शब्द का अर्थ
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					क्षीर					 :
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					पुं० [सं०√घस् (खाना) +ईरन् घ=क, अलोप, षत्व] १. दूध। २. पौधों, वृक्षों आदि में से निकलनेवाला दूध-जैसा तरल सफेद पदार्थ। ३. कोई तरल पदार्थ। जैसे—जल। ४. खीर। ५. सरल वृक्ष का गोंद।				 | 
			
			
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					क्षीर-कंठा (क)					 :
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					वि० [ब० स०] दूध पीनेवाला। दुधमुँहाँ।				 | 
			
			
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					क्षीर-कंद					 :
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					पुं० [सं० ब० स०] क्षीरविदारी।				 | 
			
			
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					क्षीर-कांडक					 :
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					पं० [ब० स०] १. थूहर। २. मदार।				 | 
			
			
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					क्षीर-काकोली					 :
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					स्त्री [उपमि० स०] एक प्रकार की जड़ी जो वीर्यवर्धक मानी जाती है।				 | 
			
			
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					क्षीर-खर्जूर					 :
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					पुं० [उपमि० स०] पिंडखजूर।				 | 
			
			
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					क्षीर-घृत					 :
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					पुं० [मध्य० स०] दूध को मथकर निकाला हुआ मक्खन या उससे बनाया हुआ घी।				 | 
			
			
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					क्षीरज					 :
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					वि० [सं० क्षीर√जन् (प्रादुर्भाव)+ड] दूध से उत्पन्न होने या बननेवाला। पुं० १. दही। २. कमल। ३. चन्द्रमा। ४. शंख।				 | 
			
			
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					क्षीरजा					 :
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					स्त्री० [सं० क्षीरज+टाप्] लक्ष्मी।				 | 
			
			
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					क्षीर-तुंबी					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] लौकी।				 | 
			
			
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					क्षीर-तैल					 :
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					पुं० [मध्य० स०] वैद्यक में एक प्रकार का औषधिक तेल।				 | 
			
			
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					क्षीर-दल					 :
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					पुं० [ब० स०] आक। मदार।				 | 
			
			
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					क्षीर-द्रुम					 :
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					पुं० [मध्य० स०] दे० ‘क्षीरवृक्ष’।				 | 
			
			
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					क्षीरधि					 :
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					पुं० [सं० क्षीर√धा (धारणा)+कि] समुद्र।				 | 
			
			
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					क्षीर-धेनु					 :
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					स्त्री० [मध्य० स०] १. वह गाय जो दूध देती हो। २. दान के लिए घड़े आदि को स्थापित कर बनाई हुई एक प्रकार की कल्पित गौ। (पुराण)।				 | 
			
			
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					क्षीर-निधि					 :
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					पुं० [ष० त०] समुद्र।				 | 
			
			
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					क्षीर-नीर					 :
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					पुं० [द्व० स०] १. दूध और पानी। २. दूध और पानी का संमिश्रण। ३. आलिंगन।				 | 
			
			
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					क्षीर-पर्णी					 :
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					स्त्री [ब० स०, ङीष्] आक। मदार।				 | 
			
			
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					क्षीर-पलांडु					 :
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					पुं० [उपमि० स०] सफेद प्याज।				 | 
			
			
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					क्षीर-पाक					 :
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					वि० [ब० स०] दूध में पका अथवा पकाया हुआ। पुं० वैद्यक में दूध में पकाई हुई कोई ओषधि।				 | 
			
			
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					क्षीर-पुष्पी					 :
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					स्त्री० [स० ब० स०, ङीष्] शंखपुष्पी।				 | 
			
			
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					क्षीर-फूली					 :
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					पुं० [सं०+हिं०] एक प्रकार का बढ़िया आम।				 | 
			
			
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					क्षीर-भृत					 :
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					वि० [तृ० त०] जो केवल दूध पी कर निर्वाह करता हो। पुं० ऐसा नौकर जो अपनी मजदूरी दूध के रूप में लेता हो।				 | 
			
			
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					क्षीर-विदारी					 :
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					स्त्री० [उपमि० स०] विदारी की तरह की एक औषधि जिसमें दूध निकलता है।				 | 
			
			
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					क्षीर-वृक्ष					 :
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					[मध्य० स०] ऐसे वृक्ष जिनमें से दूध-जैसा तरल पदार्थ निकलता हो। जैसे—खिरनी, गूलर, पीपल, बरगद, महुआ आदि।				 | 
			
			
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					क्षीर-व्रत					 :
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					पुं० [मध्य० स०] ऐसा व्रत जिसमें केवल दूध पीया जाता हो।				 | 
			
			
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					क्षीर-शर					 :
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					पुं० [ष० त०] दूध, दही आदि पर जमने वाली मलाई।				 | 
			
			
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					क्षीर-शाक					 :
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					पुं० [ष० त०] १. फटा हुआ दूध। छेना। २. मक्खन।				 | 
			
			
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					क्षीरस					 :
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					पुं० [सं० क्षीर√सी (अन्त करना)+क] दही, दूध आदि की मलाई।				 | 
			
			
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					क्षीर-सागर					 :
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					पुं० [ष० त०] सात समुद्रों में से एक सुमद्र, जो दूध से भरा हुआ माना गया है (पुराण)।				 | 
			
			
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					क्षीर-सार					 :
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					पुं० [सं० ष० त०] मक्खन।				 | 
			
			
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					क्षीर-हिण्डीर					 :
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					पुं० [ष० त०] दूध का फेन।				 | 
			
			
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					क्षीरा					 :
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					स्त्री० [सं० क्षीर+अच्, टाप्] काकोली नाम की जड़ी।				 | 
			
			
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					क्षीराद					 :
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					पुं० [सं० क्षीर√अद् (खाना)+अण्] दूध पीनेवाला अर्थात् दुधमुँहा बच्चा।				 | 
			
			
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					क्षीराब्धि					 :
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					पुं० [सं० क्षीर-अब्धि, ष० त०] क्षीर-सागर।				 | 
			
			
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					क्षीरिक					 :
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					पुं० [सं० क्षीर+ठन्—इक] एक तरह का साँप।				 | 
			
			
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					क्षीरिका					 :
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					स्त्री० [सं० क्षीरिक+टा] १. पिंडखजूर। २. वंशलोचन।				 | 
			
			
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					क्षीरिणी					 :
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					वि० [सं० क्षीर+इनि—ङीप्] दूध देनेवाली। स्त्री० १. क्षीर-काकोली। २. खिरनी। ३. वृद्धी नाम की लता। ४. वराहक्रान्ता।				 | 
			
			
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					क्षीरोद					 :
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					पुं० [सं० क्षीर-उदक्, ब० स०, उदक्=उद] क्षीर-सागर।				 | 
			
			
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					क्षीरोदक					 :
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					पुं० [सं० क्षीरोक√कै (प्रतीत होना)+क] एक प्रकार का रेशमी कपड़ा।				 | 
			
			
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					क्षीरोद-तनय					 :
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					पुं० [ष० त०] चंद्रमा।				 | 
			
			
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					क्षीरोद-तनया					 :
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					स्त्री० [ष० त०] लक्ष्मी।				 | 
			
			
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					क्षीरोदधि					 :
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					पुं० [सं० क्षीर-उदधि, ष० त०] क्षीरसागर।				 | 
			
			
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					क्षीरौदन					 :
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					पुं० [सं० क्षीर-ओदन, मध्य० स०] १. दूध में पका या पकाया हुआ चावल। २. खीर (दे०)				 | 
			
			
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