शब्द का अर्थ
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					क्षेप					 :
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					पुं० [सं०√क्षिप् (फेंकना)+घञ्] १. फेंकने की क्रिया। फेंकना। २. पीछे करना या बिताना। जैसे—काल-क्षेप। ३. वह जो कुछ फेंका जाय, विशेषतः एक बार में फेंका जाय। ४. आघात। ५. अतिक्रमण। ६. देर। विलंब। ७. निंदा।				 | 
			
			
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					क्षेपक					 :
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					वि० [सं०√क्षिप्+ण्वुल्—अक] १. फेंकनेवाला। २. नष्ट या बरबाद करनेवाला। ३. निंदनीय। पुं० १. मल्लाह। २. [क्षप+कन्] वह अंश, जो बाद में किसी वस्तु, विशेषतः पुस्तक आदि में किसी दूसरे व्यक्ति द्वारा बढ़ाया या मिलाया गया हो। जैसे—इस रामायण में कई क्षेपक हैं।				 | 
			
			
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					क्षेपण					 :
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					पुं० [सं०√क्षिप्+ल्युट्—अन] १. कोई चीज फेंकने की क्रिया या भाव। २. गिराना। ३. मिलाना। ४. बिताना। गुजारना। जैसे—समय का क्षेपण।				 | 
			
			
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					क्षेपणिक					 :
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					पुं० [सं० क्षेपणि+ठन्—इक] मल्लाह। नाविक।				 | 
			
			
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					क्षेपणी					 :
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					स्त्री० [सं० क्षेपण+ङीप्] १. वह अस्त्र जो फेंककर चलाया जाय। २. डाँड़।				 | 
			
			
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					क्षेपणीय					 :
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					वि० [सं०√क्षिप्+अनीयर्] फेंकने योग्य।				 | 
			
			
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					क्षेप्ता					 :
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					(प्तृ) वि० [सं०√क्षिप्+तृच्] फेंकनेवाला।				 | 
			
			
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