शब्द का अर्थ
|
छेड़ :
|
स्त्री० [हिं० छेड़ना] १. छेड़ने की क्रिया या भाव। २. ऐसा शब्द, पद या बात जिसके कहने से कोई चिढ जाता हो। चिढा़नेवाली बात। ३. दे० चिढौ़नी। ४. झगड़ा। ५. किसी कार्य का आरंभ या श्री गणेश। ६. अपनी ओर से कोई ऐसी बात आरंभ करना कि उसका उत्तरदायित्व या भार अपने ऊपर आता हो। पहल। उदाहरण–हम तो चुपचाप बैठे थे, छेड़ तो तुम्हीं ने की। मुहावरा–छेड़ निकालना=उक्त प्रकार से कोई ऐसा काम या बात करना जिससे कोई लड़ाई झगड़ा या वैर-विरोध खड़ा हो सकता हो। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
छेड़खानी :
|
स्त्री० =छेड़-छाड़। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
छेड़छाड़ :
|
स्त्री० [हिं० छेड़ना+अनु०] १. किसी को तंग करने के लिए छेड़ने की क्रिया या भाव। २. अनुचित रूप से किसी के प्रति आरंभ किया जानेवाला व्यवहार। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
छेड़ना :
|
स० [सं० छिंदन या हिं० छेड़] १. इस प्रकार छुना या स्पर्श करना कि उसके फल-स्वरूप कोई क्रिया या व्यापार घटित हो। जैसे–बीन या सितार के तार छेड़ना। २. जीव-जन्तुओं आदि को इस प्रकार स्पर्श करना या उन्हें तंग करना जिससे वे क्षुब्ध होकर आक्रमण कर सकते हो। जैसे–कुत्ते, साँड़ या साँप को छेड़ना। ३. व्यक्ति को चिढ़ाने या तंग करने के लिए हँसी-ठट्ठे के रूप में कोई ऐसी बात कहना अथवा कोई ऐसा काम करना जिससे वह चिढ़ या दुःखी होकर प्रतिकार कर सकता हो। जैसे–पागल, बच्चे या स्त्री को छेड़ना। ४. किसी को तंग करने के लिए उसके काम में अड़ंगा लगाना या बाधा खड़ी करना। ५. किसी चीज को अकारण या व्यर्थ में छूना जिससे उनमें विकार उत्पन्न हो सकता हो। जैसे–घाव या उसमें बँधी पट्टी को छेड़ना। ६. किसी को कोई ऐसी बात (छेड़) बार-बार कहना जिससे कोई चिढ़ता हो। जैसे–उसे सब बुद्दू मियाँ कह कर छेड़ते हैं। ७. कोई कार्य या बात आरंभ करना। जैसे–मकान की मरम्मत छेड़ना। ८. संगीत में गीत, वाद्य आदि कलापूर्ण ढंग से आरंभ करना। ९. चिकित्सा के क्षेत्र में फोड़ा बहाने के लिए नश्तर से उसका मुँह खोलना। स०=छेतना। (छेदना)।(यह शब्द केवल स्थानिक रूप में प्रयुक्त हुआ है) |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
छेड़वाना :
|
स० [हिं० छेड़ना का प्रे० रूप] छेड़ने का काम दूसरे से करवाना। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |
छेड़ी :
|
स्त्री० [?] छोटी और तंग गली। (बुदेल०)। स्त्री०=छेरी (बकरी)। |
|
समानार्थी शब्द-
उपलब्ध नहीं |