शब्द का अर्थ
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काष्णर्य :
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पुं० [सं० कृष्ण+ष्यञ्०] कृष्णता। कालापन। |
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समानार्थी शब्द-
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काष :
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पुं० [सं० √कष् (कसना)+घञ्] सान का पत्थर। |
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काषाय :
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वि० [सं० कषाय+अण्] १. आम, कटहल, बहेड़े आदि कसैली वस्तुओं के रंग से रँगा हुआ। २. गेरू के रंग में रँगा हुआ। गेरूआ। जैसे—काषाय वस्त्र। |
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काष्ठ :
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पुं० [सं०√काश्+क्थन्] १. वृक्ष की लकड़ी। काठ। २. ईधन। |
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काष्ठ-कदली :
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स्त्री० [उपमित० स०] कठकेला। (दे०)। |
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काष्ठ-कीट :
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पुं० [मध्य० स०] वह कीड़े जो काठ में लगते हों। जैसे—घुन, दीमक आदि। |
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काष्ठ-तक्षक :
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पुं० [ष० त०] १. लकड़हारा। २. बढ़ई। |
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काष्ठ-लेखक :
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पुं० [ष० त०] घुन नाम का कीड़ा जो लकड़ी में छोटे-छोटे छेद कर देता है। |
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काष्ठा :
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स्त्री० [सं० काष्ठ+टाप्] १. पथ। मार्ग। २. सीमा। ३. ऊँचाई आदि की बहुत बढ़ी हुई मात्रा या सीमा। ४. उत्कर्ष। ५. ओर। दिशा। ६. चंद्रमा की कला। ७. काल या समय का एक मानदंड जो १८. पल का होता है। ८. कश्यप ऋषि की स्त्री जो दक्ष की कन्या थी। |
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काष्ठिक :
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वि० [सं० का्ष्ठ+ठन्+इक] काष्ठ-संबंधी। |
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काष्ठिका :
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स्त्री० [सं० का्ष्ठ+ङीष्+कन्, टाप्, ह्रस्व] १. काठ या लकड़ी का छोटा टुकड़ा। २. चैली। |
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काष्ठीय :
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वि० [सं० काष्ठ+छ-ईय] १. काठ या लकड़ी का बना हुआ (वुडन) २. जिसका संबंध काष्ठ से हो। ३. जैसे—काष्ठीय व्यापार। |
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