्त्री० [सं० आलय] १. एक प्रकार की तौल। २. वह गढ्ढा जिसमें कोई चीज ढककर रखी जाती है। |
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अलिया-बलिया :
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वि० [हिं० अलाय-बलाय] झगड़ा-बखेड़ा करनेवाला। प्रपंची। उदाहरण—न्यंद्रा कहै में अलिया बलिया, ब्रह्मा विष्णु महादेव छलिया।—गोरखनाथ। स्त्री०=अलाय-बलाय। |
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अलि-वृत्ति :
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स्त्री० [सं० ष० त०] १. भौंरों की तरह जगह-जगह घूमकर रस लेने की वृत्ति। २. कई घरों से पका हुआ भोजन माँगकर पेट भरना। मधुकरी (वृत्ति)। उदाहरण—उदर भरै अलिवृत्ति सों० छाँड़ि स्वान मृग भूप।—भगवतरसिक। |
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