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अवि  : पुं० [सं०√अव् (रक्षणआदि)+इन्] १. सूर्य। २. आक। मदार। ३. भेड़ा। (पशु) ४. बकरा। ५. ऊन। ६. पर्वत। ७. दीवार। स्त्री० [सं० ] १. लज्जा। २. ऋतुमती स्त्री।
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अविक  : पुं० [सं० अवि+कन्] १. भेड़। २. हीरा (रत्न)।
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अविकच  : वि० [सं० न० त०] जो खिला न हो, फलतः बन्द (फल)।
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अविकचित  : वि० [सं० न० त०] =अविकच।
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अविकट  : पुं० [अवि+कट्च्] भेड़ों का झुंड।
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अविकत्थ  : वि० [सं० वि√कत्थ् (श्लाघा)+अच्, न० त०] जो अपने संबंध में बढ़ा-चढ़ाकर बातें न करता हो। श्लाघाशून्य।
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अविकल  : वि० [सं० न० त०] १. जो विकल न हो अर्थात् शांत। २. ज्यों का त्यों। जैसे—अविकल अनुवाद। ३. पूरा। संपूर्ण। ४. क्रमित। व्यवस्थित। ५. निश्चित।
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अविकल्प  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें या जिसका कोई विकल्प न हो। २. सदा निश्चित रूप से एक-सा रहनेवाला। ३. संदेह-रहित। असंदिग्ध।
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अविका  : स्त्री० [सं० अवि+क-टाप्] भेड़।
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अविकार  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें विकार न हो। विकाररहित। २. जिसके आकार या रूप में परिवर्तन न होता हो। पुं० [सं० न० त०] विकार का अभाव। परिवर्त्तन न होना।
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अविकारी (रिन्)  : वि० [सं० न० त०] १. जिसमें विकार न हुआ हो या न हो सकता हो। विकारशून्य। २. जिसमें कोई विकार या परिवर्त्तन न हुआ हो। जो विकृत न हुआ हो। पुं० व्याकरण में अव्यय शब्द जिसके रूप में कभी विकार नहीं होता। जैसे—अतः,परंतु, प्रायः बहुधा आदि।
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अविकार्य  : वि० [सं० न० त०] १. जिसमें विकार उत्पन्न न किया गया जा सके या न होता हो। २. नित्य।
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अविकाशी (शिन्)  : वि० [सं० न० त०] १. जो विकाशी न हो। २. जिसका या जिसमें विकास न हो। ३. जिसमें चमक न हो। ४. जो खिला, फूला या बढ़ा न हो।
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अविकृत  : वि० [सं० न० त०] जो विकृत अर्थात् बिगड़ा हुआ न हो, फलतः ज्यों का त्यों।
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अविकृति  : स्त्री० [सं० न० त०] विकृत होने की अवस्था या भाव। अविकार।
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अविक्रम  : वि० [सं० न० ब०] जो विक्रमशाली अर्थात् वीर न हो, फलतः अशक्त या कमजोर। पुं० [न० त०] १. कमजोरी। दुर्बलता। २. कायरता।
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अविक्रय  : पुं० [सं० न० त०] विक्रय अर्थात् बिक्री न होना। (नान-सेल)
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अविक्रांत  : वि० [सं० न० त०] १. जो विक्रांत न हो। २. अतुलनीय। अनुपम। ३. कमजोर। दुर्बल।
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अविक्रिय  : वि० [सं० न० ब०] जिसमें किसी प्रकार का विकार न हुआ हो अथवा विकार उत्पन्न न किया जा सकता हो।
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अविक्रेय  : वि० [सं० न० त०] १. जो विक्रेय (बेचे जाने के योग्य) न हो। २. जो बेचा न जा सके। (अन-सेलेबुल्)
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अविक्षत  : वि० [सं० न० त०] जो विक्षत (टूटा-फूटा) न हो, फलतः पूरा या समूचा। २. जिसकी कोई क्षति या हानि न हुई हो। ३. जिसे आघात या चोट न लगी हो।
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अविक्षिप्त  : वि० [सं० न० त०] १. जो क्षिप्त (फेंका हुआ) न हो। २. जो विक्षित (पागल या घबराया हुआ) न हो, फलतः धीर, शांत या समझदार।
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अविगंधा (गंधिका)  : स्त्री० [सं० ब० स०] अजगंधा नामक पौधा।
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अविगत  : वि० [सं० न० त०] १. जो जाना न गया हो। अज्ञात। २. अज्ञेय। ३. अनिर्वचनीय। ४. अनश्वर। नित्य। ५. ईश्वर या ब्रह्म का एक विशेषण। उदाहरण—अविगत गोतीता, चरित पुनीता माया रहित मुकुन्दा।—तुलसी।
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अविगति  : वि० [सं० न० ब०] जिसकी गति-विधि या कुछ पता न चले। स्त्री० [न० त०] अविगत होने की अवस्था या भाव।
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अविगान  : पुं० [सं० न० त०] १. असामंजस्य या विरोध का अभाव। २. एकता। सादृश्य।
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अविगीत  : वि० [सं० न० त०] १. जो विगीत (कुत्सित या निंदित) न हो। २. जिसमें परस्पर असामंजस्य या विरोध न हो।
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अविग्रह  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका विग्रह (रूप या शरीर) न हो। अशरीरी और निखयव। २. जो अच्छी तरह जाना न गया हो। अविज्ञात। ३. निर्विवाद। निश्चित।
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अविघात  : पुं० [सं० न० त०] विघात का अभाव। बाधा या विघ्न न होना।
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अविचल  : वि० [सं० न० त०] १. न चलनेवाला। अचल। स्थिर। २. जो विचलित न हो। दृढ़ संकल्पवाला। ३. धीर। शांत।
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अविचार  : पुं० [सं० न० त०] [कर्त्ता अविचारी] १. विचार। (विशेषतः आवश्यक या उचित विचार) का अभाव। २. अज्ञान। अविवेक। ३. अनुचित या बुरा विचार। ४. अत्याचार या अन्याय।
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अविचारित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसके संबंध में अभी कोई विचार न हुआ हो। २. बिना समझे-बूझे किया हुआ।
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अविचारी (रिन्)  : वि० [सं० न० त०] १. जिसमें विचार करने की शक्ति न हो। जो विचार न कर सके। ना-समझ। २. जो औचित्य, न्याय, संगति आदि का विचार न करता हो। ३. (विषय) जिसमें आवश्यक या उचित विचार से काम न लिया गया हो। (क्व०)
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अविचार्य  : वि० [सं० न० त०] १. जिसका विचार न हो सकता हो। २. (इतना असंभव या निकृष्ट) जिसका ध्यान तक न किया जा सकता हो। (अन्थिंकेबुल)।
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अविचालित  : वि० [सं० न० त०] १. अटल। स्थिर। २. एकाग्रचित्त।
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अविच्छिन्न  : वि० [सं० न० त०] १. जो विच्छिन्न (बीच में कटा या टूटा हुआ) न हो। २. निरंतर या लगातार चलते रहनेवाला। जैसे—अविच्छिन्न गति या प्रवाह।
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अविच्छेद  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका या जिसमें विच्छेद न हुआ हो। पुं० [न० त०] विच्छेद का अभाव।
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अविच्युत  : वि० [सं० न० त०] १. जो विच्युत या अपने स्थान से भ्रष्ट न हुआ हो। २. नित्य। शाश्वत।
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अविजन  : पुं० [सं० अभिजन] कुल। वंश।
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अविजेय  : वि० =अजेय।
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अविज्ञ  : वि० [सं० न० त०] [भाव० अविज्ञता] जो विज्ञ न हो अर्थात् अनजान।
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अविज्ञता  : स्त्री० [सं० अविज्ञ+तल्-टाप्] १. अविज्ञहोने की अवस्था या भाव। २. अज्ञान।
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अविज्ञात  : वि० [सं० न० त०] १. जिसके संबंध में कोई जानकारी न हो। २. अज्ञात। ३. नासमझ। ४. अस्पष्ट या संदिग्ध।
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अविज्ञात-क्रय  : पुं० [सं० कर्म० स०] कोई चीज (चोरी से) इस प्रकार खरीदना कि मालिक को पता न चलने पावे।
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अविज्ञाता (तृ)  : वि० [सं० न० त०] जो जाननेवाला न हो। पुं० [न० ब०] जिससे बढ़कर जाननेवाला और कोई न हो अर्थात् परमेश्वर।
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अविज्ञेय  : वि० [सं० न० त०] १. जिसे जान न सके अथवा जो जाना न जा सके। २. जिसे जानना उचित न हो।
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अवितत्  : वि० [सं० वि√तन्(विस्तार)+क्विप्, न० त०] उलटा, विपरीत या विरुद्ध।
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अवितत्-करण  : पुं० [सं० कर्म० स०] १. पाशुपत दर्शन के अनुसार ऐसे कर्म करना जो अन्य मतवालों के विचार से गर्हित या निंदनीय हों। २. जैन शास्त्रों में विवेक, रहित होकर निंदनीय कार्य करना। ३. कोई अनुचित काम करना।
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अवितथ  : वि० [सं० न० त०] १. जो मिथ्या न हो अर्थात् सत्य। २. इतना ठीक और वास्तविक कि उससे कुछ भी भूल या भ्रम न हो। (प्रिसाइज)। पुं० सचाई। सत्यता।
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अवितङाषण  : पुं० [सं० अवितत्-भाषण, कर्म० स०] ऐसी बात कहना जो सामान्यतः उपयुक्त ठीक या वास्तविक न हो।
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अवितर्कित  : वि० [सं० न० त०] १. जिसके संबंध में तर्क न किया गया हो। २. जिसमें तर्क के लिए न हो। असंदिग्ध।
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अवित्त  : वि० [सं० न० त०] १. वित्त-रहित। दरिद्र। धन-हीन। २. अविख्यात। ३. अपरिचित।
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अवित्ति  : स्त्री० [सं० न० त०] १. वित्त (धन) न होने की अवस्था या भाव। गरीबी। निर्धनता। वि० =अवित्त।
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अवित्यज  : वि० [सं० √त्यज्(छोड़ना)+क (बा०) न० त०] जो छोड़ा या त्यागा न जा सके। अनिवार्य और आवश्यक। जैसे—रसायन बनाने के लिए पारा अवित्यज है।
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अविद  : वि० [सं० √विद्(ज्ञान)+क,न० त०] जो विद् अर्थात् जानकार न हो। अनजान।
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अविदग्ध  : वि० [सं० न० त०] १. जो अच्छी तरह जला न हो। २. जो पका न हो। ३. जो पचा न हो। ४. जो अच्छी तरह पूर्णता को न पहुँचा हो, अर्थात् अनुभवहीन या नौसिखुआ।
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अविदित  : वि० [सं० न० त०] १. जो विदित न हो। अज्ञात। २. गुप्त। ३. अविख्यात।
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अविद्ध  : वि० [सं० न० त०] जो बेधा या छेदा न गया हो।
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अविद्धकर्णा (र्णी)  : स्त्री० [न० ब० टाप्] पाढ़ा लता।
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अविद्य  : वि० [सं० न-विद्या, न० ब०] १. जो पढ़ा-लिखा या शिक्षित न हो। २. जिसका संबंध विद्या या ज्ञान से न हो। ३. दे० ‘अविद्यमान’।
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अविद्यमान  : वि० [सं० न० त०] १. जो विद्यमान न हो। २. जिसकी कोई सत्ता या अवस्थिति न हो फलतः असत्। ३. झूठ। मिथ्या। ४. जिसका अस्तित्व महत्त्वपूर्ण, वास्तविक या स्थायी न हो। उदाहरण—अर्थ अविद्यमान जानिए ससृति नहिं जाइ गुसाई।—तुलसी।
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अविद्या  : स्त्री० [सं० न० त०] १. विद्या का अभाव। २. दार्शनिक क्षेत्रों में संसारिक मोह-माया में फँसानेवाला ऐसा मिथ्या या विपरीत ज्ञान जो इंद्रियों या संस्कारों के दोष से उत्पन्न हो और जो आत्मिक कल्याण की दृष्टि से घातक सिद्ध हो। जैसे—अनित्य को नित्य अनात्मा को आत्मा या झूठे सुख को सच्चा सुख मानना या समझना। सांख्य में इसे प्रकृति का गुण माना गया है।
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अविद्धता  : स्त्री० [सं० न० त०] १. विद्धता का अभाव। २. अज्ञान। मूर्खता।
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अविद्धान्  : वि० [सं० न० त०] जो विद्वान न हो, फलतः अज्ञानी या मूर्ख।
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अविधवा  : वि० [सं० न० त०] (स्त्री० ) जो विधवा न हो।
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अविधान  : पुं० [सं० न० त०] विधान का अभाव। वि० [सं० न० ब०] १. जो विधान या विधि के अनुसार ठीक न हो अथवा उसके विरुद्ध हो। २. उलटा। विपरीत। पुं० =अभिधान।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अविधि  : वि० [सं० न० ब०] जो विधि-विरुद्ध हो। स्त्री० विधि का अभाव।
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अविधिक  : वि० [सं० न० ब० कप्] १. जो विधिक न हो। २. जो विधि की दृष्टि से निषिद्ध हो। (इल्लीगल)।
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अविनय  : पुं० [सं० न० त०] विनय (नम्रता, नियम-पालन, शिष्टता आदि) का अभाव, फलतः उद्दंडता, धृष्टता आदि। (इम्माडेस्टी)।
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अविनश्वर  : वि० [सं० न० त०] जो नस्वर या नाशवान न हो। अविनाशी। (इम्पेरिशेबुल)
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अविनाभाव  : पुं० [सं० बिना-बाव, तृ० त० न-विनाभाव, न० त०] दो वस्तुओं में होनेवाला ऐसा पारस्परिक अनिवार्य संबंध जो कभी टूटता न हो।, अर्थात् जिसमें एक के बिना दूसरा होता ही न हो। जैसे—आग और धूँए में अविना भाव संबंध होता है।
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अविनाश  : पुं० [सं० न० त०] विनाश का अभाव। सदा बना रहनेवाला।
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अविनाशी (शिन्)  : वि० [सं० न० त०] जिसका कभी विनाश न हो सकता हो, फलतः नित्य या शाश्वत। पुं० ईश्वर।
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अविनासी  : वि० पुं० =अविनाशी।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अविनीत  : वि० [सं० न० त०] जिसमें विनय न हो। जो विनीत न हो अर्थात् उद्दंड या धृष्ट। (इम्माडेस्ट)
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अविनीता  : स्त्री० [सं० अविनीत+टाप्] वह स्त्री जिसमें विनय न हो। २. कुलटा या बदचलन स्त्री।
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अविपक्व  : वि० [सं० न० त०] १. (अन्न फल आदि) जो पका हुआ न हो। २. जो किसी विषय में परिपक्य या प्रौढ़ न हो। अधकचरा।
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अविपट  : पुं० [सं० अवि+पटच्] ऊनी वस्त्र।
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अविपद्  : स्त्री० [सं० न० त०] विपद् (कष्ट दुःख आदि) का अभाव।
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अविपन्न  : वि० [सं० न० त०] १. जो विपन्नन हो, अर्थात् नीरोग या स्वस्थ। २. जिसे आघात या चोट न लगी हो। ३. जिसे क्षति न पहुँची हो। ४. पवित्र। विशुद्ध।
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अविपर्यय  : पुं० [सं० न० त०] विपर्यय या विचार का अभाव।
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अविपाक  : पुं० [सं० न० त०] अजीर्ण रोग। वि० [सं० न० ब०] जिसे अजीर्ण हुआ हो।
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अविपाल  : पुं० [सं० ष० त०] भेड़-बकरियाँ पालनेवाला व्यक्ति। गड़ेरिया।
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अविबुध  : वि० [सं० न० त०] १. जो विबुध या समझदार न हो, अर्थात् अज्ञानी या मूर्ख। पुं० असुर। राक्षस।
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अविभक्त  : वि० [सं० न० त०] १. जो विभक्त (कटा, टूटा या बँटा) न हो, अर्थात् पूरा या सम्पूर्ण। २. जिसका विभाजन या बँटवारा न हुआ हो, फलतः संयुक्त। जैसे—अविभक्त संपत्ति, अविभक्त भारत आदि। ३. अपने मूल (शरीर) के साथ लगा या सटा हुआ हो। अभिन्न। ४. जो सर्वत्र एकही रूप में व्याप्त हो। जैसे—अविभक्त आत्मा।
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अविभाज्य  : वि० [सं० न० त०] जिसका विभाजन या बँटवारा न हो सके। पुं० गणित में वह राशि जिसका किसी गुणक के द्वारा भाग न किया जा सकता हो। अविच्छेद्य।
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अविभावन  : पुं० [सं० न० त०] १. विभावन या पहचान का अभाव। पहचाना न जाना। २. निर्णय या विभेद का अभाव।
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अविमुक्त  : वि० [सं० न० त०] जो मुक्त न हो। बद्ध। पुं० [न० त०] १. कन-पटी। २. काशीपुरी का एक नाम।
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अवियुक्त  : वि० [सं० न० त०] जो वियुक्त या अलग न हो, फलतः मिला, लगा या सटा हुआ।
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अवियोग  : पुं० [सं० न० त०] १. वियोग का अभाव। २. वियोग का विपर्याय, संयोग।
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अवियोग-व्रत  : पुं० [च० त०] पुराणों के अनुसार अगहन शुक्ल तृतीया को होनेवाला एक व्रत।
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अवियोज्य  : वि० [सं० न० त०] १. जिसका वियोजन या अलगाव न हो सके। २. जिसका वियोजन करना उचित न हो।
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अविरत  : वि० [सं० न० त०] [भाव० अविरति] १. जिसके बीच में विराम या ठहराव न हो। निरंतर चलता या होता रहनेवाला। (काँन्स्टेन्ट) २. लगा या सटा हुआ। अ० य० निरंतर। लगातार। पुं० विराम का अभाव। निरंतरता।
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अविरति  : स्त्री० [सं० न० त०] १. विरत न होने की दशा या भाव। २. आसक्ति। लीनता। ३. अशांति। ४. व्यभिचार। ५. ऐसा आवरण जो धर्मशास्त्रों के अनुरूप न हो। (जैन)।
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अविरथा  : क्रि० वि० =वृथा।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अविरल  : वि० [सं० न० त०] १. जो विरल अर्थात् दूर-दूर तक स्थित न हो, फलतः साथ लगा, सटा हुआ। २. घना। सघन। ३. निरंतर दिखाई देने, मिलने या होनेवाला।
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अविराम  : वि० [सं० न० ब०] जिसके बीच में विराम या ठहराव न हो। क्रि० वि० १. बिना बीच में ठहरे या रुके हुए। २. निरंतर। लगातार। पुं० [न० त०] विराम का अभाव।
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अविरुद्ध  : वि० [सं० न० त०] १. जो विरुद्ध (प्रतिकूल या विपरीत) न हो। २. अनुकूल।
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अविरेचन  : पुं० [सं० न० ब०] ऐसी वस्तु जो विरेचन में बाधक हो। कोष्ठब्रद्धता उत्पन्न करनेवाली चीज।
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अविरोध  : पुं० [सं० न० त०] १. विरोध का अभाव। अनुकूलता। २. समानता। साधर्म्य। ३. मेल। संगति।
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अविरोधी (धिन्)  : वि० [सं० न० त०] १. जो विरोधी न हो। २. अनुकूल।
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अविलंब  : क्रि० वि० [सं० न० त०] बिना विलंब किए। तुरंत। तत्काल। फौरन।
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अविलक्ष्य  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका कोई उद्देश्य या लक्ष्य न हो। २. असाध्य (रोग या रोगी)।
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अविला  : स्त्री० [सं०√अव्+इलच्-टाप्] भेड़।
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अविलिख  : वि० [सं० वि० √लिख्+क(बा०), न० त०] १. जो लिखनेवाला न हो अथवा जो लिखना न जानता हो। २. अनुचित या हानिकारक बात लिखनेवाला।
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अविलोकना  : स० दे० ‘अवलोकना’।
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अविवक्षित  : वि० [सं० न० त०] १. जो अभिप्रेत या उद्धिष्ट न हो। २. जो कहे जाने के योग्य न हो।
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अविवर्त्य  : वि० [सं० न० त०] १. जिसमें किसी प्रकार का विवर्त्तन या उलट-फेर न हो सके। (अन-आँल्टरेबुल)।
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अविवाद  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें विवाद न हो। विवाद रहित। २. निर्विवाद। पुं० [न० त०] विवाद का अभाव।
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अविवाहित  : वि० [सं० न० त०] [स्त्री० अविवाहिता] जिसका विवाह न हुआ हो। कुवाँरा।
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अविविक्त  : वि० [सं० न० त०] १. जो विवेचन के द्वारा स्पष्ट न हुआ हो। २. जो अच्छी तरह विचारा या सोचा न गया हो। ३. अच्छी तरह न सोचनेवाला। अविवेकी।
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अविवेक  : पुं० [सं० न० त०] १. विवेक का अभाव। अविचार। २. नादानी। नासमझी। ३. दर्शन-शास्त्र में किसी विशिष्ट ज्ञान का अभाव या मिथ्या ज्ञान। ४. न्याय का अभाव। अन्याय।
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अविवेकता  : स्त्री० [सं० अविवेक+तल्-टाप्] विवेकशील न होने की अवस्था या भाव। विचार-हीनता।
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अविवेकी (किन्)  : वि० [सं० न० त०] (व्यक्ति) जिसमें विवेक या विचारशीलता न हो, अर्थात् अन्यायी या मूर्ख।
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अविशंक  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसे शंका या संदेह न हो। २. जिसे डर या भय न हो। निर्भय।
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अविशुद्ध  : वि० [सं० न० त०] १. जो विशुद्ध न हो, फलतः गंदा या मिलावटवाला।
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अविशुद्धि  : स्त्री० [सं० न० त०] १. विशुद्ध न होने की अवस्था या भाव। २. मलिनता। ३. अपवित्रता।
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अविशेष  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसमें कोई विशेषता न हो। विशेषता से रहित। २. एक जैसा। एक रूप। पुं० १. तर्क-शास्त्र में, बेद उत्पन्न करनेवाला गुण या धर्म का अभाव। एकता। २. सांख्य के अनुसार एक विशिष्ट सूक्ष्म भूत जो धीरता, गूढ़ता आदि से रहित माना गया है।
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अविशेष-सम  : पुं० [तृ० त०] जाति के चौबीस भेदों में से एक। (न्या०)
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अविश्रंभ  : पुं० [सं० न० त०] विश्वास का अभाव। अविश्वास।
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अविश्रांत  : वि० [सं० न० त०] १. विश्राम न करनेवाला। २. न ठहरने या न रूकनेवाला। ३.निरंतर चलने या होनेवाला। न थकनेवाला। क्रि० वि० १. बिना ठहरे या रुके हुए। २. बिना थके।
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अविश्वसनीय  : वि० [सं० न० त०] जो विश्वास का अधिकारी या पात्र न हो। जिस पर विश्वास न किया जा सके।
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अविश्वस्त  : वि० [सं० न० त०] १. जिसका विश्वास न किया गया हो। २. जिसका विश्वास न किया जा सकता हो। अविश्वसनीय।
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अविश्वास  : पुं० [सं० न० त०] १. विश्वास या निश्चित धारणा का अभाव। एतबार न होना। २. निश्चय का अभाव। ३. शंका संदेह।
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अविश्वास-पात्र  : वि० [ष० त०] जिस पर विश्वास न किया जा सके। अविश्वसनीय।
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अविश्वास-प्रस्ताव  : पुं० [ष० त०] लोक-तंत्री संस्थाओं में, किसी अधिकारी या सदस्य के सबंध में उपस्थित किया जानेवाला इस आशय का प्रस्ताव कि उस अधिकारी पर सदस्यों का विश्वास नहीं रह गया है, अतः वह अपने स्थान से हट जाए। (मोशन आँफ नो कॉन्फिडेन्स)।
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अविश्वासी (सिन्)  : वि० [सं० न० त०] १. जो किसी का विश्वास न करे। २. अविश्वसनीय।
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अविष  : वि० [सं० न० ब०] १. जो विष न हो। २. जिसमें विष न हो। विषहीन। ३. विष का प्रभाव दूर करनेवाला। विषहारक। पुं० [सं०√अव् (वृद्धि, रक्षण आदि)+टिषच्] १. समुद्र। २. राजा। ३. आकाश। ४. रक्षक।
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अविषय  : वि० [सं० न० त०] १. जो कतन, तर्क, विचार आदि का विषय न हो। २. जो इंद्रियों द्वारा ग्रहण किया न जा सके। अगोचर। वि० [न० ब०] जिसमें या जिसका कोई विषय न हो। विषय-रहित।
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अविषा  : स्त्री० [सं० अविष+टाप्] साँप, बिच्छू आदि के विष का प्रभाव दूर करनेवाली जदवार नाम की जड़ी या बूटी।
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अविषी  : स्त्री० [सं० अविष+ङीष्] १. पृथ्वी। २. आकाश। ३. नदी।
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अविसर्गी (र्गिन्)  : वि० [सं० न० त०] जो बीच में ठहरता या रुकता न हो। पुं० ऐसा ज्वर जो बीच में उतरता न हो। बराबर बना रहनेवाला ज्वर।
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अविस्तर  : वि० [सं० न० ब०] १. जिसका विस्तार अधिक न हो। २. जिसका क्षेत्र सीमित हो। ३.जो अधिक लंबा-चौड़ा न हो।
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अविस्तीर्ण  : वि० [सं० न० त०] जो विस्तीर्ण अर्थात् फैला हुआ न हो या कम फैला हो।
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अविस्तृत  : वि० [सं० न० त०] जो विस्तृत न हो। कम या थोड़े विस्तारवाला।
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अविहड़  : वि० [सं० अ+विघट] जो खंडित न हो। अखंड। अविनाशी। वि० दे० ‘बीहड़’।(यह शब्द केवल पद्य में प्रयुक्त हुआ है)
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अविहित  : वि० [सं० न० त०] १. जो विहित (उचित या ठीक) न हो। २. न करने योग्य। अनुचित। ३. जिसका शास्त्रों में विधान न हो या निषेध हो। जैसे—अविहित कर्म।
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