शब्द का अर्थ
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खान :
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स्त्री० [सं० खानिः, प्रा० खाणी; बं० खानी; सिं० खाणी; का० खाण; गु० मरा० खाण] १. जमीन के अंदर खोदा हुआ वह बहुत बड़ा तथा गहरा गड्ढा, जिसमें से कोयला, चाँदी,ताँबा सोना आदि खनिज पदार्थ आदि निकाले जाते हैं। आकर। खदान। (माइन) २. वह स्थान, जहाँ कोई वस्तु अधिकता से होती है। किसी चीज या बात का बहुत बड़ा आगार। जैसे– यह पुस्तक अनेक ज्ञातव्य विषयों की खान है। ३.खजाना। भंडार। पुं० [हिं० खाना] १. खाने की क्रिया या भाव। जैसे– खान-पान। २. खाद्य-सामग्री। भोजन। पुं० [तु० खान] [स्त्री० खानम] १. तुर्की के पुराने राजाओं या सरदारों की उपाधि। स्वामी। २. सरदार। ३.मालिक। स्त्री० [फा० खाना] कोल्हू का वह छेद जिसमें ऊख की गँडेरियाँ या तेलहन भरकर पेरते हैं। खौं। घर। |
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समानार्थी शब्द-
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खानक :
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पुं० [सं० खन् (खोदना)+ण्युल्-अक] १. खान, जमीन या मिट्टी खोदनेवाला मजदूर। २. मकान बनानेवाला कारीगर या मिस्त्री। राज। |
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खानकाह :
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स्त्री० [ अ०] मुसलमान, फकीरों, साधुओं अथवा धर्म-प्रचारकों के ठहरने या रहने का स्थान। दरगाह। मठ। |
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खानखानाँ :
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पुं० [फा० खानेखानान] सरदारों का सरदार। बहुत बड़ा सरदार। |
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खानखाह :
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क्रि० वि० दे० ‘खाहमखाह’। |
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खानगाह :
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स्त्री०=खानकाह। |
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खानगी :
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वि० [फा०] १. अपने घर या गृहस्थी से संबंध रखनेवाला। घरू। घरेलू। २. आपस का। निजी। स्त्री० केवल व्यभिचार के द्वारा धन कमानेवाली वेश्या। कसबी। |
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खानजादा :
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पुं० [फा०] [स्त्री० खानजादी] बहुत बड़े खान या सरदार का लड़का। २. एक प्रकार के क्षत्रिय, जिनके पूर्वज मुसलमान हो गये थे। |
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खानदान :
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पुं० [फा०] [वि० खानदानी] कुल। घराना। वंश। |
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खानदानी :
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१. अच्छे और ऊँचे खानदान अर्थात् कुल या वश का (व्यक्ति)। २. (काम या पेशा) जो किसी खानदान या कुल में बहुत दिनों से होता आया हो। पुश्तैनी। पैतृक। ३.(धन-सम्पत्ति) जो पूर्वजों के समय से अधिकार में हो। जैसे–खानदानी मकान। |
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खानदेश :
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पुं० [खाँद=जंगली जाति+देश] बंबई राज्य का एक प्रदेश, जो सतपुड़ा की पर्वतमाला के दक्षिण में पड़ता है। |
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खान-पान :
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पुं० [हिं० खाना+पीना] १. खाने या पीने की क्रिया भाव या प्रकार। २. खाने-पीने का ढंग या रीति रिवाज। |
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खानम :
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स्त्री० [तु० खान का स्त्री] १. खान या सरदार की पत्नी। २. ऊँचे कुल की महिला। |
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खानसामा :
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पुं० [फा०] वह नौकर जो खाने की सामग्री का प्रबंध करता हो। खाना बनाने वाला, रसोइया (मुसल०)। |
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खाना :
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स० [सं० खादन, प्रा० खाअन, खान] [प्रे० खिलाना] १. पेट भरने के लिए मुँह में कोई खाद्यवस्तु रखकर उसे चबाना और निगल जाना। भोजन करना। जैसे– रोटी खाना। पद-खाना-कमाना=काम-धंधा करके जीवनयापन या निर्वाह करना। मुहावरा– खा-पका जाना या खा डालना=धन या पूँजी खर्च कर डालना। (किसी को) खाना न पचना-आराम या चैन न पड़ना। जैसे–बिना मन की बात कहें इस लड़के का खाना नहीं पचता। २. हिंसक जन्तुओं का शिकार पकड़ना और भक्षण करना। जैसे– उस बकरी को शेर खा गया। मुहावरा–खा जाना या कच्चा खा जाना=मार डालना। प्राण ले लेना। जैसे– जी चाहता है कि इसे कच्चा खा जाऊँ। खाने दौड़ना-बहुत अधिक कुद्र होकर ऐसी मुद्रा बनाना कि मानो खा जाने को तैयार हो। ३. विषैले कीड़ों का काटना। डसना। ४. लाक्षणिक अर्थ में (क) किसी से रिश्वत लेना। जैसे–आजकल दफ्तरों में बाबू लोग खूब खाते हैं। (ख) किसी का धन या पूँजी हड़प जाना। जैसे–यारों ने बुढिया को खा डाला है। ५. न रहने देना। कष्ट या बरबाद करना। ६. तंग या परेशान करना। जैसे– कान, दिमाग या सिर खाना। ७. अपने आप में अन्तर्भुक्त करना। जैसे– लोटा पाँच सेर घी खा गया। ८. आघात, प्रहार, वेग आदि सहन करना। जैसे– गम, गाली, धक्का या मार खाना। मुहावरा– मुँह की खाना=ऐसा आघात सहना कि मुँह सामने करने के योग्य न रह जाए। पुं० १. वह जो कुछ खाया जाए। खाद्य पदार्थ। २. भोजन। पुं० [फा० खान] १. घर। मकान। जैसे– गरीबखाना, यतीमखाना। २. दीवार, अलमारी, मेज आदि में बना हुआ वह अंश या विभाग जिसमें वस्तुएँ आदि रखी जाती हैं। ३.छोटा बक्स या डिब्बा। जैसे– घड़ी या चश्मे का खाना। ४. रेलगाड़ी का डिब्बा। |
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खाना खराब :
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वि० [फा०] [संज्ञा खानाखराबी] १. जिसका घर-बार सब कुछ नष्ट हो चुका हो। जिसके रहने आदि का ठिकाने रह न गया हो। २. जो दूसरों का घर नष्ट करने या बिगाड़नेवाला हो। |
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खानाजंगी :
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स्त्री० [फा०] १. आपस अर्थात् घर के लोगों की लड़ाई। २. किसी देश में होनेवाला आन्तरिक विग्रह। |
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खानाजाद :
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वि० [फा०] १. (दास) जो घर में रखी हुई दासी के गर्भ से उत्पन्न हुआ हो। २. जो बाल्यावस्था सेही घर में रखकर पाला-पोसा गया हो। पुं० १. गुलाम। दास। २. तुच्छ। सेवक। |
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खानातलाशी :
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-स्त्री० [फा०] चुरा छिपाकर रखी हुई चीज के लिए किसी घर की होनेवाली तलाशी। घर की तलाशी। |
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खाना-दाना :
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पुं० [हिं०] भोजन की सामग्री। |
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खानादारी :
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स्त्री० [फा०] घर-गृहस्थी के सब काम करने या सँभालने की क्रिया या भाव। |
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खाना-पीना :
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पुं० [हिं० खाना+पीना] १. खाने-पीने का व्यवहार या संबंध। खान-पान। २. बहुत से लोगों के साथ बैठकर खाने पीने की क्रिया या भाव। ३. खाने-पीने के लिए तैयार की हुई चीजें। |
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खानापुरी :
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स्त्री० [हिं० खाना+पूरना] चक्र, सारणी आदि के कोठों में यथा स्थान अभिप्रेत या उद्दिष्ट शब्द संख्याएँ आदि भरना या लिखना। |
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खानाबदोश :
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वि० [फा०] जिसके रहने का कोई स्थान न हो और इसी लिए जो अपनी गृहस्थी की सब चीजें अपने कन्धे पर लादकर जगह-जगह घूमता फिरे। यायावर। (नोनेड) |
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खानाशुमारी :
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स्त्री० [फा०] किसी गाँव, नगर, बस्ती आदि में बने और बसे हुए घरों या मकानों की गिनती करना। |
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खानि :
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स्त्री० [सं० खनि] १. खान जिसमें से धातुएँ आदि खोदकर निकाली जाती हैं। २. ऐसा स्थान जहाँ कोई चीज बहुत अधिकता से उत्पन्न होती अथवा पाई जाती हो। ३. बहुत सी चीजों या बातों के इकट्ठे रहने या होने का स्थान। ४. ओर। तरफ। दिशा। ५. ढंग। तरह। प्रकार। |
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खानिका :
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स्त्री०=खान या खानि। वि० [हिं० खान] खान से निकलने वाला। खनिज। |
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खानिल :
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पुं० [सं√खन्+घञ् खान+इलच्] सेंध लगाकर चोरी करने वाला चोर। |
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खानोदक :
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पुं० [सं० खान-उदक, ब० स०] नारियल का पेड़। |
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