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शब्द का अर्थ

टपक  : स्त्री० [हिं० टपकना] १. टपकने की क्रिया या भाव। २. किसी चीज के ऊपर से गिरने पर होनेवाला टपटप शब्द। ३. शरीर के किसी अंग में मवाद आदि अथवा और कोई विकार उत्पन्न होने के कारण रह-रहकर होनेवाला हलका दरद या पीड़ा। टीस।
समानार्थी शब्द-  उपलब्ध नहीं
टपकन  : स्त्री०=टपक।
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टपकना  : अ० [सं०√टिप् या अनु०] १. किसी चीज में से बूँद बूँद करके किसी तरल पदार्थ का धरातल पर टपटप शब्द करते हुए गिरना। जैसे–(क) छत में से वर्षा का पानी टपकना। (ख) आम में से रस टपकना। २. (फलों आदि का पेड़ से टूटकर) ऊपर से सहसा नीचे गिरना जैसे–अमरूद या जामुन टपकना। ३. (व्यक्तियों का) सहसा कहीं आ पहुँचना। जैसे–इतने में न जाने वह कहाँ से टपक पड़ा। ४. कोई भाव प्रकट होना। जाहिर होना। झलकना। ५. शरीर के किसी अंग में मवाद भरा होने के कारण रह-रहकर पीड़ा होना। ६. फोड़े में से मवाद का निकलना। ७. (हृदय का) झट आकर्षित होना। लुभा जाना। मोहित हो जाना। ८. स्त्री का संभोग की ओर प्रवृत्त होना। ढल पड़ना। (बाजारू)। ९. युद्ध में घायल होकर गिरना।
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टपकवाना  : हिं० ‘टपकाना’ का प्रे० रूप।
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टपका  : पुं० [हिं० टपकना] १. टप-टप शब्द करते हुए बूँदों के गिरने की अवस्था या भाव। २. उक्त प्रकार से गिर, चू या रसकर निकली हुई चीज। रसाव। ३. ऐसा फल जो पककर या हवा के झोंके से जमीन पर गिरा हो। जैसे–टपका आम। ४. चौपायों के खुर में होनेवाला एक रोग जिसमें टपक या टीस होती है। ५. दे० ‘टपक’।
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टपका-टपकी  : स्त्री० [हिं० टपकना] १. बार-बार या रह-रहकर कभी इधर-और कभी उधर कुछ टपकने की क्रिया या भाव। जैसे–आम या जामुन की टपका-टपकी। २. रह-रहकर होनेवाली बूँदा-बाँदी या हलकी वर्षा। ३. लाक्षणिक रूप में महामारी आदि के प्रकोप से होनेवाली छूटपुट मौंते। क्रि० प्र०–लगना।
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टपकाना  : स० [हिं० टपकना] १. कोई चीज रह-रहकर बूँदों या छोटे-छोटे टुकड़ों के रूप में कहीं गिराना। २. भभके आदि के द्वारा अरक, आसव आदि तैयार करना। चुआना।
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टपकाव  : पुं० [हिं० टपकना] टपकने अथवा टपकाने की क्रिया या भाव।
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टपकी  : स्त्री० [हिं० टपकना] १. टपकने की क्रिया या भाव। २. अचानक होनेवाली मृत्यु। मुहावरा–टपकी पड़े=नष्ट या बरबाद हो जाय। (बोल-चाल)
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